The Eclipse / सूर्यग्रहण-चन्द्रग्रहण
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राहुग्रस्तदिवाकरेन्दुसदृशो मायासमाच्छादनात्
सन्मात्रः करणोपसंहरणतो योऽभूत् सुषुप्तः पुमान् ।
प्राग्स्वाप्समिति प्रबोधसमये यः प्रत्यभिज्ञायते
तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥
(श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीदक्षिणामूर्तिस्तोत्रम् -६)
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अर्थ :
जैसे राहु से ग्रस्त सूर्य और चन्द्र राहु से ग्रसित प्रतीत होते हैं, वैसे ही जब वे इन्द्रियों को अपनी आत्मा में संहरित कर लेते हैं तो जीवरूप में सुषुप्त पुरुष होते हैं ।
वे ही जो, जीवरूप में पुनः जागृति के क्षण में जीव को जागृति होने से पहले, (-जब अभी बुद्धि आदि इन्द्रियों का कार्य शुरु भी नहीं हुआ होता, उस छोटे से अंतराल में), उसे अपने वास्तविक स्वरूप के प्रति सचेत करते हैं,
उन मूर्तरूप परम गुरु श्रीदक्षिणामूर्ति को मेरे प्रणाम !
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राहुग्रस्तदिवाकरेन्दुसदृशो मायासमाच्छादनात्
सन्मात्रः करणोपसंहरणतो योऽभूत् सुषुप्तः पुमान् ।
प्राग्स्वाप्समिति प्रबोधसमये यः प्रत्यभिज्ञायते
तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥
(श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीदक्षिणामूर्तिस्तोत्रम् -६)
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अर्थ :
जैसे राहु से ग्रस्त सूर्य और चन्द्र राहु से ग्रसित प्रतीत होते हैं, वैसे ही जब वे इन्द्रियों को अपनी आत्मा में संहरित कर लेते हैं तो जीवरूप में सुषुप्त पुरुष होते हैं ।
वे ही जो, जीवरूप में पुनः जागृति के क्षण में जीव को जागृति होने से पहले, (-जब अभी बुद्धि आदि इन्द्रियों का कार्य शुरु भी नहीं हुआ होता, उस छोटे से अंतराल में), उसे अपने वास्तविक स्वरूप के प्रति सचेत करते हैं,
उन मूर्तरूप परम गुरु श्रीदक्षिणामूर्ति को मेरे प्रणाम !
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rāhugrastadivākarendusadṛśo māyāsamācchādanāt
sanmātraḥ karaṇopasaṃharaṇato yo:'bhūt suṣuptaḥ pumān |
prāgsvāpsamiti prabodhasamaye yaḥ pratyabhijñāyate
tasmai śrīgurumūrtaye nama idaṃ śrīdakṣiṇāmūrtaye ||
(śrīmacchaṅkarācāryaviracitaṃ śrīdakṣiṇāmūrtistotram -6)
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Meaning :
Because appearing as if covered by माया / māyā (ignorance associated जीव / jīva, and not with the Self / Him),
He (who) having withdrawn the senses inwards, appears thus just as जीव / jīva,
In the way as Afflicted by Rahu (node), the Sun and Moon appear having gobbled-up by the dragon.
But as soon as the जीव / jīva wakes up from the sleep and yet at the moment, when the senses have not yet started to work, in that brief moment One who exhorts the जीव / jīva and reveals His True Being,
Obeisances to Him The Great Teacher श्रीदक्षिणामूर्ति śrīdakṣiṇāmūrti.
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