-- फ़िलोलॉजी और लिंग्विस्टिक्स --
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विभिन्न भाषाओं में जीवनरहित (non-living) वस्तुओं का लिंग-निर्धारण किस आधार पर किया जाता है?
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पहले हम कुछ प्रचलित प्रयोगों पर ध्यान दें ।
क्रिया का प्रयोग कर्ता के साथ जिन वाक्यों में होता है वहाँ कर्ता संज्ञा या सर्वनाम के रूप में होता है । यह कर्ता चाहे जीवित व्यक्ति या जीवनरहित वस्तु हो, भाषागत मान्यताओं के अनुसार पुंल्लिंग (masculine) , स्त्रीलिंग (feminine) अथवा नपुंसकलिंग (neuter) हो सकता है । एकवचन (singular) अथवा बहुवचन (plural) हो सकता है । कुछ भाषाओं में जहाँ क्रिया तदनुसार समान अथवा भिन्न भिन्न होती है, कर्ता के रूप में परिवर्तन होता है ।
जैसे हिंदी में ’यह’, ’वह’, ’ये’, ’वे’, ’आप’ आदि तीनों लिंगों में समान रहते हैं ’मैं’, ’तुम’ और ’हम’ भी । जबकि संस्कृत, अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाओं में वे तीनों लिंगों में भिन्न-भिन्न हो जाते हैं । ’यह’ > एषः, > ’अयम्’, ’वह’ > सः, ’कौन’ > कः पुंल्लिंग हैं, जबकि एषा, सा, का स्त्रीलिंग हैं, एतत्, तत् और किम् तीनों नपुंसकलिंग । दूसरी विशेषता यह भी है कि इन सर्वनामों के साथ प्रयुक्त होनेवाले क्रियापद तीनों लिंगों में समान होते हैं । अहं गच्छामि, त्वं गच्छसि, एषः / एषा / अयं / इयं / सः / सा / तत् / गच्छति ।
अंग्रेज़ी और यूरोपीय भाषाओं में कोई निश्चित नियम नहीं दिखाई देता । हिंदी में जब कर्ता के लिंग में संशय होता है तब क्रिया के द्वारा कर्ता के लिंग को स्पष्ट किया जाता है । जैसे ’मैं जाता हूँ ।’, ’मैं जाती हूँ ।’ ’वह जाता है ।’, ’वह जाती है ।’ ’तू जाता है ।', तू जाती है ।’ आदि में कर्ता (मैं, वह, तू) यथावत् है, जबकि क्रिया से ही उसके लिंग की पहचान होती है ।
संक्षेप में भाषा की बनावट से ही कर्ता के लिंग का निर्धारण तय होता है । और कर्ता जीवित व्यक्ति है या निर्जीव वस्तु, यह प्रश्न गौण हो जाता है ।
अब यदि मराठी, गुजराती के सन्दर्भ में देखें तो चूँकि वहाँ लिंग 3 प्रकार के हैं - पुरुषवाची, स्त्रीवाची और वस्तुवाची, और तदनुसार कर्ता सजीव व्यक्ति स्त्रीवाची, पुरुषवाची या वस्तुवाची जैसा भी होता है, क्रिया का रूप तदनुसार बदल जाता है ।
किंतु यह नियम ’मैं’, ’तुम’ पर भिन्न प्रकार से लागू होता है ।
इस प्रकार संस्कृत के अलावा अन्य सभी विभिन्न भाषाओं में सजीव या निर्जीव वस्तुओं का लिंग प्रचलित तरीके से ही होता है और कोई निश्चित नियम नहीं बनाया जा सकता है । कर्ता या क्रिया या दोनों के अनुसार लिंग (gender) निर्धारित होता है।
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The way of classifying things as 'living' and 'non-living' is basically erroneous.
The right way of classifying would be as 'sentient' and 'insentient'.
Though this too is not enough and needs to be examined. Because 'we' think we are sentient, we classify between the things that seem to us like 'us' and not-like 'us'. But 'sentience' implies 'consciousness' which is essentially and inevitably always 'subjective'. Only after knowing 'I' one knows the 'other'. And 'sentience' is 'consciousness'. Again we can't conclusively ascertain whether this sentience / consciousness is or is not there in those things which appear sentient / insentient living/non-living to 'us'.
