ध्वनितार्थ / पञ्चमहाभूत
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खं ब्रह्म >
’क्’ से वर्णों की अभिव्यक्ति प्रारंभ होती है ।
’क्’ > कण्ठ्य वर्ण क्रमशः
क्, ख्, ग्, घ्, तथा ङ् हैं ।
कोऽयम् आत्मा ?
कः अयम् आत्मा ।
’क’ यह आत्मतत्व है ।
’ख’ ब्रह्म है ।
’क’ पुंल्लिङ्ग है,
’ख’ नपुंसकलिङ्ग है ।
ब्रह्म पुनः कारण-ब्रह्म और कार्यब्रह्म है ।
ध्वनि ब्रह्माणी अर्थात् सरस्वती, वाक् है ।
पञ्चमहाभूत क्रमशः :
भू, भुवः, स्वः, महः, जनः हैं ।
स्थूल जड पञ्चभूत (इन्द्रियगम्य) पृथ्वी, आप, वायु, आकाश और तेज हैं ।
सूक्ष्म चेतन इन्द्रियात्मक / आधिदैविक
गंध, रस, स्पर्श, शब्द तथा आलोक (द्युति) हैं ।
[इन्हें तन्मात्रा भी कहा जाता है ]
ये ही पाँच देवता तत्व हैं जो चर-अचर सृष्टि का जीवन हैं ।
ये पाँच स्थूल और सूक्ष्म, जड तथा चेतन महाभूत समष्टि जीव, जगत तथा देवता हैं ।
चूँकि बुद्धि में वे परस्पर भिन्न प्रतीत होते हैं और बुद्धि स्वयं भी तेज अर्थात् अग्नि तत्व है इसलिए बुद्धि उनमें श्रेष्ठतम है ।
बुद्धि स्वयं भी पुनः यांत्रिक या कृत्रिम प्रकार की होती है जिसका आदान-प्रदान किया जा सकता है ।
दूसरी ओर बुद्धि स्वयं देवता-रूप में अग्नि (द्युति) की तरह स्वयं को अभिव्यक्त करती है जिसका उद्गम कहाँ से होता है और कहाँ वह लौट जाती है इसका अनुमान इस कृत्रिम या यांत्रिक बुद्धि से किया जाना संभव नहीं, इसलिए उसका अधिष्ठान अंतरिक्ष है जो आकाश से भी सूक्ष्मतर तथा अन्तर्बाह्य दोनों स्तरों पर काल-स्थान से अव्याहत है । वह है परब्रह्म ।
किंतु परात्पर ब्रह्म जो स्वरूपतः द्वैतरहित है ब्रह्म तथा परब्रह्म के भेद से भी रहित है ।
ध्वनित अर्थ का प्रयोजन है भाषारहित संवेदन को भाषा में ध्वनि-रूप में कहना ।
इसलिए इस ध्वनि-रूप भाषा के असंख्य रूप और प्रकार होते हैं ।
माध्यम अर्थात् जिस चेतन-तत्व में सूक्ष्म मनोमय इन्द्रिय से उनका उद्गम और अनुभव पाया जाता है, वह स्वयं उपाधिरहित निरपेक्ष चेतना मात्र है । देह-विशेष में सूक्ष्म मनोमय इन्द्रियों की विद्यमानता होने पर उनके समूह को एकत्व प्रदान करनेवाली औपाधिक सत्ता है इन्द्र ।
पञ्च महाभूतों के चेतन स्वरूप की अभिव्यक्ति :
पृथ्वी > ख़ाक > ख़ाकी खं ब्रह्म की शक्ति है ।
आप > आब > आबी जल तत्व की शक्ति है ।
वायु > वात > बाद > बादी वायु तत्व की शक्ति है ।
आकाश > आ समान > आसमान > आकाश तत्व की शक्ति है ।
अग्नि > तेज > आ तेजस् > आतिश अग्नि तत्व की शक्ति है ।
इन सबकी सम्मिलित और समष्टि पुनः ’ख’ > ’खलीय’ ख़लाई आत्म-शक्ति है ।
इसलिए प्राणिमात्र में ये पाँचों मिलकर ही उसके आत्मस्वरूप को निर्धारित करते हैं ।
पुनः यह पूरी प्रक्रिया मूलतः भाषा से रहित है, किंतु इसे व्यक्त करने के लिए तो शब्द ही प्रथम और अंतिम आधार है ।
यह हुआ शब्द-ब्रह्म ।
शब्द-ब्रह्म इस प्रकार प्रक्रिया, उसकी ध्वनि तथा ध्वनि से संबद्ध तात्पर्य इन सब रूपों में ग्राह्य है ।
दूसरी ओर, शब्द-ब्रह्म ही बीजमन्त्रों और प्रार्थनाओं का आधार है ।
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सनातन पथ / आलोक पथ / ध्वनितार्थ
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खं ब्रह्म >
’क्’ से वर्णों की अभिव्यक्ति प्रारंभ होती है ।
’क्’ > कण्ठ्य वर्ण क्रमशः
क्, ख्, ग्, घ्, तथा ङ् हैं ।
कोऽयम् आत्मा ?
