Saturday, 17 November 2018

विवस्वान् पथ / vivasvān-patha

॥ सनातन-पथ ॥
॥ sanātana-patha ॥
॥ विवस्वान् पथ ॥
॥ त्रिशङ्कु-पथ ॥
॥ vivasvān-patha ॥
॥ triśaṅku-patha ॥
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gsat 29
वाल्मीकि-रामायण
बालकाण्ड सर्ग 60
एवमुक्ताः सुराः सर्वे प्रत्यूचुर्मुनिपुङ्गवम् ।
एवं भवतु भद्रं ते तिष्ठन्त्वेतानि  सर्वशः ॥30
गगने तान्यनेकानि वैश्वानरपथाद् बहिः।
नक्षत्राणि मुनिश्रेष्ठ तेषु ज्योतिःषु जाज्वलन् ॥31
अवाक्शिरास्त्रिशङ्कुश्च तिष्ठत्वमरसंनिभः।
अनुयास्यन्ति चैतानि ज्योतींषि नृपसत्तमम् ॥32  
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विवस्वान् पथ
इसी ब्लॉग में 'नाडी-सूत्र' या दूसरी किसी पोस्ट में मैंने उल्लेख किया है कि किस प्रकार एक रस्सी में बँधे कुछ पिंडों या पत्थरों को वेगपूर्वक गोल घुमाने से परस्पर बँधे होने से वे सभी पत्थर एक ही समतल (plane) में स्थित भिन्न-भिन्न परिधियों में घूमते हैं, इसी प्रकार सौरमंडल में सूर्य के विभिन्न उपग्रह अर्थात् बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि भी गुरुत्वाकर्षण रूपी डोरी में बँधे हुए अपनी अपनी कक्षाओं में, किंतु एक ही समतल में गतिमान रहते हैं।  यदि सूर्य के इन उपग्रहों को बिंदु मान लें तो वह समतल (plane) उसी प्रमाण से वह समतल होगा यह माना जा सकता है। यह संपूर्ण समतल जिसमें स्थित एक बिंदु पर सूर्य ग्रहों की कक्षारूपी इन वृत्तों के केंद्र पर स्थित है, 'विवस्वान् पथ' है।  इस सन्दर्भ में देखें तो यद्यपि ऋषि विश्वामित्र त्रिशङ्कु को इस विवस्वान् पथ अर्थात् सुरलोक में सशरीर भेज रहे थे, किंतु इंद्र ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया तब देवता ऋषि विश्वामित्र के कोप से डर गए और अंततः त्रिशङ्कु को 'विवस्वान् पथ' से हटकर, सप्तर्षि के दक्षिण में आकाश में नक्षत्र-मंडल में स्थान दिया गया, जहाँ वह सृष्टि के रहने तक विद्यमान रहेंगे। 
'त्रिशङ्कु' शब्द से स्पष्ट है कि यह एक उपग्रह (सैटेलाइट) है जिसके तीन ओर तीन शंकु (cone) हैं, जैसे कि  आधुनिक युग में भी सैटेलाइट्स में हुआ करते हैं। 
इस प्रकार जिस विराट प्रमाण पर सृष्टि की रचना हुई उसी प्रमाण पर यह उपग्रह त्रिशङ्कु' कैसे स्थापित किया गया यह भी दृष्टव्य है।  ऋषि वसिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र भी इसी प्रमाण की सत्ताएँ हैं और मनुष्य रूप में भी वे ही वही ऐतिहासिक महापुरुष भी थे जिनका रामायण में उल्लेख है।
अच्छा तो यह होगा कि इस प्रकरण को ठीक से समझने के लिए इस पूरे सर्ग का अध्ययन किया जाए।
थोड़ा लिखा, बहुत समझना !
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