आचार्य श्री नित्यानन्द जी के एक विडिओ की विवेचना
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उपरोक्त विडिओ देखते हुए कुछ नोट्स बनाए जो शायद प्रासंगिक हो सकते हैं।
चूँकि यह विवेचना केवल इस विडिओ को अधिक अच्छी तरह समझने के लिए की गयी है इसलिए इससे किसी से वाद-विवाद करना उद्दिष्ट नहीं है।
ख़ास तोहफ़ा -- खः / खं --अंतरिक्षः (मन) ख़ास = विशिष्ट।
ख़ुसूस शब्द इसी से बना होगा।
हिन्दू -- सिन्धु ?
हिन्दू की अन्य व्युत्पत्ति जो मुझे अधिक सही प्रतीत होती है वह है इंद्र और इन्दु से।
India Indo (prefix) इसीलिए इन्दु के सजात / सहजात / तद्भव / तत्सम।/ अपभ्रंश / cognate हैं।
आप् -- आप्नोति -- अपनाना -- अब्न / इब्न ...
उर्द् -- उछलना, कूर्द् -- कूदना (से उर्दू भाषा -व्युत्पत्ति),
Hoch Deutsch उच्चतर जर्मन -- ह उच्च।
ह हि दोनों संस्कृत अव्यय पद हैं।
इसी से hy / hi उपसर्ग / prefix अंग्रेजी में आया।
hyper - हि पर , hybrid - हि वृध्,
सराहनीय -- सरः नीय -- (नी --नीयते, ले जाना, नेता, नायक)
क्षमिति, उपयोगिति, विक्षिति को भाववाचक संज्ञा (abstract noun) या क्रिया-विशेषण (adverb) समझा जा सकता है।
Normal Distribution (Statistics) के लिए तमिळ भाषा में साधारण विनियोगं लिखा जाता है।
अन्य प्रयोग भी है।
तक़सीम -- त अव सं / सीम --
Normal Distribution (Statistics) नृ-ल-द्विः -त्रि -भूषण।
मा 'मूल -- म उपसर्ग + आमूल।
इसे 'अमल' 'त आमील' से भी प्राप्त किया जा सकता है।
तौज़ी -- त -अव - इय / ईय
चारों संस्कृत अव्यय प्रत्यय हैं जो अरबी / फ़ारसी में उपसर्ग की तरह हो सकते हैं।
बादरायण पुरस्कार अरबी फ़ारसी में दिए जाने से हमारा ध्यान इसके इस महत्त्व पर जा सकता है कि अरबी तथा फ़ारसी का संस्कृत से गहरा संबंध है।
अरबी का उल्लेख ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 163 में है, जबकि फ़ारसी का संबंध परशुराम से है।
इतालियन शब्द 'Fasci' इसी से बना है जिसका प्रतीक चिह्न था घास के गट्ठर पर राखी कुल्हाड़ी।
इसी प्रकार जर्मन (शर्मन्) शब्द 'Natzi' नृ से व्युत्पन्न है जिसके बारे में बहुत विस्तार से लिख चुका हूँ।
nation, natal, nephew, niece, nature, आदि इसी से बने हैं।
मुमक़िन -- म उम् किं / म अनु किं दृष्टव्य है।
लज्जा का विषय नहीं, शायद विषय की लज्जा है।
पुकार -- 'प'-कार - प पञ्चम (ऊँचा) स्वर है।
लहर -- लकार -- लः 'र' प्रत्यय के साथ।
घमासान -- घना शान् -- (लिपित्रुटि)
मो -अदसो मात् Normal Distribution (Statistics) , मो राजि समः।
अंग्रेज़ी में :
mo, moment, move, motion, movement
इसी मो / मात् से आए हैं।
देवी अथर्व शीर्ष तथा स्कन्द पुराण में वर्णों की मातृका (matrix) भी इसी की पुष्टि करते हैं।
रूसी भाषा की वर्ण-मातृका (Matrix of letters) जिन 'सन्त' Cyril ने लिखी उसके 33 वर्ण अक्षरशः श्री-लिपि का अनुकरण है जिसके द्वारा Cyril को 'सन्त' की उपाधि दी गयी। श्री-लिपि 'शारदा' अर्थात् ब्राह्मी ही है।
गुनाह -- गुणाः (सद्गुण, दुर्गुण या अवगुण)
हक़ -- सज् - सक् - हक़ (स का ह हो जाना )
अड्ड -आड़ा -- आट -- आडम्बर,
