swaadhyaaya/स्वाध्याय
Wednesday, 2 August 2017
आत्म-ज्ञान : तब और अब
आज की कविता
आत्म-ज्ञान : तब और अब
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तब
वो अजनबी जो हूँ मैं खुद अपने लिए,
उम्मीद है पहचान लूँगा एक दिन उसे !
अब
वो अजनबी जो था कभी, मैं खुद अपने लिए,
आख़िर को एक दिन उसे पहचान ही लिया!
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