कः अयम् आत्मा ।
’क’ यह आत्मतत्व है ।
’ख’ ब्रह्म है ।
’क’ पुंल्लिङ्ग है,
’ख’ नपुंसकलिङ्ग है ।
ब्रह्म पुनः कारण-ब्रह्म और कार्यब्रह्म है ।
ध्वनि ब्रह्माणी अर्थात् सरस्वती, वाक् है ।
पञ्चमहाभूत क्रमशः :
भू, भुवः, स्वः, महः, जनः हैं ।
स्थूल जड पञ्चभूत (इन्द्रियगम्य) पृथ्वी, आप, वायु, आकाश और तेज हैं ।
सूक्ष्म चेतन इन्द्रियात्मक / आधिदैविक
गंध, रस, स्पर्श, शब्द तथा आलोक (द्युति) हैं ।
[इन्हें तन्मात्रा भी कहा जाता है ]
ये ही पाँच देवता तत्व हैं जो चर-अचर सृष्टि का जीवन हैं ।
ये पाँच स्थूल और सूक्ष्म, जड तथा चेतन महाभूत समष्टि जीव, जगत तथा देवता हैं ।
चूँकि बुद्धि में वे परस्पर भिन्न प्रतीत होते हैं और बुद्धि स्वयं भी तेज अर्थात् अग्नि तत्व है इसलिए बुद्धि उनमें श्रेष्ठतम है ।
बुद्धि स्वयं भी पुनः यांत्रिक या कृत्रिम प्रकार की होती है जिसका आदान-प्रदान किया जा सकता है ।
दूसरी ओर बुद्धि स्वयं देवता-रूप में अग्नि (द्युति) की तरह स्वयं को अभिव्यक्त करती है जिसका उद्गम कहाँ से होता है और कहाँ वह लौट जाती है इसका अनुमान इस कृत्रिम या यांत्रिक बुद्धि से किया जाना संभव नहीं, इसलिए उसका अधिष्ठान अंतरिक्ष है जो आकाश से भी सूक्ष्मतर तथा अन्तर्बाह्य दोनों स्तरों पर काल-स्थान से अव्याहत है । वह है परब्रह्म ।
किंतु परात्पर ब्रह्म जो स्वरूपतः द्वैतरहित है ब्रह्म तथा परब्रह्म के भेद से भी रहित है ।
ध्वनित अर्थ का प्रयोजन है भाषारहित संवेदन को भाषा में ध्वनि-रूप में कहना ।
इसलिए इस ध्वनि-रूप भाषा के असंख्य रूप और प्रकार होते हैं ।
माध्यम अर्थात् जिस चेतन-तत्व में सूक्ष्म मनोमय इन्द्रिय से उनका उद्गम और अनुभव पाया जाता है, वह स्वयं उपाधिरहित निरपेक्ष चेतना मात्र है । देह-विशेष में सूक्ष्म मनोमय इन्द्रियों की विद्यमानता होने पर उनके समूह को एकत्व प्रदान करनेवाली औपाधिक सत्ता है इन्द्र ।
पञ्च महाभूतों के चेतन स्वरूप की अभिव्यक्ति :
पृथ्वी > ख़ाक > ख़ाकी खं ब्रह्म की शक्ति है ।
आप > आब > आबी जल तत्व की शक्ति है ।
वायु > वात > बाद > बादी वायु तत्व की शक्ति है ।
आकाश > आ समान > आसमान > आकाश तत्व की शक्ति है ।
अग्नि > तेज > आ तेजस् > आतिश अग्नि तत्व की शक्ति है ।
इन सबकी सम्मिलित और समष्टि पुनः ’ख’ > ’खलीय’ ख़लाई आत्म-शक्ति है ।
इसलिए प्राणिमात्र में ये पाँचों मिलकर ही उसके आत्मस्वरूप को निर्धारित करते हैं ।
पुनः यह पूरी प्रक्रिया मूलतः भाषा से रहित है, किंतु इसे व्यक्त करने के लिए तो शब्द ही प्रथम और अंतिम आधार है ।
यह हुआ शब्द-ब्रह्म ।
शब्द-ब्रह्म इस प्रकार प्रक्रिया, उसकी ध्वनि तथा ध्वनि से संबद्ध तात्पर्य इन सब रूपों में ग्राह्य है ।
दूसरी ओर, शब्द-ब्रह्म ही बीजमन्त्रों और प्रार्थनाओं का आधार है ।
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सनातन पथ / आलोक पथ / ध्वनितार्थ
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