पीलु
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जब 5 अगस्त 2016 को इस घर में रहने आया था तो मेरे घर के सामने 40 x 60 फुट का स्थान खाली था। इसका चौथाई स्थान मेरे घर के पीछे भी खाली था. मेरे घर के पड़ोस में लंबी-चौड़ी जगह थी जहाँ लोग कूड़ा-कचरा फेंकते थे। मेरे घर पर छत पर से मैं देवास टेकड़ी को देखा करता था। अब मेरे घर के आसपास की जगह पर सारी जगह दो-तीन मंज़िल ऊंचे भवनों से छिप गयी है और एक मोबाइल-टॉवर तो बस पड़ोस के ही भवन पर खड़ा हो गया है। ठीक सामने की 40 x 60 फुट की जगह पर बाँयी तरफ एक चौड़ा गेट छोड़कर पूरी जगह 30x50 फुट पर कार सर्विस का एक वर्कशॉप खुल गया है।
साल भर पहले तक दाईं ओर टेकड़ी तथा बाएँ पीलु (खजूर) का एक ऊंचा पेड़ दिखाई देता था वह पेड़ आज भी आसानी से दिखलाई देता है। आज तो वह बहुत भव्य दिखलाई दे रहा था। उसके नीचे या आसपास बहुत से स्ट्रीट लैंप हैं जो शाम होते ही दूधिया रौशनी से उसे नहला देते हैं। वह शान से तब और अधिक गौरवपूर्ण दिखलाई देता है।
याद आता है 19 मार्च 2016 को अंतिम रूप से उज्जैन छोड़ने के पहले वहाँ के कुछ अश्वत्थ वृक्ष भी ऐसे ही मुझे आकर्षित करते थे। 19 मार्च 2016 से 5 अगस्त 2016 के बीच नर्मदा किनारे नावघाट खेड़ी ग्राम में भी ऐसा ही एक अश्वत्थ (पीपल) था जिसकी सबसे ऊपरी फुनगी पर एक वानर शाम होते होते आकर बैठ जाता था और शायद रात भर वहीँ आराम करता था।
पीलु संस्कृत शब्द का अर्थ है खर्जूर (खजूर), बाण और हाथी।
इसका एक कारण यह भी है कि यह हाथ के पंजे जैसा दिखाई देता है।
हाथी को करि, हस्ती भी कहा जाता है।
पीलुस्थानं का अर्थ है ऐसा स्थान जहाँ खजूर के वृक्ष बहुतायत से पाए जाते हों।
इसका सज्ञात (cognate) हुआ फ़िलिस्तीन।
रेत और खजूर का तथा ऊँटों का आपसी रिश्ता तो तब से है जब ऋषि विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ से स्पर्धा करते हुए कौतूहलवश अपनी सृष्टि रची और भैंस, नारियल तथा ऊँट की रचना की।
भगवान् ब्रह्मा ने ऊँकार से सावित्री, सावित्री से गायत्री तथा गायत्री से इस जगत की सृष्टि की। ऋषि वसिष्ठ ने कामधेनु को ऋषि विश्वामित्र का सत्कार करने के लिए अभीष्ट वस्तुओं की सृष्टि करने का आदेश दिया तो विश्वामित्र ने उनसे कामधेनु गौ ही मांग ली। जब ऋषि वसिष्ठ ने गौ देने से इनकार कर दिया तो विश्वामित्र बलपूर्वक गौ को ले जाने लगे। तब गौ ने उनसे प्रार्थना की कि उससे ऐसा क्या अपराध हुआ है कि विश्वामित्र (जो तब राजा ही थे, न कि ऋषि) उसे बलपूर्वक ले जा रहे हैं और वे चुपचाप देख रहे हैं ! क्या उन्होंने उसे त्याग दिया है?
तब ऋषि वसिष्ठ ने कहा :
"मैं क्या कर सकता हूँ?"
तब गौ ने कहा :
तुम आदेश दो तो मैं ही स्वयं की रक्षा कर लूँ ?
तब वसिष्ठ ने कहा : "ठीक है।"
तब कामधेनु ने शक, यवन, पह्लव, काम्बोज, बर्बर आदि वीरों की सृष्टि की और उन्होंने विश्वामित्र की सेना का संहार किया।(वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 53, 54, 55)
गौ की हुँकार से तेजस्वी काम्बोज (हूण), थनों से शस्त्रधारी बर्बर, योनिदेश से यवन, और शकृदेश (गोबर के स्थान) से शक रोमकूपों से म्लेच्छ, हारीत और किरात उत्पन्न हुए।
हम देख सकते हैं कि आज भी उपरोक्त जातियाँ विश्व के भिन्न-भिन्न हिस्सों में पाई जाती हैं। बर्बर का अर्थ है बाबर, पह्लवी ईरान के पहलवी हैं, काम्बोज (हूण) Cambodia, यवन -Jew, शक / Czech, म्लेच्छ Malakka / Melaka (Malaysia) आदि।
पीलू का अपभ्रंश हुआ फील जो शतरंज में rook / हाथी है, जबकि रेगिस्तान अर्थात् फिलिस्तीन में ऊँट।
शतरंज में ऊँट / Bishop को फर्ज़ी कहा जाता है।
"प्यादे से फर्ज़ी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाए ..."