रास्तः -- राजतः -- विराज,
इक्ष -- अक्ष -- अश्क़ (नेत्र या आँसू), इश्क़,
रश्क़ (हृष्क) -- किन्तु अरबी / उर्दू में इसका प्रयोग 'envy'के अर्थ में होता है।
प्रसाद - प्रसन्न - प्र सद् नि -- जबकि शाद का उद्भव सीद् (सीदन्ति मम गात्राणि) से है।
शाद पुनः विषाद का विलोम है, इस अर्थ में ख़ुशी का द्योतक है।
वर्ण 'फ' ph से साम्य रखता है और प-वर्ग में है, जिसका उच्चार करते समय ओंठ खुलते और बंद होते हैं, जबकि 'फ़' उपूपध्मानीय अर्थात् 'व' के वर्ग में है जिसमें ओंठ बंद नहीं होते।
प्ल से बना है प्लावन / प्लवन / प्लवङ्ग (वानर) जिसका अपभ्रंश है : 'फैलना',
जलाल ज्वल / ज्वर से बना है जिससे उज्जवल शब्द होता है -- अर्थ है : तेज।
ज़लालत शब्द गलित, ग्लानि से आया है, जिसका अर्थ है अपमानित।
औरत शब्द 'औरसः' -- उरसः से आया है जिसका अर्थ है जिसे सृष्टा ने पुरुष के सीने की अस्थि (हड्डी) से बनाया। तात्पर्य यह कि स्त्री की आत्मा भी पुरुष ही है।
स्त्री शब्द 'स्तृ' से आया है जिसकी स्तुति की जाती है।
स्त्री 'स्तृ' के अर्थ में तारिका (star) भी है जिसका अपना प्रकाश होने से वह 'देवी' है।
'नृ' से नर तथा नारी, नारा (जल) नारद तथा नाद एवं नारद दृष्टव्य हैं।
पुरुष की व्युत्पत्ति 'पृ' पूरयति से है, जिससे सब-कुछ ओत-प्रोत है वह,
पुरे शेते जो पुर अर्थात् पुर या लोक में है।
शहीद -- शं हितो (प्रच्छन्न)
इसकी व्युत्पत्ति 'हद' (अति) से भी की जा सकती है।
हज़ार -- ह स्र -- सहस्र समानार्थी हैं और कोई कारण नहीं कि सहस्र के अर्थ में 'हज़ार' के प्रयोग पर आपत्ति की जाए। गुलाबी pink के लिए संस्कृत में पाटल से भिन्न एक शब्द है पिङ्ग - पिङ्गल। शिव का एक नाम पिंकेश भी है। जिसके केश पिङ्गल (धूमिल पीतवर्ण) हैं।
वक़ील -- वच् वचि ल या वकि ल से बनाया जा सकता है।
अंग्रेज़ी में अधिवक्ता के लिए advocate मूलतः इसी का सज्ञात cognate है।
सरकार को सरःकार का ही एक प्रकार माना जा सकता है।
एक शब्द है 'सरोकार' जो सरःकार में विसर्ग के ओ में बदलने से बनता है, जैसे :
रामो राजमणिः में रामः 'रामो' हो गया।
देहात देहाती देशीय देशी के अपभ्रंश हैं।
ज़बान / ज़ुबाँ, 'जिह्वां' से तुल्य है।
ख़ास का मूल वर्ण है 'ख' जिससे खिल अखिल निखिल बने हैं।
ख़िलाफ़त इसी 'खिल्' धातु से बँटने के अर्थ में बना है।
तोहफ़ा -- तु उपहारः।
दरबार -- द्वारवर या द्वारवार।
इसलिए गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने और शृङ्गेरी मठ की परंपरा में इसका प्रयोग पूर्णतः स्वीकार्य है और इसे अरबी या फ़ारसी नहीं कह सकते।
शाह शब्द 'शास्' शासयति शिक्षयति से आया है जिससे 'शास्त्र' भी बना है और 'शस्त्र' भी।
साह शब्द 'साधु' से आया है जो 'आर्य' का समानार्थी है।
ख़रीद -- 'क्रीत' का तद्भव / अपभ्रंश है।
'बेचना' -- 'वञ्चनं' का तद्भव / अपभ्रंश है। प्रकारांतर से इसे विक्रीत कहा जाता है।
'फ़रमाना' 'प्रमा' से बना है जिससे 'फ़रमा' (माप) और अंगेज़ी का 'form' 'pharma' बने हैं।
'प्रामाण्य' से भी इसका साम्य है।
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शेष अगली पोस्ट में ....
