धर्म / संस्कृति, समाज / परिवार, राष्ट्र
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अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रः अमित्रस्य कुतो सुखम्।।
विद्या ददाति विनयं विनयादायाति पात्रता।
पात्रत्वेन धनमाप्नोति धनाद्धर्म ततो सुखम्।।
उपरोक्त दो श्लोक प्रायः सभी भारतीयों ने कभी-न-कभी पढ़े / सुने होंगे।
यह जानना रोचक होगा कि इन्दु (चंद्र) जो भारतवर्ष की भौगोलिक संस्कृति, समाज, भाषा और आचार-विचार तथा व्यवहार की एक धुरी है तो सूर्य इसकी दूसरी धुरी है। भारतीय वैदिक ज्योतिष (Astronomy) समस्त जगत में इसीलिए ज्ञान (knowledge), विज्ञान (Science), तंत्र (Technique), गणित (Mathematics), कला (Art), संगीत (Music) भाषा (Language) तथा भाषाशास्त्र (Linguistics / Philology), के लिए प्रेरणा-स्रोत रहा है इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
दुर्भाग्य से या किन्हीं पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर पिछली दो सदियों में मनुष्य मात्र की इस पूरी समूची अमूल्य धरोहर को इस प्रकार जानबूझकर विरूपित किया गया कि अब यह समझ पाना तक कठिन हो गया है कि किस प्रकार भारत (India) वैश्विक-आधार पर समूचे संसार की गौरवमयी विरासत (Heritage) है।
India, Indonesia, Indian-American, Red-Indian, Industry, Industrious, Indigenous, ये तमाम शब्द 'सिन्धु' से नहीं बल्कि 'इन्दु' से आए हैं यह सोचना खामखयाली नहीं हो सकता।
और हम कह सकते हैं कि अधिक संभव यही है इनका उद्गम 'इन्दु' से हुआ हो।
पिछली किसी पोस्ट में मैंने पिलुस्थान / Palestine के बारे में लिखा था।
उसमें यह उल्लेख करना भूल गया कि इस भौगोलिक स्थान में कुछ स्थान ऐसे हैं जिनका सादृश्य भारतीय वैदिक-पौराणिक साहित्य से है। BeerSheba, Jabale, Gaza का संबंध संस्कृत रूप वीरशैव, जाबालि/ जाबालृ से अवश्य है। Gibraltar, Gabriel जाबालि/ जाबालृ से वैसे ही संबद्ध हैं जैसे Emmanuel मनु से, Samuel शं / शामन से, ... 'अल्' प्रत्यय वैसे तो 'ऑल' (all) का मूल भी है किंतु अरेबिक तथा पर्सियन में लिप्यंतरण के प्रभाव से उपसर्ग का रूप ले लेता है। वैसे अरेबिक में यह 'इल्' के रूप में विकल्प की तरह भी प्रयुक्त होता है। 'इला' पृथ्वी को कहते हैं। इल उसी पृथ्वी का पुंलिंग रूप है और यह कथा कल्पित नहीं बल्कि ऐतिहासिक सत्य है जैसा कि इसे इसके मूल स्वरूप में पढ़ने से अनुमान किया जा सकता है। 'इलावृत्त' का और 'इल' नामक परम पराक्रमी राजा का वर्णन वाल्मीकि रामायण में किसी सर्ग में है। फ़्रेंच में यही article के रूप में अपने विशेष्य से पृथक होकर 'Le', 'les', 'la' हो जाता है।
संस्कृत पीलु का एक अर्थ है हाथी, दूसरा है खजूर, तीसरा है ऊँट, पहले दो अर्थ तो आकृति-साम्य से अर्थ-साम्य के उद्भव के उदाहरण हैं, जैसे दूरस्थ खजूर (ताड़) हाथ के खुले खड़े पंजे जैसा दिखाई देता है और हाथी जिसे 'हस्ति' कहा जाता है, भी अंगूठे-सहित चार उँगलियोंयुक्त पंजे की तरह दिखाई देता है। और हाथी का एक बहुत प्रचलित नाम है 'गज' ! इससे 'Gaza' की संगति दृष्टव्य है।
