कुछ हट कर,
..... कहे कबीर अंत की बारी !
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द्युति और द्यूति
'द्यु' का अर्थ होता है 'चमकना',
वह जो एकाएक होता है।
वह कुछ भी हो सकता है इसलिए उसे शक् धातु से व्युत्पन्न शकुन तथा अपशकुन (omen) की तरह भी जाना जाता है। वैसे तो सम्पूर्ण इंटरनेट इसी देवता (केतु) से शासित और संचालित है किन्तु इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल तथा विद्युत्-शक्ति का संयोग (connection) होने से रुद्र ही इसका अधिष्ठाता देवता है।
शकुनि की जो भूमिका महाभारत में थी, वही भूमिका इंटरनेट की आज के युग में है।
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वो जिसे 'सिक्स्थ सेन्स' कहें; -मुझसे कह चुका है कि 2020 में (कम से कम इस ब्लॉग-लेखक के लिए,) इंटरनेट और मोबाइल नहीं होगा। अब मैं काउंट-डाउन मोड में 2020 की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। क्योंकि यह ठीक ठीक किस समय होगा यह पता नहीं चल पा रहा। हाँ 31 दिसंबर तक अवश्य हो जाएगा !
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'द्यु' धातु से बना है द्यूति अर्थात् जुआ।
कबीर कहते हैं :
"अंत में जुआरी हाथ झाड़कर (निराश होकर, -खाली हाथ होकर) चले जाते हैं।"
लेकिन अंत ठीक ठीक कब होगा इसका अनुमान किसी को नहीं होता।
वैसे तो हर क्षण अतीत समाप्त हो जाता है, किन्तु स्मृति के थ्रेड से पुनः पुनः सृजित कर लिया जाता है।
अतीत, स्मृति और 'पहचान' अन्योन्याश्रित होते हैं। विचार / कल्पना करें तो होते हैं, लेकिन विचारकर्ता स्वयं भी उनकी तरह पुनः पुनः आता-जाता रहता है। इसलिए ऐसे किसी विचारकर्ता का अस्तित्व आभास मात्र है, न कि यथार्थ वास्तविकता।
और इसी विचारकर्ता के बारे में यह भी सत्य है की अंत हर किसी के लिए अलग अलग समय पर होना तय है।
एक ही चेतना में विचार और विचारकर्ता का द्वैत सतत अस्तित्व ग्रहण करता और विलीन होता रहता है।
इसलिए इस संसार में विजय जैसा अंततः कुछ किसी के लिए भी नहीं होता।
न दुर्योधन के लिए, न युधिष्ठिर के लिए।
(और 'हार' जैसा भी क्या हो सकता है?)
इसलिए मेरे जैसे तुच्छ मनुष्य को तो इस बारे में सोचना तक नहीं चाहिए।
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बहरहाल खिलाड़ी अंत तक उत्साह से डटे रहते हैं, और मैं तो शुरू से ही अनाड़ी रहा हूँ।
मेरी एक फेसबुक मित्र का प्रिय गीत याद आता है :
"सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी !"
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..... कहे कबीर अंत की बारी !
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द्युति और द्यूति
'द्यु' का अर्थ होता है 'चमकना',
वह जो एकाएक होता है।
वह कुछ भी हो सकता है इसलिए उसे शक् धातु से व्युत्पन्न शकुन तथा अपशकुन (omen) की तरह भी जाना जाता है। वैसे तो सम्पूर्ण इंटरनेट इसी देवता (केतु) से शासित और संचालित है किन्तु इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल तथा विद्युत्-शक्ति का संयोग (connection) होने से रुद्र ही इसका अधिष्ठाता देवता है।
शकुनि की जो भूमिका महाभारत में थी, वही भूमिका इंटरनेट की आज के युग में है।
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वो जिसे 'सिक्स्थ सेन्स' कहें; -मुझसे कह चुका है कि 2020 में (कम से कम इस ब्लॉग-लेखक के लिए,) इंटरनेट और मोबाइल नहीं होगा। अब मैं काउंट-डाउन मोड में 2020 की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। क्योंकि यह ठीक ठीक किस समय होगा यह पता नहीं चल पा रहा। हाँ 31 दिसंबर तक अवश्य हो जाएगा !
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'द्यु' धातु से बना है द्यूति अर्थात् जुआ।
कबीर कहते हैं :
"अंत में जुआरी हाथ झाड़कर (निराश होकर, -खाली हाथ होकर) चले जाते हैं।"
लेकिन अंत ठीक ठीक कब होगा इसका अनुमान किसी को नहीं होता।
वैसे तो हर क्षण अतीत समाप्त हो जाता है, किन्तु स्मृति के थ्रेड से पुनः पुनः सृजित कर लिया जाता है।
अतीत, स्मृति और 'पहचान' अन्योन्याश्रित होते हैं। विचार / कल्पना करें तो होते हैं, लेकिन विचारकर्ता स्वयं भी उनकी तरह पुनः पुनः आता-जाता रहता है। इसलिए ऐसे किसी विचारकर्ता का अस्तित्व आभास मात्र है, न कि यथार्थ वास्तविकता।
और इसी विचारकर्ता के बारे में यह भी सत्य है की अंत हर किसी के लिए अलग अलग समय पर होना तय है।
एक ही चेतना में विचार और विचारकर्ता का द्वैत सतत अस्तित्व ग्रहण करता और विलीन होता रहता है।
इसलिए इस संसार में विजय जैसा अंततः कुछ किसी के लिए भी नहीं होता।
न दुर्योधन के लिए, न युधिष्ठिर के लिए।
(और 'हार' जैसा भी क्या हो सकता है?)
इसलिए मेरे जैसे तुच्छ मनुष्य को तो इस बारे में सोचना तक नहीं चाहिए।
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बहरहाल खिलाड़ी अंत तक उत्साह से डटे रहते हैं, और मैं तो शुरू से ही अनाड़ी रहा हूँ।
मेरी एक फेसबुक मित्र का प्रिय गीत याद आता है :
"सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी !"
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