प्यादा / पदातिक / पादिकं / पायिकं / पादिन् / pawn .
भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक राग है पीलु जिसे गजगामिनी भी कहा जा सकता है, इसमें 'ग' और 'नि ' दोनों शुद्ध तथा कोमल हैं और इसकी गति ऐसी ही है जैसे किसी अलसाई ढलती दोपहर में दिन का पंछी उड़ता जाए अपने बसेरे की ओर रात्रि विश्राम के लिए।
यह पीलु वृक्ष भी हर शाम को प्रायः ऐसे ही मंद-मंद डोलता रहता है।
किंतु पीलु-माहात्म्य इतने तक ही सीमित नहीं है।
यह दो शब्दों का जनक है पहला है Philo-, दूसरा है People ,
पीलुस्प्रिय से बना फिलोसॉफी / फलसफ़ा और पीलुलोकीय से बना Philology.
पुनः यह जानना रोचक हो सकता है कि फ़िलिस्तीन को फ़लस्तीन भी कहा जा सकता है जो फलस्थान का ही एक रूप है।
रेगिस्तान में, जहाँ 'एरण्डोऽपि द्रुमायते';
-खजूर ही तो एकमात्र फलदार वृक्ष होता है !
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और इस फिलिस्तीन से संबद्ध है मानव-इतिहास का वह काल जब पाँच परंपराएँ / सँस्कृतियाँ वहाँ आईं और उनमें से अंततः तीन ही शेष रह गईं जिन्हें 'धर्म' कहा जाने लगा। मिस्र (Egypt) तथा ग्रीक (Greek) तो लगभग लुप्तप्राय हो गईं और इन तीन ने उनका स्थान ले लिया।
कौन हैं ये लोग?
अगली कुछ पोस्ट्स में रामायण के सन्दर्भ में।
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जब 5 अगस्त 2016 को इस घर में रहने आया था तो मेरे घर के सामने 40 x 60 फुट का स्थान खाली था। इसका चौथाई स्थान मेरे घर के पीछे भी खाली था. मेरे घर के पड़ोस में लंबी-चौड़ी जगह थी जहाँ लोग कूड़ा-कचरा फेंकते थे। मेरे घर पर छत पर से मैं देवास टेकड़ी को देखा करता था। अब मेरे घर के आसपास की जगह पर सारी जगह दो-तीन मंज़िल ऊंचे भवनों से छिप गयी है और एक मोबाइल-टॉवर तो बस पड़ोस के ही भवन पर खड़ा हो गया है। ठीक सामने की 40 x 60 फुट की जगह पर बाँयी तरफ एक चौड़ा गेट छोड़कर पूरी जगह 30x50 फुट पर कार सर्विस का एक वर्कशॉप खुल गया है।
साल भर पहले तक दाईं ओर टेकड़ी तथा बाएँ पीलु (खजूर) का एक ऊंचा पेड़ दिखाई देता था वह पेड़ आज भी आसानी से दिखलाई देता है। आज तो वह बहुत भव्य दिखलाई दे रहा था। उसके नीचे या आसपास बहुत से स्ट्रीट लैंप हैं जो शाम होते ही दूधिया रौशनी से उसे नहला देते हैं। वह शान से तब और अधिक गौरवपूर्ण दिखलाई देता है।
याद आता है 19 मार्च 2016 को अंतिम रूप से उज्जैन छोड़ने के पहले वहाँ के कुछ अश्वत्थ वृक्ष भी ऐसे ही मुझे आकर्षित करते थे। 19 मार्च 2016 से 5 अगस्त 2016 के बीच नर्मदा किनारे नावघाट खेड़ी ग्राम में भी ऐसा ही एक अश्वत्थ (पीपल) था जिसकी सबसे ऊपरी फुनगी पर एक वानर शाम होते होते आकर बैठ जाता था और शायद रात भर वहीँ आराम करता था।
पीलु संस्कृत शब्द का अर्थ है खर्जूर (खजूर), बाण और हाथी।
इसका एक कारण यह भी है कि यह हाथ के पंजे जैसा दिखाई देता है।
हाथी को करि, हस्ती भी कहा जाता है।
पीलुस्थानं का अर्थ है ऐसा स्थान जहाँ खजूर के वृक्ष बहुतायत से पाए जाते हों।
इसका सज्ञात (cognate) हुआ फ़िलिस्तीन।
रेत और खजूर का तथा ऊँटों का आपसी रिश्ता तो तब से है जब ऋषि विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ से स्पर्धा करते हुए कौतूहलवश अपनी सृष्टि रची और भैंस, नारियल तथा ऊँट की रचना की।
भगवान् ब्रह्मा ने ऊँकार से सावित्री, सावित्री से गायत्री तथा गायत्री से इस जगत की सृष्टि की। ऋषि वसिष्ठ ने कामधेनु को ऋषि विश्वामित्र का सत्कार करने के लिए अभीष्ट वस्तुओं की सृष्टि करने का आदेश दिया तो विश्वामित्र ने उनसे कामधेनु गौ ही मांग ली। जब ऋषि वसिष्ठ ने गौ देने से इनकार कर दिया तो विश्वामित्र बलपूर्वक गौ को ले जाने लगे। तब गौ ने उनसे प्रार्थना की कि उससे ऐसा क्या अपराध हुआ है कि विश्वामित्र (जो तब राजा ही थे, न कि ऋषि) उसे बलपूर्वक ले जा रहे हैं और वे चुपचाप देख रहे हैं ! क्या उन्होंने उसे त्याग दिया है?