संस्कृत भाषा में न सिर्फ इस प्रकार से आकृति-साम्य से अर्थ-साम्य ग्रहण किया जाता है, imperative-sense के माध्यम से वस्तु-साम्य तक स्थापित किया जाता है। जैसे अर्जुन नामक वृक्ष (Terminalia Arjuna) का वर्णन करते समय 'अर्जुन' के पर्याय शब्दों का भी प्रयोग देखा जा सकता है। आयुर्वेद में ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं जहाँ किसी वनस्पति की संरचना (आकृति) किसी जीवित प्राणी से मिलती-जुलती होने से उसकी संज्ञा उस जीवित प्राणी के नाम की हो जाती है।
Brigitte Gabrielle का एक वीडिओ You-tube पर देखते हुए ख़याल आया कि Brigitte Gabrielle का नाम बृहत्-जाबाल का ही कालक्रम से प्रभावित रूप है। जाबालि (ऋषि) के बारे में मैंने पिछली कई पोस्ट्स में लिखा है। पौराणिक कथाओं में बृहस्पति (Jupiter) को देवताओं का गुरु कहा जाता है तो शुक्र (Venus) को दैत्यों का।
हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों भाई 'दैत्य' थे। यहाँ 'दैत्य' शब्द निंदापरक नहीं है बल्कि 'देवता' के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक है। 'दिति' और 'अदिति' दोनों बहनें ऋषि कश्यप की पत्नी थीं / हैं । 'दिति' के पुत्र 'दैत्य' हैं, किंतु सात 'मरुत्गण' भी 'दिति' के ही पुत्र हैं। जब 'दिति' गर्भवती थी तो उसका संकल्प था कि उसका होनेवाला पुत्र इंद्र का वध करेगा। क्योंकि इंद्र देवताओं का राजा है और देवता 'अदिति' की संतानें हैं।
यह कथा वेद में भी है और वाल्मीकि रामायण में भी है, जिसे पुराणों में भी पाया जाता है।
तात्पर्य यह कि वेद, पुराण, और रामायण तथा महाभारत आदि इतिहास-ग्रन्थ कल्पना से उपजे 'साहित्य' न होकर भिन्न-भिन्न शैली में लिखे गए भारतीय 'धर्मग्रन्थ' हैं जो अनेक स्तरों का समायोजन करते हैं।
वे आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक स्तरों के सत्यों की प्रस्तुति एक साथ करते हैं।
अर्थात् इनमें से प्रत्येक ही एक साथ सत्य के तीनों पक्षों का वर्णन अपनी अपनी शैली (genre) में करते हैं। इसलिए पुराण, और रामायण तथा महाभारत, जैसा कि हम समझते हैं, 'Mythology' कदापि नहीं है। वे दन्तकथा / लोककथा / या किंवदन्ती से बहुत भिन्न हैं।
'वेताल-कथा' या 'सिंहासन-बत्तीसी' भी इसी प्रकार संभवतः एक शैली है जो वेद, पुराण और रामायण तथा महाभारत, जैसी प्रामाणिक भले ही न हो केवल लोककथा या Mythology भर नहीं है।
स्कन्द-पुराण में उल्लेख है कि किस प्रकार भगवान् शङ्कर के विवाह के समय 'वेताल' शव के उसके वाहन पर चढ़कर उस बारात में शामिल हुआ।
यह वास्तव में रोंगटे खड़े करनेवाला 'सच' है कि 'वेताल' / Ghost किसी शव को आविष्ट कर उसमें अपनी 'आयु' व्यतीत करता है। जैसे 'मेघ' और 'मघवा' / मघवन् (इंद्र) तथा 'मघा' नक्षत्र, माघ मास परस्पर संबंधित हैं, और पूषा, पूषन् (सूर्य) और पौष मास परस्पर संबंधित हैं, वैसे ही 'वात' 'वाताल' 'वेताल' भी परस्पर संबंधित हैं।
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इस पोस्ट को यहीं विराम देता हूँ क्योंकि रामायण के उन ऐतिहासिक पात्रों का, -जिनका प्रसंगवश महर्षि वाल्मीकि ने उल्लेख किया है वर्तमान में क्या महत्व है और वे कैसे वे आज भी अत्यन्त प्रासंगिक और प्रभावशाली हैं इस बारे में विस्तार से लिख सकूँ।
