Monday, 30 December 2019

आयुर्वेद के सन्दर्भ में भूत विद्या

भूत-विद्या का सच 
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सुश्रुतो न श्रुतो येन वाग्भटो न च वाग्भटः।
नाधीतश्चरको येन स वैद्यो यमकिङ्करः।।
अर्थ :
जिसने सुश्रुत का नाम नहीं सुना, जिसने वाग्भट की वाणी नहीं पढ़ी-सुनी-समझी, जिसने चरक के ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया; - ऐसा वैद्य (चिकित्सक) यमदूत-तुल्य है।
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वाग्भट रचित 'अष्टाङ्ग-हृदय' ग्रन्थ मूलतः 'वृद्धवाग्भटः' नाम से जाना जाता है।
आचार्य श्री वाग्भट ने ही पुनः इसके प्रधान तत्व को 'अष्टाङ्ग-हृदय' में संकलित किया था ।
इसके आठ अङ्ग (अध्याय / विभाग) इस प्रकार हैं :
1 . शल्य,
2  . शालाक्य,
3 . काय-चिकित्सा,
4 . भूत-विद्या,
5 . कौमारभृत्य,
6 . अगद तंत्र,
7 . रसायन तंत्र,
8 . वाजीकरण तन्त्र
- 'अष्टाङ्ग-हृदय'-
प्रथमोऽध्यायः 
रागादिरोगान् सततानुषक्तानशेषकायप्रसृतानशेषान्।
औत्सुक्यमोहारतिदान् जघान योऽपूर्ववैद्याय नमोऽस्तु तस्मै।।१
अथात आयुषकामीयाध्यायं व्याख्यास्यामः।
इति ह स्माहुरात्रेयादयो महर्षयः।।२
आयुः कामयमानेन धर्मार्थसुखसाधनम्।
आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः।।३
ब्रह्मास्मृत्वायुषोवेदं प्रजापतिमजिग्रहत्।
सोऽश्विनौ तौ सहस्राक्षं सोऽत्रिपुत्रादिकान्मुनीन्।
तेऽग्निवेशादिकान्स्ते तु पृथक्तंत्राणि तेनिरे।।४
तेभ्योऽतिविप्रकीर्णेभ्यः प्रायः सारतरोच्चयः।
क्रियतेऽष्टाङ्गहृदयं नातिसंक्षेपविस्तरम्।।५
कायबालग्रहोर्ध्वाङ्गशल्यदंष्ट्राजरावृषान्।
अष्टावङ्गानि तस्याहुश्चिकित्सा येषु संश्रिता।।६
1 . काय (काय-चिकित्सा),
2 . बाल (बाल-तन्त्र),
3 . ग्रह (भूत-विद्या)
4. ऊर्ध्वाङ्ग,
5 .शल्य (शल्य-चिकित्सा),
6 . दंष्ट्रा (अगद-तंत्र),
7 . जरा (रसायन- तंत्र),
8 .वृष (वाजीकरण -तंत्र)
इस प्रकार इन आठ अंगों में चिकित्सा के संस्थित होने से इस ग्रन्थ के ये आठ अंग कहे गए हैं।
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