वन्दे मातरम् !
vande mātaram !
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श्रुतयः निगदन्ति श्रावणीयमहिमानम्
या ब्रह्मणः पुरा वाचा सरस्वती भगवती ।
सूत्रं तत्ब्रह्मणः लोके निबध्नाति अत्र
सर्वान् सोमसूत्रे सृष्ट्या यथाक्रमेण ॥
भगिनी सा भगवती एव स्वभ्रातॄन्
स्मारयति निबध्नाति तान् रक्षासूत्रेण ।
रक्षति एतत्बंधनं रक्षासूत्रमिदं धर्मम्
धर्मेण हि लोका सर्वे सुखिनः भवन्तु ॥
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श्रुतियाँ (धर्म की) जिस श्रवणीय महिमा का वर्णन करती हैं,
श्रुतियाँ, जो सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की ही सनातन, पुरा वाणी हैं ।
इस लोक में सूत्ररूप में उस सृष्टिकर्ता से सृष्टि का बंधन हैं
इस सोमसूत्र में ही तो सृष्टि यथाक्रम निग्रथित है ।
बहन भगिनी वही भगवती श्रुति है जो भ्राताओं को,
स्मरण कराती है उन्हें, बाँधती है इस रक्षासूत्र से ।
यह रक्षासूत्ररूपी बंधन जो रक्षा करता है धर्म की,
क्योंकि धर्म से ही तो समस्त लोक सुखी होते हैं ॥
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śrutayaḥ nigadanti śrāvaṇīyamahimānam
yā brahmaṇaḥ purā vācā sarasvatī bhagavatī |
sūtraṃ tatbrahmaṇaḥ loke nibadhnāti atra
sarvān somasūtre sṛṣṭyā yathākrameṇa ||
bhaginī sā bhagavatī eva svabhrātr̥̄n
smārayati nibadhnāti tān rakṣāsūtreṇa |
rakṣati etatbaṃdhanaṃ rakṣāsūtramidaṃ dharmam
dharmeṇa hi lokā sarve sukhinaḥ bhavantu ||
--
Meaning :
The Veda which as śruti, enunciate in the sonorous sounds,
the importance and significance of dharma,
Who emanating through the mouth of the Creator,
were revealed to all as the Divine Mother sarasvatī bhagavatī,
Are indeed here in the form of this divine thread,
Which binds the Creator with His Creation here.
The cord-umbilical, that maintains the life as a whole,
Sister is indeed the śruti sarasvatī bhagavatī. -Divine Mother.
Reminds her brothers (of this dharma),
binds them in this thread of protection,
This cord of (love and affection),
This protective thread, protects the dharma,
dharma -whereby protects and makes happy,
The whole existence.
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vande mātaram !
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श्रुतयः निगदन्ति श्रावणीयमहिमानम्
या ब्रह्मणः पुरा वाचा सरस्वती भगवती ।
सूत्रं तत्ब्रह्मणः लोके निबध्नाति अत्र
सर्वान् सोमसूत्रे सृष्ट्या यथाक्रमेण ॥
भगिनी सा भगवती एव स्वभ्रातॄन्
स्मारयति निबध्नाति तान् रक्षासूत्रेण ।
रक्षति एतत्बंधनं रक्षासूत्रमिदं धर्मम्
धर्मेण हि लोका सर्वे सुखिनः भवन्तु ॥
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श्रुतियाँ (धर्म की) जिस श्रवणीय महिमा का वर्णन करती हैं,
श्रुतियाँ, जो सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की ही सनातन, पुरा वाणी हैं ।
इस लोक में सूत्ररूप में उस सृष्टिकर्ता से सृष्टि का बंधन हैं
इस सोमसूत्र में ही तो सृष्टि यथाक्रम निग्रथित है ।
बहन भगिनी वही भगवती श्रुति है जो भ्राताओं को,
स्मरण कराती है उन्हें, बाँधती है इस रक्षासूत्र से ।
यह रक्षासूत्ररूपी बंधन जो रक्षा करता है धर्म की,
क्योंकि धर्म से ही तो समस्त लोक सुखी होते हैं ॥
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śrutayaḥ nigadanti śrāvaṇīyamahimānam
yā brahmaṇaḥ purā vācā sarasvatī bhagavatī |
sūtraṃ tatbrahmaṇaḥ loke nibadhnāti atra
sarvān somasūtre sṛṣṭyā yathākrameṇa ||
bhaginī sā bhagavatī eva svabhrātr̥̄n
smārayati nibadhnāti tān rakṣāsūtreṇa |
rakṣati etatbaṃdhanaṃ rakṣāsūtramidaṃ dharmam
dharmeṇa hi lokā sarve sukhinaḥ bhavantu ||
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Meaning :
The Veda which as śruti, enunciate in the sonorous sounds,
the importance and significance of dharma,
Who emanating through the mouth of the Creator,
were revealed to all as the Divine Mother sarasvatī bhagavatī,
Are indeed here in the form of this divine thread,
Which binds the Creator with His Creation here.
The cord-umbilical, that maintains the life as a whole,
Sister is indeed the śruti sarasvatī bhagavatī. -Divine Mother.
Reminds her brothers (of this dharma),
binds them in this thread of protection,
This cord of (love and affection),
This protective thread, protects the dharma,
dharma -whereby protects and makes happy,
The whole existence.
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