Sunday, 17 November 2019

पाकिस्तान : अबू फज़ल से फज़लुर्रहमान तक

बादशाहनामा 
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जब श्रीभरत के अयोध्या लौटकर राज-पाट स्वीकार करने की प्रार्थना को भगवान् श्रीराम ने अस्वीकार कर दिया और श्रीभरत से ही अपना वनवास-काल पूर्ण होने तक वहाँ का शासन करने का आग्रह किया, तो उनके इस आग्रह को आदेश मानकर श्रीभरत ने भगवान् श्रीराम की चरण-पादुका को अयोध्या के राजा के शासक का प्रतीक मानकर जिस प्रणाली / परंपरा का प्रारम्भ किया उसे पाद-शासीय कहा गया।
इसी पाद-शासीय का अपभ्रंश हुआ बादशाही और सम्राट को पादशाह कहा जाने लगा।
अरबी लिपि में 'प' वर्ण की अनुपस्थिति में 'ब' को ही प्रयुक्त किया जाता है।
इसलिए पादशाह को 'बादशाह' कहा जाने लगा।
यह है संक्षिप्त पादशासनामा / बादशाहनामा 
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छत्रपति शिवाजी ने इसी परंपरा के प्रमाण से अपने गुरु समर्थ श्री रामदास महाराज की खड़ाऊँ को सिंहासन पर रखकर अपने राज्य का शासन किया और उसे स्थानीय मराठी भाषा में पादशाही कहा जाता है।
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अकबर को भी बादशाह कहा जाता है लेकिन वह किस परंपरा का था, यह विचारणीय है !
अबू फज़ल ने अकबरनामा / आईना-ए-अक़बरी में अक़बर की इसी महानता का वर्णन किया होगा। 
उसी बर्बर बाबरी परंपरा को अपनी संस्कृति मानने वाले पाकिस्तान (या बाकिस्तान?) में प्राचीन भारतीय संस्कृति के पुरावशेषों और प्रमाणों को भी नष्ट किया जा रहा है।   
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पाकिस्तान : अबू फज़ल से मौलाना फज़लुर्रहमान तक  
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