संस्कृत : व्याकरण और व्युत्पत्ति
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कल ही इस विषय में लिखा था कि संस्कृत को भाषा कहते ही उसका जन्म कब और कहाँ, कैसे हुआ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। साथ में उद्धृत link में यह प्रश्न / विचार (premise / hypothesis) प्रस्तुत किया गया था कि क्या गणित की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है?
मूलतः उत्पत्ति का यह दृष्टिकोण ही भ्रामक है क्योंकि तब 'कब?' का प्रश्न उपस्थित होता है और काल को 'अतीत' तथा 'भविष्य' की कल्पना की जाती है। विज्ञान इसी 'कब?' को आधार की तरह ग्रहण कर संसार / विश्व / जगत को एक ऐसी सत्ता मान्य कर लेता है जिसकी उत्पत्ति किसी काल में, अतीत में कभी हुई। इस प्रकार 'अतीत' (past) को आधारभूत सत्ता की तरह स्वीकार कर लिया जाता है। और तब वैज्ञानिक यह कभी नहीं जान सकता कि संसार / विश्व / जगत की उत्पत्ति आज से कितने 'समय' पहले हुई ? उत्पत्ति और सृष्टि को समानार्थी समझना ही मूलतः त्रुटिपूर्ण है। इसलिए (वेद में) सृष्टि को नित्य, शाश्वत तथा सनातन कहा जाता है जबकि उत्पत्ति (manifestation) और प्रलय (dissolution) का 'समय' हमारे द्वारा तय किए गए 'काल' की सीमा में सीमित होता है।
हमारे द्वारा तय किया गया 'काल' हमें हमारी अपनी कल्पना के अनुसार सत्य प्रतीत होता है जबकि ऐसा कोई 'काल' सबके लिए भिन्न-भिन्न होता है जिसकी विषयपरक (objective) सत्ता कल्पनासृजित होती है।
किसी भाषा का व्याकरण निरंतर गतिशील प्रवृत्ति होता है, इसलिए सतत रूपांतरित होता रहता है। भाषा की समाप्ति के ही साथ उसका व्याकरण भी समाप्त हो जाता है।
भाषा की उत्पत्ति (न कि 'सृष्टि') के बाद ही उसका व्याकरण (Grammar) तय किया जाता है। इसलिए व्याकरण (Grammar) एक लचीला (flexible) साधन है।
संस्कृत भाषा का प्राकट्य (उत्पत्ति नहीं 'सृष्टि') गृ (gR) अर्थात् ग् + दीर्घ स्वर 'ऋ' से बने वर्ण से जिसे यहाँ व्यक्त करने में असमर्थ हूँ) अर्थात् उस वर्ण से हुई है जिसका रूप 'वर्तमान काल' एकवचन अन्य पुरुष (present tense, singular) में गृणाति होता है जो 'गिरा' अर्थात् उद्गार / उद्गीर्ण में भी प्रयुक्त होता है।
अंग्रेज़ी भाषा में Grammar इसी गिरा / गिराम् का सज्ञात / cognate है।
इस प्रकार संस्कृत के दो प्रकार होते हैं :
एक वह जो वाणी का विधान है जिससे वाणी के विभिन्न प्रकार (भाषाएँ) उत्पन्न होते हैं और भाषा के साथ जिनकी समाप्ति हो जाती है।
किन्तु संस्कृत का वह प्रकार जो नित्य अविकारी (immutable) विधान है, नित्य और शाश्वत, सनातन और जन्म-मृत्यु से अछूता है जिसकी सृष्टि / लय काल के अंतर्गत नहीं होती।
इस संस्कृत के व्याकरण का उद्घाटन ऋषियों द्वारा सूत्रों में व्यक्त किया जाता है जिनके आधार पर किसी शब्द की व्युत्पत्ति उसके अर्थ के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार से 'सिद्ध' की जा सकती है। इसलिए किस शब्द का अर्थ किस प्रसंग में क्या होगा यह अधिक महत्त्वपूर्ण है और व्याकरण के सूत्रों से प्राप्त नियमों के आधार पर किसी शब्द-विशेष की उत्पत्ति के अनुसार उसका अर्थ भिन्न भिन्न स्थितियों में भिन्न-भिन्न होता है।
अंग्रेज़ी भाषा का उद्गम चूँकि वाणी के Anglo-Saxon (अंगिरा शैक्षं, अनुगिरा शैक्षं) प्रकार से हुआ, इसलिए अंग्रेज़ी तथा ग्रीक दोनों भाषाएँ शिक्षा की भाषाएँ हुईं।
अङ्गिरा से ही अंग्रेज़ की व्युत्पत्ति दृष्टव्य है।
अङ्गिरा से ही Angel शब्द बना जो 'फ़रिश्ते' के अर्थ में अब्राहमिक परम्पराओं में प्रयुक्त होता है।
'फ़रिश्ता' / 'फ़रिश्तः' फ़ारसी (Persian) भाषा का शब्द है, जो संस्कृत पार्षदः से व्युत्पन्न होता है।
चूँकि संस्कृत भाषा से आए शब्द स्वयं ही उन वर्णों से बने होते हैं जो वाणी के विधान से निर्मित होते हैं इसलिए उन्हें विभिन्न प्रयोजनों के लिए अनेक प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है।
इसलिए भाषा से व्याकरण की उत्पत्ति का सिद्धांत संस्कृत भाषा पर नहीं लागू होता क्योंकि संस्कृत भाषा और व्याकरण से बढ़कर वाणी का विधान है। वाणी नित्य, शाश्वत अचल, अटल सत्य है जो काल-स्थान के अनुसार बदलकर भाषा-विशेष हो जाता है।
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कल ही इस विषय में लिखा था कि संस्कृत को भाषा कहते ही उसका जन्म कब और कहाँ, कैसे हुआ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। साथ में उद्धृत link में यह प्रश्न / विचार (premise / hypothesis) प्रस्तुत किया गया था कि क्या गणित की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है?