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अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रः अमित्रस्य कुतो सुखम्।।
विद्या ददाति विनयं विनयादायाति पात्रता।
पात्रत्वेन धनमाप्नोति धनाद्धर्म ततो सुखम्।।
उपरोक्त दो श्लोक प्रायः सभी भारतीयों ने कभी-न-कभी पढ़े / सुने होंगे।
यह जानना रोचक होगा कि इन्दु (चंद्र) जो भारतवर्ष की भौगोलिक संस्कृति, समाज, भाषा और आचार-विचार तथा व्यवहार की एक धुरी है तो सूर्य इसकी दूसरी धुरी है। भारतीय वैदिक ज्योतिष (Astronomy) समस्त जगत में इसीलिए ज्ञान (knowledge), विज्ञान (Science), तंत्र (Technique), गणित (Mathematics), कला (Art), संगीत (Music) भाषा (Language) तथा भाषाशास्त्र (Linguistics / Philology), के लिए प्रेरणा-स्रोत रहा है इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
दुर्भाग्य से या किन्हीं पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर पिछली दो सदियों में मनुष्य मात्र की इस पूरी समूची अमूल्य धरोहर को इस प्रकार जानबूझकर विरूपित किया गया कि अब यह समझ पाना तक कठिन हो गया है कि किस प्रकार भारत (India) वैश्विक-आधार पर समूचे संसार की गौरवमयी विरासत (Heritage) है।
India, Indonesia, Indian-American, Red-Indian, Industry, Industrious, Indigenous, ये तमाम शब्द 'सिन्धु' से नहीं बल्कि 'इन्दु' से आए हैं यह सोचना खामखयाली नहीं हो सकता।
और हम कह सकते हैं कि अधिक संभव यही है इनका उद्गम 'इन्दु' से हुआ हो।
पिछली किसी पोस्ट में मैंने पिलुस्थान / Palestine के बारे में लिखा था।
उसमें यह उल्लेख करना भूल गया कि इस भौगोलिक स्थान में कुछ स्थान ऐसे हैं जिनका सादृश्य भारतीय वैदिक-पौराणिक साहित्य से है। BeerSheba, Jabale, Gaza का संबंध संस्कृत रूप वीरशैव, जाबालि/ जाबालृ से अवश्य है। Gibraltar, Gabriel जाबालि/ जाबालृ से वैसे ही संबद्ध हैं जैसे Emmanuel मनु से, Samuel शं / शामन से, ... 'अल्' प्रत्यय वैसे तो 'ऑल' (all) का मूल भी है किंतु अरेबिक तथा पर्सियन में लिप्यंतरण के प्रभाव से उपसर्ग का रूप ले लेता है। वैसे अरेबिक में यह 'इल्' के रूप में विकल्प की तरह भी प्रयुक्त होता है। 'इला' पृथ्वी को कहते हैं। इल उसी पृथ्वी का पुंलिंग रूप है और यह कथा कल्पित नहीं बल्कि ऐतिहासिक सत्य है जैसा कि इसे इसके मूल स्वरूप में पढ़ने से अनुमान किया जा सकता है। 'इलावृत्त' का और 'इल' नामक परम पराक्रमी राजा का वर्णन वाल्मीकि रामायण में किसी सर्ग में है। फ़्रेंच में यही article के रूप में अपने विशेष्य से पृथक होकर 'Le', 'les', 'la' हो जाता है।
संस्कृत पीलु का एक अर्थ है हाथी, दूसरा है खजूर, तीसरा है ऊँट, पहले दो अर्थ तो आकृति-साम्य से अर्थ-साम्य के उद्भव के उदाहरण हैं, जैसे दूरस्थ खजूर (ताड़) हाथ के खुले खड़े पंजे जैसा दिखाई देता है और हाथी जिसे 'हस्ति' कहा जाता है, भी अंगूठे-सहित चार उँगलियोंयुक्त पंजे की तरह दिखाई देता है। और हाथी का एक बहुत प्रचलित नाम है 'गज' ! इससे 'Gaza' की संगति दृष्टव्य है।
