Thursday, 27 September 2018

भीड़ का उन्माद / mob-lynching


युद्धविराम-संधि या अनाक्रमण-संधि?
(Cease-fire or No-attack?)
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युद्धविराम-संधि ज़रूर किसी ऐसे मस्तिष्क का आविष्कार है जो तात्कालिक तौर पर तो युद्ध करने में अपने लाभ की अपेक्षा अपनी हानि अधिक देखता है और इसलिए युद्धविराम के लिए राजी हो जाता है । संभवतः यह उसकी मज़बूरी या कपट भी हो सकता है ताकि इस बीच भविष्य के लिए शक्ति और सामर्थ्य इकट्ठा कर सके । इस शक्ति और सामर्थ्य का प्रयोजन भी पुनः या तो केवल आत्म-रक्षा करने की दृष्टि से हो सकता है, या उचित अवसर पर शत्रु को कमज़ोर पाने पर उस पर अधिक शक्ति से आक्रमण करने की दृष्टि से भी हो सकता है ।
इतिहास साक्षी है कि इस प्रकार के युद्धविराम हमेशा से होते रहे हैं ।
जब भी ऐसा कोई युद्धविराम स्वीकार किया जाता है, अर्थात् युद्धविराम संधि की जाती है, तब युद्धोन्माद के अंगारे इस संधि-रूपी राख में छिप जाते हैं और अनुकूल समय आने पर पुनः जलने लगते हैं ।
अधिक उचित शायद यह होगा कि विभिन्न पक्ष युद्धविराम जैसी प्रवंचनापरक शब्दावलि को छोड़कर अनाक्रमण-संधि जैसी शब्दावलि का प्रयोग सिद्धान्ततः और व्यावहारिक पारस्परिक सौहार्द्र की अभिव्यक्ति को प्रकट रूप देने के लिए करें !
फिर भी, बहुत संभव है कि यह शब्द भी दिखावटी मुखौटा ही हो।  इस शब्द के प्रयोग के बाद भी वे युद्ध की तैयारियों में लगे रहें यह भी हो सकता है, किंतु उस स्थिति में उनका अपना कपट उनके समक्ष छुपा न रहेगा ।
जब तक परस्पर अविश्वास है तब तक युद्ध की आग कभी पूरी तरह से बुझ सकेगी यह सोचना भी गलत है ।
अनेक स्तर हैं, अनेक विभाजन हैं मनुष्य के मन-मस्तिष्क में और समाज और राष्ट्र उन्हीं का सामूहिक चेहरा हैं ।
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