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विभिन्न भाषाओं में जीवनरहित (non-living) वस्तुओं का लिंग-निर्धारण किस आधार पर किया जाता है?
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पहले हम कुछ प्रचलित प्रयोगों पर ध्यान दें ।
क्रिया का प्रयोग कर्ता के साथ जिन वाक्यों में होता है वहाँ कर्ता संज्ञा या सर्वनाम के रूप में होता है । यह कर्ता चाहे जीवित व्यक्ति या जीवनरहित वस्तु हो, भाषागत मान्यताओं के अनुसार पुंल्लिंग (masculine) , स्त्रीलिंग (feminine) अथवा नपुंसकलिंग (neuter) हो सकता है । एकवचन (singular) अथवा बहुवचन (plural) हो सकता है । कुछ भाषाओं में जहाँ क्रिया तदनुसार समान अथवा भिन्न भिन्न होती है, कर्ता के रूप में परिवर्तन होता है ।
जैसे हिंदी में ’यह’, ’वह’, ’ये’, ’वे’, ’आप’ आदि तीनों लिंगों में समान रहते हैं ’मैं’, ’तुम’ और ’हम’ भी । जबकि संस्कृत, अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाओं में वे तीनों लिंगों में भिन्न-भिन्न हो जाते हैं । ’यह’ > एषः, > ’अयम्’, ’वह’ > सः, ’कौन’ > कः पुंल्लिंग हैं, जबकि एषा, सा, का स्त्रीलिंग हैं, एतत्, तत् और किम् तीनों नपुंसकलिंग । दूसरी विशेषता यह भी है कि इन सर्वनामों के साथ प्रयुक्त होनेवाले क्रियापद तीनों लिंगों में समान होते हैं । अहं गच्छामि, त्वं गच्छसि, एषः / एषा / अयं / इयं / सः / सा / तत् / गच्छति ।
अंग्रेज़ी और यूरोपीय भाषाओं में कोई निश्चित नियम नहीं दिखाई देता । हिंदी में जब कर्ता के लिंग में संशय होता है तब क्रिया के द्वारा कर्ता के लिंग को स्पष्ट किया जाता है । जैसे ’मैं जाता हूँ ।’, ’मैं जाती हूँ ।’ ’वह जाता है ।’, ’वह जाती है ।’ ’तू जाता है ।', तू जाती है ।’ आदि में कर्ता (मैं, वह, तू) यथावत् है, जबकि क्रिया से ही उसके लिंग की पहचान होती है ।
संक्षेप में भाषा की बनावट से ही कर्ता के लिंग का निर्धारण तय होता है । और कर्ता जीवित व्यक्ति है या निर्जीव वस्तु, यह प्रश्न गौण हो जाता है ।
अब यदि मराठी, गुजराती के सन्दर्भ में देखें तो चूँकि वहाँ लिंग 3 प्रकार के हैं - पुरुषवाची, स्त्रीवाची और वस्तुवाची, और तदनुसार कर्ता सजीव व्यक्ति स्त्रीवाची, पुरुषवाची या वस्तुवाची जैसा भी होता है, क्रिया का रूप तदनुसार बदल जाता है ।
किंतु यह नियम ’मैं’, ’तुम’ पर भिन्न प्रकार से लागू होता है ।
इस प्रकार संस्कृत के अलावा अन्य सभी विभिन्न भाषाओं में सजीव या निर्जीव वस्तुओं का लिंग प्रचलित तरीके से ही होता है और कोई निश्चित नियम नहीं बनाया जा सकता है । कर्ता या क्रिया या दोनों के अनुसार लिंग (gender) निर्धारित होता है।
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The way of classifying things as 'living' and 'non-living' is basically erroneous.
The right way of classifying would be as 'sentient' and 'insentient'.
Though this too is not enough and needs to be examined. Because 'we' think we are sentient, we classify between the things that seem to us like 'us' and not-like 'us'. But 'sentience' implies 'consciousness' which is essentially and inevitably always 'subjective'. Only after knowing 'I' one knows the 'other'. And 'sentience' is 'consciousness'. Again we can't conclusively ascertain whether this sentience / consciousness is or is not there in those things which appear sentient / insentient living/non-living to 'us'.
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