संस्कृत भाषा में न सिर्फ इस प्रकार से आकृति-साम्य से अर्थ-साम्य ग्रहण किया जाता है, imperative-sense के माध्यम से वस्तु-साम्य तक स्थापित किया जाता है। जैसे अर्जुन नामक वृक्ष (Terminalia Arjuna) का वर्णन करते समय 'अर्जुन' के पर्याय शब्दों का भी प्रयोग देखा जा सकता है। आयुर्वेद में ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं जहाँ किसी वनस्पति की संरचना (आकृति) किसी जीवित प्राणी से मिलती-जुलती होने से उसकी संज्ञा उस जीवित प्राणी के नाम की हो जाती है।
Brigitte Gabrielle का एक वीडिओ You-tube पर देखते हुए ख़याल आया कि Brigitte Gabrielle का नाम बृहत्-जाबाल का ही कालक्रम से प्रभावित रूप है। जाबालि (ऋषि) के बारे में मैंने पिछली कई पोस्ट्स में लिखा है। पौराणिक कथाओं में बृहस्पति (Jupiter) को देवताओं का गुरु कहा जाता है तो शुक्र (Venus) को दैत्यों का।
हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों भाई 'दैत्य' थे। यहाँ 'दैत्य' शब्द निंदापरक नहीं है बल्कि 'देवता' के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक है। 'दिति' और 'अदिति' दोनों बहनें ऋषि कश्यप की पत्नी थीं / हैं । 'दिति' के पुत्र 'दैत्य' हैं, किंतु सात 'मरुत्गण' भी 'दिति' के ही पुत्र हैं। जब 'दिति' गर्भवती थी तो उसका संकल्प था कि उसका होनेवाला पुत्र इंद्र का वध करेगा। क्योंकि इंद्र देवताओं का राजा है और देवता 'अदिति' की संतानें हैं।
यह कथा वेद में भी है और वाल्मीकि रामायण में भी है, जिसे पुराणों में भी पाया जाता है।
तात्पर्य यह कि वेद, पुराण, और रामायण तथा महाभारत आदि इतिहास-ग्रन्थ कल्पना से उपजे 'साहित्य' न होकर भिन्न-भिन्न शैली में लिखे गए भारतीय 'धर्मग्रन्थ' हैं जो अनेक स्तरों का समायोजन करते हैं।
वे आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक स्तरों के सत्यों की प्रस्तुति एक साथ करते हैं।
अर्थात् इनमें से प्रत्येक ही एक साथ सत्य के तीनों पक्षों का वर्णन अपनी अपनी शैली (genre) में करते हैं। इसलिए पुराण, और रामायण तथा महाभारत, जैसा कि हम समझते हैं, 'Mythology' कदापि नहीं है। वे दन्तकथा / लोककथा / या किंवदन्ती से बहुत भिन्न हैं।
'वेताल-कथा' या 'सिंहासन-बत्तीसी' भी इसी प्रकार संभवतः एक शैली है जो वेद, पुराण और रामायण तथा महाभारत, जैसी प्रामाणिक भले ही न हो केवल लोककथा या Mythology भर नहीं है।
स्कन्द-पुराण में उल्लेख है कि किस प्रकार भगवान् शङ्कर के विवाह के समय 'वेताल' शव के उसके वाहन पर चढ़कर उस बारात में शामिल हुआ।
यह वास्तव में रोंगटे खड़े करनेवाला 'सच' है कि 'वेताल' / Ghost किसी शव को आविष्ट कर उसमें अपनी 'आयु' व्यतीत करता है। जैसे 'मेघ' और 'मघवा' / मघवन् (इंद्र) तथा 'मघा' नक्षत्र, माघ मास परस्पर संबंधित हैं, और पूषा, पूषन् (सूर्य) और पौष मास परस्पर संबंधित हैं, वैसे ही 'वात' 'वाताल' 'वेताल' भी परस्पर संबंधित हैं।
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इस पोस्ट को यहीं विराम देता हूँ क्योंकि रामायण के उन ऐतिहासिक पात्रों का, -जिनका प्रसंगवश महर्षि वाल्मीकि ने उल्लेख किया है वर्तमान में क्या महत्व है और वे कैसे वे आज भी अत्यन्त प्रासंगिक और प्रभावशाली हैं इस बारे में विस्तार से लिख सकूँ।
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