आशा बलवती राजन् !
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फ़िलहाल इस सवाल (बवाल) को एक ओर रहने दें कि हिन्दू / हिंदुत्व, इस्लाम, कैथोलिक, ईसाइयत और यहूदी आदि धर्म हैं या नहीं, किन्तु इस सन्दर्भ में देखें कि ये सभी भिन्न-भिन्न मानव-सभ्यताएँ अवश्य हैं।
महाभारत-युद्ध समाप्त होने और युद्ध में कौरवों की पराजय होने के बाद किसी ने किसी को भरोसा दिलाया था :
"आशा बलवती राजन् शल्यो जेष्यति पाण्डवान्"
(शल्य कर्ण के रथ का सारथी था।)
Retrospectively; अतीत के सन्दर्भ-सूत्रों को संभावित क्रम में जोड़ते हुए, 'ऐतिहासिक' दृष्टि के आधार से लिखी गई यह विवेचना यहाँ प्रस्तुत है ।
साथ दिए गए श्री विवेक रंजन जी के लिंक से इस लेख का खंडन / मंडन, पुष्टि / आलोचना / समीक्षा आदि हो सकती है।
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Huntington की पुस्तक "The Clash of Civilizations" का शीर्षक भी आज की स्थिति को इन शब्दों में व्यक्त करता है :
"भविष्य में होनेवाला वैश्विक-युद्ध धर्मों के बीच नहीं सभ्यताओं और संस्कृतियों (cultures) के बीच होगा।"
यह कहना गलत नहीं होगा कि धर्म, सभ्यता और संस्कृति भिन्न भिन्न चीज़ों के पर्याय / द्योतक हैं।
'शल्य' का अर्थ है काँटा / कण्टक, शल और शर समानार्थी हैं। शल संभावना / potential / static है, शर सक्रिय / active / dynamic है।
इस प्रकार शल के वंशज शल्य और शल्य शल का वंशज है।
शल / शलं और शल्य किसी सभ्यता / संस्कृति के संकेतक हैं।
विशेष-रूप से कौरव-संस्कृति और सभ्यता के।
यह आकस्मिक संयोग मात्र नहीं है, कि "यरूशलम" में यह शब्द विद्यमान है।
इरा अर्थात् पृथ्वी / भूमि।
इरा से ईरान, ईराक, तथा इरु तथा यरु की उत्पति संस्कृत-सिद्ध है जिसे यहाँ विस्तार से लिखना अप्रासंगिक और अनावश्यक विस्तार होगा।
शल्य का साम्राज्य सरस्वती और सिंधु नदियों से परे पश्चिम की ओर था।
यह शलम / शलं जो यरूशलम में दृष्टव्य है हिब्रू भाषा में भी यथावत "शलोम"/ शैलोम की तरह, तो अरबी भाषा में सला / सिला, सुल आदि (संस्कृत व्याकरण के) उणादि रूपांतरों में उपलब्ध है।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर नामक नगर में एक ईसाई पादरी हैं जिनके पुत्र का नाम है : शलज।
शलज (नाथानिएल) से, -जो उस समय 1987 के आसपास, उज्जैन में रहता था मेरा परिचय हुआ था, तो उसने विस्तारपूर्वक अपने इस नाम का सन्दर्भ स्पष्ट करते हुए कहा था :
"शल का अर्थ है शूल, सूली, सलीब, शलाका। जिसका जन्म सूली से हुआ वह है शलज। "
उसका तात्पर्य और इंगित यह था क़ि (उसकी किताब बाइबिल के अनुसार) शलज अर्थात ईसा मसीह ही अंतिम पैगम्बर है।
इस प्रकार शलं का संबंध यहूदी तथा ईसाई सभ्यता / संस्कृति से है यह समझा जा सकता है।
इसी आधार पर इसलाम / इस्लाम में सल / सलमान / और अरबी उपसर्ग 'म' के संयोग से बना है
'मुसलमान' शब्द; -ऐसा कहा जा सकता है ।
अरबी भाषा में 'सला' का अर्थ है नमाज़ (अदा करना)।
'नमाज़' शब्द फारसी भाषा का है।
स्पष्ट है कि यही तीनों संस्कृतियाँ / सभ्यताएँ शल्य के वंशज हैं।
यही 'शल्य' चौथी सभ्यता / संस्कृति / विचारधारा के रूप में कार्ल-मार्क्स (Carl Marx) में प्रच्छन्न है।
इसके अलावा इनका पाँचवा स्तम्भ है : जिसे सेक्युलरिज़्म का नाम दिया गया है, - जो वस्तुतः परिभाषित तक नहीं है। इसी 'सेक्युलरिज़म' का बन्धु है अर्बन (अरबन -अरब का सज्ञात / cognate) नक्सलवाद।
इस भारत-भूमि पर शल्य के यही पाँच वंशज आज भी पाण्डवों से युद्धरत हैं।
यह रोचक है कि 'नक्सलवाद' किसी संयोग से नख-शल-वाद का वाचक / द्योतक भी है।
'नख' वास्तव में शरीर में वैसे ही पैदा होते हैं जैसे कँटीले वृक्ष पर काँटे।
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कुछ दिनों पहले --
"नाखून क्यों बढ़ते हैं?"