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हिन्दी-अरबी-फ़ारसी-अंग्रेज़ी-संस्कृत : कितनी सन्निकट
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उपरोक्त विडिओ देखते हुए कुछ नोट्स बनाए जो शायद प्रासंगिक हो सकते हैं।
चूँकि यह विवेचना केवल इस विडिओ को अधिक अच्छी तरह समझने के लिए की गयी है इसलिए इससे किसी से वाद-विवाद करना उद्दिष्ट नहीं है।
ख़ास तोहफ़ा -- खः / खं --अंतरिक्षः (मन) ख़ास = विशिष्ट।
ख़ुसूस शब्द इसी से बना होगा।
हिन्दू -- सिन्धु ?
हिन्दू की अन्य व्युत्पत्ति जो मुझे अधिक सही प्रतीत होती है वह है इंद्र और इन्दु से।
India Indo (prefix) इसीलिए इन्दु के सजात / सहजात / तद्भव / तत्सम।/ अपभ्रंश / cognate हैं।
आप् -- आप्नोति -- अपनाना -- अब्न / इब्न ...
उर्द् -- उछलना, कूर्द् -- कूदना (से उर्दू भाषा -व्युत्पत्ति),
Hoch Deutsch उच्चतर जर्मन -- ह उच्च।
ह हि दोनों संस्कृत अव्यय पद हैं।
इसी से hy / hi उपसर्ग / prefix अंग्रेजी में आया।
hyper - हि पर , hybrid - हि वृध्,
सराहनीय -- सरः नीय -- (नी --नीयते, ले जाना, नेता, नायक)
क्षमिति, उपयोगिति, विक्षिति को भाववाचक संज्ञा (abstract noun) या क्रिया-विशेषण (adverb) समझा जा सकता है।
Normal Distribution (Statistics) के लिए तमिळ भाषा में साधारण विनियोगं लिखा जाता है।
अन्य प्रयोग भी है।
तक़सीम -- त अव सं / सीम --
Normal Distribution (Statistics) नृ-ल-द्विः -त्रि -भूषण।
मा 'मूल -- म उपसर्ग + आमूल।
इसे 'अमल' 'त आमील' से भी प्राप्त किया जा सकता है।
तौज़ी -- त -अव - इय / ईय
चारों संस्कृत अव्यय प्रत्यय हैं जो अरबी / फ़ारसी में उपसर्ग की तरह हो सकते हैं।
बादरायण पुरस्कार अरबी फ़ारसी में दिए जाने से हमारा ध्यान इसके इस महत्त्व पर जा सकता है कि अरबी तथा फ़ारसी का संस्कृत से गहरा संबंध है।
अरबी का उल्लेख ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 163 में है, जबकि फ़ारसी का संबंध परशुराम से है।
इतालियन शब्द 'Fasci' इसी से बना है जिसका प्रतीक चिह्न था घास के गट्ठर पर राखी कुल्हाड़ी।
इसी प्रकार जर्मन (शर्मन्) शब्द 'Natzi' नृ से व्युत्पन्न है जिसके बारे में बहुत विस्तार से लिख चुका हूँ।
nation, natal, nephew, niece, nature, आदि इसी से बने हैं।
मुमक़िन -- म उम् किं / म अनु किं दृष्टव्य है।
लज्जा का विषय नहीं, शायद विषय की लज्जा है।
पुकार -- 'प'-कार - प पञ्चम (ऊँचा) स्वर है।
लहर -- लकार -- लः 'र' प्रत्यय के साथ।
घमासान -- घना शान् -- (लिपित्रुटि)
