नम इदं पितृभ्यः
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अहन् आह्नः पूर्वाह्नो मध्याह्नपराह्नो यः।
न हन्यते हन्यमानो अहानो विहानो तथा ॥
आत्मजो जनकस्तथा पौत्रप्रपौत्ररूपेण ।
कालो एव प्रवर्धते पित्रा कालेनैव प्रवर्धते ॥
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काल का वह रूप जो प्रतिदिन प्रकट और अस्त होता है न तो (आत्मा) को मारता है, न ही (आत्मा द्वारा) मारा जाता है , पिता-पुत्र के रूप में वह चिरंतन विस्तृत हो रहा ब्रह्म ही है ।
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अहन् आह्नः पूर्वाह्नो मध्याह्नपराह्नो यः।
न हन्यते हन्यमानो अहानो विहानो तथा ॥
आत्मजो जनकस्तथा पौत्रप्रपौत्ररूपेण ।
कालो एव प्रवर्धते पित्रा कालेनैव प्रवर्धते ॥
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काल का वह रूप जो प्रतिदिन प्रकट और अस्त होता है न तो (आत्मा) को मारता है, न ही (आत्मा द्वारा) मारा जाता है , पिता-पुत्र के रूप में वह चिरंतन विस्तृत हो रहा ब्रह्म ही है ।
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