तब ऋषि वसिष्ठ ने कहा :
"मैं क्या कर सकता हूँ?"
तब गौ ने कहा :
तुम आदेश दो तो मैं ही स्वयं की रक्षा कर लूँ ?
तब वसिष्ठ ने कहा : "ठीक है।"
तब कामधेनु ने शक, यवन, पह्लव, काम्बोज, बर्बर आदि वीरों की सृष्टि की और उन्होंने विश्वामित्र की सेना का संहार किया।(वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 53, 54, 55)
गौ की हुँकार से तेजस्वी काम्बोज (हूण), थनों से शस्त्रधारी बर्बर, योनिदेश से यवन, और शकृदेश (गोबर के स्थान) से शक रोमकूपों से म्लेच्छ, हारीत और किरात उत्पन्न हुए।
हम देख सकते हैं कि आज भी उपरोक्त जातियाँ विश्व के भिन्न-भिन्न हिस्सों में पाई जाती हैं। बर्बर का अर्थ है बाबर, पह्लवी ईरान के पहलवी हैं, काम्बोज (हूण) Cambodia, यवन -Jew, शक / Czech, म्लेच्छ Malakka / Melaka (Malaysia) आदि।
पीलू का अपभ्रंश हुआ फील जो शतरंज में rook / हाथी है, जबकि रेगिस्तान अर्थात् फिलिस्तीन में ऊँट।
शतरंज में ऊँट / Bishop को फर्ज़ी कहा जाता है।
"प्यादे से फर्ज़ी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाए ..."
प्यादा / पदातिक / पादिकं / पायिकं / पादिन् / pawn .
भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक राग है पीलु जिसे गजगामिनी भी कहा जा सकता है, इसमें 'ग' और 'नि ' दोनों शुद्ध तथा कोमल हैं और इसकी गति ऐसी ही है जैसे किसी अलसाई ढलती दोपहर में दिन का पंछी उड़ता जाए अपने बसेरे की ओर रात्रि विश्राम के लिए।
यह पीलु वृक्ष भी हर शाम को प्रायः ऐसे ही मंद-मंद डोलता रहता है।
किंतु पीलु-माहात्म्य इतने तक ही सीमित नहीं है।
यह दो शब्दों का जनक है पहला है Philo-, दूसरा है People ,
पीलुस्प्रिय से बना फिलोसॉफी / फलसफ़ा और पीलुलोकीय से बना Philology.
पुनः यह जानना रोचक हो सकता है कि फ़िलिस्तीन को फ़लस्तीन भी कहा जा सकता है जो फलस्थान का ही एक रूप है।
रेगिस्तान में, जहाँ 'एरण्डोऽपि द्रुमायते';
-खजूर ही तो एकमात्र फलदार वृक्ष होता है !
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और इस फिलिस्तीन से संबद्ध है मानव-इतिहास का वह काल जब पाँच परंपराएँ / सँस्कृतियाँ वहाँ आईं और उनमें से अंततः तीन ही शेष रह गईं जिन्हें 'धर्म' कहा जाने लगा। मिस्र (Egypt) तथा ग्रीक (Greek) तो लगभग लुप्तप्राय हो गईं और इन तीन ने उनका स्थान ले लिया।
कौन हैं ये लोग?
अगली कुछ पोस्ट्स में रामायण के सन्दर्भ में।
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