The conscious and the unconscious mind.
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The activity of the superficial and deeper unconscious is occupational. The past, the present, and the future are tied together by the long string of memory. Thought moves through the present to the future and back again. This movement is the occupation of the mind with the past, the present and the future. If the mind is not occupied, it ceases to exist. Occupation gives to the mind a feeling of activity, of being alive. That is why the mind stores up or renounces; it sustains itself with occupation. Without occupation, the mind is not; and the fear of not being makes the mind restless and active.
J. Krishnamurti
Commentaries on Living First Series, ch. 65.
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चेतन और अचेतन मन
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सतही और गहनतर अचेतन की गतिविधि व्यस्तता से जुड़ी होती है । अतीत, वर्तमान, और भविष्य, स्मृति की लंबी डोर में एक साथ बँधे होते हैं । विचार वर्तमान से होता हुआ पुनः अतीत और भविष्य की ओर गतिमान रहता है । यह गतिशीलता ही मन की व्यस्तता है जो अतीत, वर्तमान तथा भविष्य में होती है । यदि मन व्यस्त न रहे तो इसका अस्तित्व नहीं रह जाता । व्यस्तता, मन को सक्रिय होने की, जीवित होने की भावना प्रदान करती है । इसीलिए मन संग्रह या त्याग करता है; व्यस्तता के माध्यम से यह स्वयं की निरंतरता बनाए रखता है । व्यस्तता न होने पर मन नहीं होता; और न-होने का डर मन को व्याकुल और सक्रिय बना देता है ।
जे.कृष्णमूर्ति
’जीवन-भाष्य’ / कमेन्ट्रीज़ ऑन लिविंग’ पहला भाग, अध्याय 65
From : 'Commentaries on Living' : Part 1, Chapter 65.
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Without comparison; -What I am?
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Can I live without comparison—without comparison with anybody? This means there is no high, no low—there is not the one who is superior and the other who is inferior. You are actually what you are and to understand what you are, this process of comparison must come to an end.
If I am always comparing myself with some saint or some teacher, some businessman, writer, poet, and all the rest, what has happened to me—what have I done? I only compare in order to gain, in order to achieve, in order to become—but when I don’t compare I am beginning to understand what I am. Beginning to understand what I am is far more fascinating, far more interesting; it goes beyond all this stupid comparison.
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तुलना से परे होना
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क्या मैं तुलना न करते हुए जी सकता हूँ, किसी भी व्यक्ति से तुलना किए बिना जी सकता हूँ? इसका मतलब यह हुआ कि न तो कोई ऊँचा है, न नीचा है - न तो कोई है जो श्रेष्ठ है और कोई अन्य जो कि निकृष्ट है । आप वस्तुतः वही हैं जो आप हैं और आप क्या हैं इसे समझने के लिए तुलना की इस चेष्टा का अन्त हो जाना चाहिए ।
अगर मैं हमेशा किसी संत या शिक्षक से, किसी व्यवसायी या लेखक, कवि और दूसरे सब लोगों से स्वयं की तुलना करता हूँ तो मुझमें क्या हुआ होता है - मैंने क्या किया होता है ? मैं तुलना इसीलिए करता हूँ ताकि कुछ पा सकूँ, कुछ उपलब्ध कर सकूँ, कुछ बन सकूँ - लेकिन जब मैं तुलना नहीं करता तो समझना शुरु करता हूँ कि मैं क्या हूँ । स्वयं को समझने की शुरुआत कहीं अधिक मज़ेदार है, कहीं अधिक रोचक है ; तुलना करने की इस सारी मूर्खता से बिलकुल परे की चीज़ है ।
जे. कृष्णमूर्ति
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The activity of the superficial and deeper unconscious is occupational. The past, the present, and the future are tied together by the long string of memory. Thought moves through the present to the future and back again. This movement is the occupation of the mind with the past, the present and the future. If the mind is not occupied, it ceases to exist. Occupation gives to the mind a feeling of activity, of being alive. That is why the mind stores up or renounces; it sustains itself with occupation. Without occupation, the mind is not; and the fear of not being makes the mind restless and active.
J. Krishnamurti
Commentaries on Living First Series, ch. 65.
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चेतन और अचेतन मन
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सतही और गहनतर अचेतन की गतिविधि व्यस्तता से जुड़ी होती है । अतीत, वर्तमान, और भविष्य, स्मृति की लंबी डोर में एक साथ बँधे होते हैं । विचार वर्तमान से होता हुआ पुनः अतीत और भविष्य की ओर गतिमान रहता है । यह गतिशीलता ही मन की व्यस्तता है जो अतीत, वर्तमान तथा भविष्य में होती है । यदि मन व्यस्त न रहे तो इसका अस्तित्व नहीं रह जाता । व्यस्तता, मन को सक्रिय होने की, जीवित होने की भावना प्रदान करती है । इसीलिए मन संग्रह या त्याग करता है; व्यस्तता के माध्यम से यह स्वयं की निरंतरता बनाए रखता है । व्यस्तता न होने पर मन नहीं होता; और न-होने का डर मन को व्याकुल और सक्रिय बना देता है ।
जे.कृष्णमूर्ति
’जीवन-भाष्य’ / कमेन्ट्रीज़ ऑन लिविंग’ पहला भाग, अध्याय 65
From : 'Commentaries on Living' : Part 1, Chapter 65.
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Without comparison; -What I am?
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Can I live without comparison—without comparison with anybody? This means there is no high, no low—there is not the one who is superior and the other who is inferior. You are actually what you are and to understand what you are, this process of comparison must come to an end.
If I am always comparing myself with some saint or some teacher, some businessman, writer, poet, and all the rest, what has happened to me—what have I done? I only compare in order to gain, in order to achieve, in order to become—but when I don’t compare I am beginning to understand what I am. Beginning to understand what I am is far more fascinating, far more interesting; it goes beyond all this stupid comparison.
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तुलना से परे होना
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क्या मैं तुलना न करते हुए जी सकता हूँ, किसी भी व्यक्ति से तुलना किए बिना जी सकता हूँ? इसका मतलब यह हुआ कि न तो कोई ऊँचा है, न नीचा है - न तो कोई है जो श्रेष्ठ है और कोई अन्य जो कि निकृष्ट है । आप वस्तुतः वही हैं जो आप हैं और आप क्या हैं इसे समझने के लिए तुलना की इस चेष्टा का अन्त हो जाना चाहिए ।
अगर मैं हमेशा किसी संत या शिक्षक से, किसी व्यवसायी या लेखक, कवि और दूसरे सब लोगों से स्वयं की तुलना करता हूँ तो मुझमें क्या हुआ होता है - मैंने क्या किया होता है ? मैं तुलना इसीलिए करता हूँ ताकि कुछ पा सकूँ, कुछ उपलब्ध कर सकूँ, कुछ बन सकूँ - लेकिन जब मैं तुलना नहीं करता तो समझना शुरु करता हूँ कि मैं क्या हूँ । स्वयं को समझने की शुरुआत कहीं अधिक मज़ेदार है, कहीं अधिक रोचक है ; तुलना करने की इस सारी मूर्खता से बिलकुल परे की चीज़ है ।
जे. कृष्णमूर्ति
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