मूलतः उत्पत्ति का यह दृष्टिकोण ही भ्रामक है क्योंकि तब 'कब?' का प्रश्न उपस्थित होता है और काल को 'अतीत' तथा 'भविष्य' की कल्पना की जाती है। विज्ञान इसी 'कब?' को आधार की तरह ग्रहण कर संसार / विश्व / जगत को एक ऐसी सत्ता मान्य कर लेता है जिसकी उत्पत्ति किसी काल में, अतीत में कभी हुई। इस प्रकार 'अतीत' (past) को आधारभूत सत्ता की तरह स्वीकार कर लिया जाता है। और तब वैज्ञानिक यह कभी नहीं जान सकता कि संसार / विश्व / जगत की उत्पत्ति आज से कितने 'समय' पहले हुई ? उत्पत्ति और सृष्टि को समानार्थी समझना ही मूलतः त्रुटिपूर्ण है। इसलिए (वेद में) सृष्टि को नित्य, शाश्वत तथा सनातन कहा जाता है जबकि उत्पत्ति (manifestation) और प्रलय (dissolution) का 'समय' हमारे द्वारा तय किए गए 'काल' की सीमा में सीमित होता है।
हमारे द्वारा तय किया गया 'काल' हमें हमारी अपनी कल्पना के अनुसार सत्य प्रतीत होता है जबकि ऐसा कोई 'काल' सबके लिए भिन्न-भिन्न होता है जिसकी विषयपरक (objective) सत्ता कल्पनासृजित होती है।
किसी भाषा का व्याकरण निरंतर गतिशील प्रवृत्ति होता है, इसलिए सतत रूपांतरित होता रहता है। भाषा की समाप्ति के ही साथ उसका व्याकरण भी समाप्त हो जाता है।
भाषा की उत्पत्ति (न कि 'सृष्टि') के बाद ही उसका व्याकरण (Grammar) तय किया जाता है। इसलिए व्याकरण (Grammar) एक लचीला (flexible) साधन है।
संस्कृत भाषा का प्राकट्य (उत्पत्ति नहीं 'सृष्टि') गृ (gR) अर्थात् ग् + दीर्घ स्वर 'ऋ' से बने वर्ण से जिसे यहाँ व्यक्त करने में असमर्थ हूँ) अर्थात् उस वर्ण से हुई है जिसका रूप 'वर्तमान काल' एकवचन अन्य पुरुष (present tense, singular) में गृणाति होता है जो 'गिरा' अर्थात् उद्गार / उद्गीर्ण में भी प्रयुक्त होता है।
अंग्रेज़ी भाषा में Grammar इसी गिरा / गिराम् का सज्ञात / cognate है।
इस प्रकार संस्कृत के दो प्रकार होते हैं :
एक वह जो वाणी का विधान है जिससे वाणी के विभिन्न प्रकार (भाषाएँ) उत्पन्न होते हैं और भाषा के साथ जिनकी समाप्ति हो जाती है।
किन्तु संस्कृत का वह प्रकार जो नित्य अविकारी (immutable) विधान है, नित्य और शाश्वत, सनातन और जन्म-मृत्यु से अछूता है जिसकी सृष्टि / लय काल के अंतर्गत नहीं होती।
इस संस्कृत के व्याकरण का उद्घाटन ऋषियों द्वारा सूत्रों में व्यक्त किया जाता है जिनके आधार पर किसी शब्द की व्युत्पत्ति उसके अर्थ के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार से 'सिद्ध' की जा सकती है। इसलिए किस शब्द का अर्थ किस प्रसंग में क्या होगा यह अधिक महत्त्वपूर्ण है और व्याकरण के सूत्रों से प्राप्त नियमों के आधार पर किसी शब्द-विशेष की उत्पत्ति के अनुसार उसका अर्थ भिन्न भिन्न स्थितियों में भिन्न-भिन्न होता है।
अंग्रेज़ी भाषा का उद्गम चूँकि वाणी के Anglo-Saxon (अंगिरा शैक्षं, अनुगिरा शैक्षं) प्रकार से हुआ, इसलिए अंग्रेज़ी तथा ग्रीक दोनों भाषाएँ शिक्षा की भाषाएँ हुईं।
अङ्गिरा से ही अंग्रेज़ की व्युत्पत्ति दृष्टव्य है।
अङ्गिरा से ही Angel शब्द बना जो 'फ़रिश्ते' के अर्थ में अब्राहमिक परम्पराओं में प्रयुक्त होता है।
'फ़रिश्ता' / 'फ़रिश्तः' फ़ारसी (Persian) भाषा का शब्द है, जो संस्कृत पार्षदः से व्युत्पन्न होता है।
चूँकि संस्कृत भाषा से आए शब्द स्वयं ही उन वर्णों से बने होते हैं जो वाणी के विधान से निर्मित होते हैं इसलिए उन्हें विभिन्न प्रयोजनों के लिए अनेक प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है।
इसलिए भाषा से व्याकरण की उत्पत्ति का सिद्धांत संस्कृत भाषा पर नहीं लागू होता क्योंकि संस्कृत भाषा और व्याकरण से बढ़कर वाणी का विधान है। वाणी नित्य, शाश्वत अचल, अटल सत्य है जो काल-स्थान के अनुसार बदलकर भाषा-विशेष हो जाता है।
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