Wednesday, 16 August 2017

बाध्यता और नियति


’आज’ का ’विचार’
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मनुष्य के मन में जो विचार उठता है, उस विचार से प्रेरित होकर उस ’मन’ में जो कुछ ’करने’ का विचार / संकल्प उठता है, फिर उसके माध्यम से जो कुछ किया जाता है तथा जो कुछ ’होता’ है, वह सभी एक-दूसरे से बहुत अलग-अलग होता है ।
वह जिस ’संसार’ में है वह संसार और ’संसार’ का जो चित्र उसके मन में होता है वे भी एक-दूसरे से बहुत अलग प्रकार की दो चीज़ें होती हैं ।
और यह भी आश्चर्य की बात है कि वह इस संसार को स्थिर और सुनिश्चित लेकिन साथ-ही साथ इसे परिवर्तनशील भी मानते हुए जीवन भर कुछ-न-कुछ करते रहने के लिए बाध्य होता है ।
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