Sunday, 30 July 2017

Creativity, Death and Destiny / सृजनात्मकता, मृत्यु और नियति

Creativity, Death and Destiny / सृजनात्मकता, मृत्यु और नियति
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Creativity is there in every-one, but only when it finds no route to express itself , when it is thwarted, opts for the alternative ways for the same. This is often looked upon by others as 'mental illness'. It is not only depression anxiety or the sense of failure, frustration or absurdity that drives one to think of committing suicide, but may also be a natural way of intelligence when one is not afraid of death because one is convinced that 'Life' means infinitely much more than this physical body which keeps one tethered and restricted to into a cage named 'the person'. End of this body is an inevitable consequence, and it is just irrelevant how this end takes place.
The destiny that has brought this body into existence and 'Life', itself has to decide the way and the time when this organism has to come to its end.
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Creativity, Death and Destiny / सृजनात्मकता, मृत्यु और नियति
सृजनात्मकता तो हर किसी में होती ही है, बस इतना ज़रूर है कि जब इसे अभिव्यक्त होने का रास्ता नहीं मिलता, जब इसके रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं, या कर दिए जाते हैं तो सृजनात्मकता विकल्प खोजती है । और इसे पागलपन या ’मनोरोग’ समझ लिया जाता है । ज़रूरी नहीं कि कोई केवल अवसादग्रस्तता, व्याकुलता, जीवन में असफलता या व्यर्थता अनुभव होने से ही आत्महत्या (करने) के बारे में सोचने लगता हो, बल्कि यह उसकी सहज अन्तर्निहित प्रज्ञा (intelligence) भी हो जिसके कारण उसे मृत्यु से भय ही न लगता हो, क्योंकि वह यह समझ चुका होता है कि यह ’व्यक्ति’ और देह के पिंजरे में सीमित यह 'व्यक्ति-जीवन' उस जीवन से बहुत दूर का एक सीमित जीवन है और इसे अन्ततः अवश्य ही समाप्त होना है । जिस नियति ने इस शरीर और व्यक्तित्व को यह जीवन दिया है, वही तय करे कि इसका अन्त कब और कैसे होगा ।
यह है नियति की सृजनात्मकता ।  
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