सप्तलोकाः / saptalokāḥ
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संत ज्ञानेश्वर कृत इस excel-chart में कॉलम 5 में सात लोकों का स्थान नीचे से ऊपर की ओर क्रमशः
भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, एवं सत्यम् है।
स्पष्ट है कि यहाँ नभोलोक को तप के स्थान पर रखा गया है।
वास्तव में इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि तप का प्रकार चेतन-सत्ता अर्थात् 'पुरुष-तत्व' या 'प्राकृति-तत्त्व' की प्रधानता या अनुपात के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है। यद्यपि एक ही चैतन्य सत्ता जड, चेतन एवं चैतन्य के तीन प्रकारों में अव्यक्त-व्यक्त है , इस अनभिव्यक्ति / अभिव्यक्ति का आधार (अधिष्ठान नहीं) 'लोक' ही है, जो सर्वोच्च स्तर पर क्रम (row) में सत्यम् अर्थात् सतोलोक के ठीक ऊपर ब्रह्मलोक, वैकुण्ठलोक तथा शिवलोक के रूप में भी अनुभव किया जाता है और तीनों सतोगुण तथा आनंदलोक के मध्य स्थित हैं।
संत ज्ञानेश्वर की शिक्षा के प्रकाश में ये पाँचों ही मनुष्य की परम सद्गति, पूर्णता के पर्याय हैं।
chart का प्रथम वर्ग inertia / प्रगाढ़ तमोगुण से ढँका है जो नासदीय-सूक्त (ऋग्वेद मंडल 10 , सूक्त 129) का द्योतक है। chart का द्वितीय वर्ग रजोगुण (स्फुरण) का द्योतक है। जीव, ब्रह्म / ब्रह्मा, शिव, विष्णु, इस 'स्फुरण' से ही लोकवत् भासते हैं। तीनों 'गुण' त्रिगुणात्मिका 'प्रकृति' है।
इस प्रकार 'पुरुष' और 'प्रकृति' एकमेव सत्ता हैं तथापि अभिव्यक्ति के रूप में विविध और भिन्न भिन्न हैं।
'स्फुरण' पुनः प्रथमतः 'अहं' और बाद में 'इदं' के रूप में स्वयं को विभाजित कर लेता प्रतीत होता है।
गीता अध्याय 7 श्लोक 14 में भगवान श्रीकृष्ण इसी सत्य को इंगित करते हुए अर्जुन से कहते हैं :
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥
भगवान विष्णु का नीलवर्ण नभोलोक का रंग है।
नि + इल से बना नील पृथिवीतत्त्व के अत्यंत अभाव का सूचक है, वहीं न + भ से बना 'नभ' विष्णु की नाभि है जिससे ब्रह्मा का आविर्भाव (manifestation) होता है।
पुनः एक बार देखें :
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संत ज्ञानेश्वर कृत इस excel-chart में कॉलम 5 में सात लोकों का स्थान नीचे से ऊपर की ओर क्रमशः
भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, एवं सत्यम् है।
स्पष्ट है कि यहाँ नभोलोक को तप के स्थान पर रखा गया है।
वास्तव में इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि तप का प्रकार चेतन-सत्ता अर्थात् 'पुरुष-तत्व' या 'प्राकृति-तत्त्व' की प्रधानता या अनुपात के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है। यद्यपि एक ही चैतन्य सत्ता जड, चेतन एवं चैतन्य के तीन प्रकारों में अव्यक्त-व्यक्त है , इस अनभिव्यक्ति / अभिव्यक्ति का आधार (अधिष्ठान नहीं) 'लोक' ही है, जो सर्वोच्च स्तर पर क्रम (row) में सत्यम् अर्थात् सतोलोक के ठीक ऊपर ब्रह्मलोक, वैकुण्ठलोक तथा शिवलोक के रूप में भी अनुभव किया जाता है और तीनों सतोगुण तथा आनंदलोक के मध्य स्थित हैं।
संत ज्ञानेश्वर की शिक्षा के प्रकाश में ये पाँचों ही मनुष्य की परम सद्गति, पूर्णता के पर्याय हैं।
chart का प्रथम वर्ग inertia / प्रगाढ़ तमोगुण से ढँका है जो नासदीय-सूक्त (ऋग्वेद मंडल 10 , सूक्त 129) का द्योतक है। chart का द्वितीय वर्ग रजोगुण (स्फुरण) का द्योतक है। जीव, ब्रह्म / ब्रह्मा, शिव, विष्णु, इस 'स्फुरण' से ही लोकवत् भासते हैं। तीनों 'गुण' त्रिगुणात्मिका 'प्रकृति' है।
इस प्रकार 'पुरुष' और 'प्रकृति' एकमेव सत्ता हैं तथापि अभिव्यक्ति के रूप में विविध और भिन्न भिन्न हैं।
'स्फुरण' पुनः प्रथमतः 'अहं' और बाद में 'इदं' के रूप में स्वयं को विभाजित कर लेता प्रतीत होता है।
गीता अध्याय 7 श्लोक 14 में भगवान श्रीकृष्ण इसी सत्य को इंगित करते हुए अर्जुन से कहते हैं :
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥
भगवान विष्णु का नीलवर्ण नभोलोक का रंग है।
नि + इल से बना नील पृथिवीतत्त्व के अत्यंत अभाव का सूचक है, वहीं न + भ से बना 'नभ' विष्णु की नाभि है जिससे ब्रह्मा का आविर्भाव (manifestation) होता है।
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