Friday, 4 January 2019

यातयाम / गतयाम - 18

अष्टादश / 18 
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गीता अध्याय 17 श्लोक 10 :
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।
उच्छिष्टं चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।
अर्थ :
गत-रात्रि में जिसे बनाया गया था, जिसकी ताज़गी समाप्त हो गयी हो, जो दुर्गन्धयुक्त हो चुका है, और बहुत समय बीत जाने से जो बासी हो, जो किसी के द्वारा खाए जाने से बचा हुआ (जूठन) और अभक्ष्य हो, ऐसा भोजन तामसी प्रवृत्ति से प्रेरित मनुष्यों को प्रिय होता है।
Meaning :
Men given with 'tAmasika' / Sloth  tendencies find pleasure in eating the food that has been prepared a night ago, stale, has lost freshness, has foul smell, that has been rotten, left-over by another after eaten a part of, and is unhealthy / unhygienic so is not fit to be eaten.
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मुण्डकोपनिषद् - 1 / 2 / 7
प्लवा ह्येते अदृढा यज्ञरूपा अष्टादशोक्तमवरं येषु कर्म।
एतच्छ्रेयो येऽभिनन्दति मूढा जरामृत्युं ते पुनरापि यन्ति।।
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अर्थ :
स्वर्ग आदि मरणोत्तर जीवन के लोभों या लौकिक यश, पुत्र, राज्य तथा धन की कामना से लालायित होकर वैदिक कर्मकांडरूपी यज्ञ आदि के द्वारा जिनके कर्म 18 (अर्थात् अनेक विविध) प्रकार के होते हैं, और जो इनमें बहुत प्रसन्नता और गौरव अनुभव करते हैं, और इस प्रकार बुढ़ापे और मृत्यु की और ही बारम्बार खींचे जाते हैं, वे ऐसी ही गति को प्राप्त करते हैं।
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Meaning :
Those prompted by a desire for the worldly gains like sons, wealth and power or name and fame here, or 'heaven' in the after-life, perform scriptural sacrifices and feel glorified in it, keep revolving in the cycle of repeated births, old-age and deaths.
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द्वादशपञ्जरिका स्तोत्रं - श्लोक 18
का तेऽष्टादशदेशे चिन्ता वातुल तव किं नास्ति नियन्ता।
यस्त्वां हस्ते सुदृढनिबद्धं बोधयति प्रभवादिविरुद्धम्।।
(शंकराचार्य-रचित)
अर्थ :
हे मनुष्य! तुम्हें यह अट्ठारह प्रकार की चिन्ताएँ क्यों हैं ? क्यों तुम वायु की तरह इतने चंचल-चित्त हो? क्या तुम्हारा कोई नियंता नहीं है (जो तुम्हें सुस्थिर रख सके) ? जो तुम्हारे दोनों हाथों को दृढ़तापूर्वक बांधकर तुम्हे ऐसा बोध प्रदान कर सके जिससे तुम प्रभव-आदि (पुनः पुनः होने वाले जन्मों के चक्र) से छूट जाओ?
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Meaning :
O Man! Why are troubled by the 18 kinds of worries? Why your mind is so wavering, unsteady flickering like the winds? Is there no-one who can make calm and stable ? Who can catch you by your both hands and give you such a wisdom so that you can get rid of the many rebirths and stay in the Freedom from the sorrow for ever?
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Remark :
Just a coincidence !
While writing this I had the year 2018 in my mind and by some coincidence got to read a piece about "Train 18".
टिप्पणी :
इस पोस्ट को लिखते समय यद्यपि मैं वर्ष 2018 के बारे में सोच रहा था कि तभी संयोगवश मेरी नज़र
 "Train 18" से संबंधित खबर पर पड़ी !
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