Friday, 21 September 2018

फिज़िक्स Physics और साइक् psyche

मनस्तत्व : चित् और चित्त 
(घटना, प्रसंग और कल्पना)
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स्मृति / memory, अतीत / past, विचार / thought, पहचान / recognition,
कल्पना के अन्तर्गत चित्त में घटित होनेवाले चार प्रकार हैं ।
"चित्तं चिद्विजानीयात् तकाररहितं यदा ।
तकार विषयाध्यासो ... ... ... "
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फिज़िक्स Physics और साइक् psyche 
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पुनः एक बार मोनो, बाई, ट्राई, तथा मल्टीव्हील वेहिकल का उदाहरण लें ।
ये चारों अर्थात् स्मृति, अतीत, विचार, पहचान चार पहिए हैं ।
केवल एक का चल पाना कठिन है ।
किन्हीं दो को परस्पर जोड़कर चलाया जाना कुछ आसान है ।
किन्हीं तीनों को संयोजित कर चलाया जाना और अधिक आसान है ।
इससे अधिक पहिए होने की स्थिति में उनके केन्द्रों से बनने वाले तलों की संख्या के और वाहन के गुरुत्व केन्द्र के सामञ्जस्य के अनुसार यह सुनिश्चित होता है ।
इसी प्रकार स्मृति, अतीत, विचार और पहचान मनरूपी वाहन के सही ढंग से संचालित होने को तय करते हैं ।
ये चारों कारक यद्यपि परस्पर भिन्न दिखलाई देते हैं किंतु व्यावहारिक धरातल पर एक ही ’अवस्था’ अर्थात् मन के रूप में ग्रहण किए जाते हैं । विश्लेषणपरक दृष्टि से देखने पर बुद्धि के अन्तर्गत वे अलग-अलग प्रतीत होना बुद्धि का भ्रम है ।
यह ध्यान देने योग्य है कि :
क्या स्मृति के अभाव में अतीत, विचार और पहचान संभव हैं?
क्या अतीत के अभाव में स्मृति, विचार और पहचान संभव हैं?
क्या विचार के अभाव में स्मृति, अतीत, और पहचान संभव हैं?
क्या पहचान के अभाव में स्मृति, अतीत, और विचार संभव हैं?
संक्षेप में ये चारों कारक यद्यपि भिन्न भिन्न नाम से जाने जाते हैं कार्य और प्रभाव के रूप में वे मन में ही निर्मित किसी घटना / प्रसंग की मनोनिर्मित प्रतिमा मात्र होते हैं ।प्रतिमा की तरह वे घटना / प्रसंग की वास्तविकता से अत्यंत दूर और अत्यंत भिन्न होते हैं । वे अधिक से अधिक घटना या प्रसंग की एक व्याख्या भर हो सकते हैं जिसका अक्षरशः सही होना असंभव है, क्योंकि ऐसी असंख्य व्याख्याएँ सदा की जाती हैं और एक ही मनुष्य भी संदर्भ और प्रयोजन / आवश्यकता के अनुसार पूर्वाग्रहपूर्ण किसी व्याख्या से संतुष्ट होकर उसका दुरुपयोग कर सकता है और स्वयं भी भ्रमित हो सकता है ।
मनुष्य, सभ्यताओं, संस्कृतियों, धर्मों, परंपराओं, मूल्यों आदि का आधार ऐसी ही असंख्य व्याख्याएँ हैं जिनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है ।
यह तथ्य न केवल व्यक्ति, बल्कि समाज तथा समूची मनुष्य जाति पर भी लागू होता है ।
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मनस्तत्व : चित् और चित्त
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