शीर्षक से गंभीर किस्म का कुछ लिखा था, जिसे शायद फिर कभी पोस्ट करूँगा।
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फ़िलहाल इस सवाल (बवाल) को एक ओर रहने दें कि हिन्दू / हिंदुत्व, इस्लाम, कैथोलिक, ईसाइयत और यहूदी आदि धर्म हैं या नहीं, किन्तु इस सन्दर्भ में देखें कि ये सभी भिन्न-भिन्न मानव-सभ्यताएँ अवश्य हैं।
महाभारत-युद्ध समाप्त होने और युद्ध में कौरवों की पराजय होने के बाद किसी ने किसी को भरोसा दिलाया था :
"आशा बलवती राजन् शल्यो जेष्यति पाण्डवान्"
(शल्य कर्ण के रथ का सारथी था।)
Retrospectively; अतीत के सन्दर्भ-सूत्रों को संभावित क्रम में जोड़ते हुए, 'ऐतिहासिक' दृष्टि के आधार से लिखी गई यह विवेचना यहाँ प्रस्तुत है ।
साथ दिए गए श्री विवेक रंजन जी के लिंक से इस लेख का खंडन / मंडन, पुष्टि / आलोचना / समीक्षा आदि हो सकती है।
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Huntington की पुस्तक "The Clash of Civilizations" का शीर्षक भी आज की स्थिति को इन शब्दों में व्यक्त करता है :
"भविष्य में होनेवाला वैश्विक-युद्ध धर्मों के बीच नहीं सभ्यताओं और संस्कृतियों (cultures) के बीच होगा।"
यह कहना गलत नहीं होगा कि धर्म, सभ्यता और संस्कृति भिन्न भिन्न चीज़ों के पर्याय / द्योतक हैं।
'शल्य' का अर्थ है काँटा / कण्टक, शल और शर समानार्थी हैं। शल संभावना / potential / static है, शर सक्रिय / active / dynamic है।
इस प्रकार शल के वंशज शल्य और शल्य शल का वंशज है।
शल / शलं और शल्य किसी सभ्यता / संस्कृति के संकेतक हैं।
विशेष-रूप से कौरव-संस्कृति और सभ्यता के।
यह आकस्मिक संयोग मात्र नहीं है, कि "यरूशलम" में यह शब्द विद्यमान है।
इरा अर्थात् पृथ्वी / भूमि।
इरा से ईरान, ईराक, तथा इरु तथा यरु की उत्पति संस्कृत-सिद्ध है जिसे यहाँ विस्तार से लिखना अप्रासंगिक और अनावश्यक विस्तार होगा।
शल्य का साम्राज्य सरस्वती और सिंधु नदियों से परे पश्चिम की ओर था।
यह शलम / शलं जो यरूशलम में दृष्टव्य है हिब्रू भाषा में भी यथावत "शलोम"/ शैलोम की तरह, तो अरबी भाषा में सला / सिला, सुल आदि (संस्कृत व्याकरण के) उणादि रूपांतरों में उपलब्ध है।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर नामक नगर में एक ईसाई पादरी हैं जिनके पुत्र का नाम है : शलज।
शलज (नाथानिएल) से, -जो उस समय 1987 के आसपास, उज्जैन में रहता था मेरा परिचय हुआ था, तो उसने विस्तारपूर्वक अपने इस नाम का सन्दर्भ स्पष्ट करते हुए कहा था :
"शल का अर्थ है शूल, सूली, सलीब, शलाका। जिसका जन्म सूली से हुआ वह है शलज। "
उसका तात्पर्य और इंगित यह था क़ि (उसकी किताब बाइबिल के अनुसार) शलज अर्थात ईसा मसीह ही अंतिम पैगम्बर है।
इस प्रकार शलं का संबंध यहूदी तथा ईसाई सभ्यता / संस्कृति से है यह समझा जा सकता है।
इसी आधार पर इसलाम / इस्लाम में सल / सलमान / और अरबी उपसर्ग 'म' के संयोग से बना है
'मुसलमान' शब्द; -ऐसा कहा जा सकता है ।
अरबी भाषा में 'सला' का अर्थ है नमाज़ (अदा करना)।
'नमाज़' शब्द फारसी भाषा का है।
स्पष्ट है कि यही तीनों संस्कृतियाँ / सभ्यताएँ शल्य के वंशज हैं।
यही 'शल्य' चौथी सभ्यता / संस्कृति / विचारधारा के रूप में कार्ल-मार्क्स (Carl Marx) में प्रच्छन्न है।
इसके अलावा इनका पाँचवा स्तम्भ है : जिसे सेक्युलरिज़्म का नाम दिया गया है, - जो वस्तुतः परिभाषित तक नहीं है। इसी 'सेक्युलरिज़म' का बन्धु है अर्बन (अरबन -अरब का सज्ञात / cognate) नक्सलवाद।
इस भारत-भूमि पर शल्य के यही पाँच वंशज आज भी पाण्डवों से युद्धरत हैं।
यह रोचक है कि 'नक्सलवाद' किसी संयोग से नख-शल-वाद का वाचक / द्योतक भी है।
'नख' वास्तव में शरीर में वैसे ही पैदा होते हैं जैसे कँटीले वृक्ष पर काँटे।
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कुछ दिनों पहले --
"नाखून क्यों बढ़ते हैं?"
शीर्षक से गंभीर किस्म का कुछ लिखा था, जिसे शायद फिर कभी पोस्ट करूँगा।
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