मो -अदसो मात् Normal Distribution (Statistics) , मो राजि समः।
अंग्रेज़ी में :
mo, moment, move, motion, movement
इसी मो / मात् से आए हैं।
देवी अथर्व शीर्ष तथा स्कन्द पुराण में वर्णों की मातृका (matrix) भी इसी की पुष्टि करते हैं।
रूसी भाषा की वर्ण-मातृका (Matrix of letters) जिन 'सन्त' Cyril ने लिखी उसके 33 वर्ण अक्षरशः श्री-लिपि का अनुकरण है जिसके द्वारा Cyril को 'सन्त' की उपाधि दी गयी। श्री-लिपि 'शारदा' अर्थात् ब्राह्मी ही है।
गुनाह -- गुणाः (सद्गुण, दुर्गुण या अवगुण)
हक़ -- सज् - सक् - हक़ (स का ह हो जाना )
अड्ड -आड़ा -- आट -- आडम्बर,
रास्तः -- राजतः -- विराज,
इक्ष -- अक्ष -- अश्क़ (नेत्र या आँसू), इश्क़,
रश्क़ (हृष्क) -- किन्तु अरबी / उर्दू में इसका प्रयोग 'envy'के अर्थ में होता है।
प्रसाद - प्रसन्न - प्र सद् नि -- जबकि शाद का उद्भव सीद् (सीदन्ति मम गात्राणि) से है।
शाद पुनः विषाद का विलोम है, इस अर्थ में ख़ुशी का द्योतक है।
वर्ण 'फ' ph से साम्य रखता है और प-वर्ग में है, जिसका उच्चार करते समय ओंठ खुलते और बंद होते हैं, जबकि 'फ़' उपूपध्मानीय अर्थात् 'व' के वर्ग में है जिसमें ओंठ बंद नहीं होते।
प्ल से बना है प्लावन / प्लवन / प्लवङ्ग (वानर) जिसका अपभ्रंश है : 'फैलना',
जलाल ज्वल / ज्वर से बना है जिससे उज्जवल शब्द होता है -- अर्थ है : तेज।
ज़लालत शब्द गलित, ग्लानि से आया है, जिसका अर्थ है अपमानित।
औरत शब्द 'औरसः' -- उरसः से आया है जिसका अर्थ है जिसे सृष्टा ने पुरुष के सीने की अस्थि (हड्डी) से बनाया। तात्पर्य यह कि स्त्री की आत्मा भी पुरुष ही है।
स्त्री शब्द 'स्तृ' से आया है जिसकी स्तुति की जाती है।
स्त्री 'स्तृ' के अर्थ में तारिका (star) भी है जिसका अपना प्रकाश होने से वह 'देवी' है।
'नृ' से नर तथा नारी, नारा (जल) नारद तथा नाद एवं नारद दृष्टव्य हैं।
पुरुष की व्युत्पत्ति 'पृ' पूरयति से है, जिससे सब-कुछ ओत-प्रोत है वह,
पुरे शेते जो पुर अर्थात् पुर या लोक में है।
शहीद -- शं हितो (प्रच्छन्न)
इसकी व्युत्पत्ति 'हद' (अति) से भी की जा सकती है।
हज़ार -- ह स्र -- सहस्र समानार्थी हैं और कोई कारण नहीं कि सहस्र के अर्थ में 'हज़ार' के प्रयोग पर आपत्ति की जाए। गुलाबी pink के लिए संस्कृत में पाटल से भिन्न एक शब्द है पिङ्ग - पिङ्गल। शिव का एक नाम पिंकेश भी है। जिसके केश पिङ्गल (धूमिल पीतवर्ण) हैं।
वक़ील -- वच् वचि ल या वकि ल से बनाया जा सकता है।
अंग्रेज़ी में अधिवक्ता के लिए advocate मूलतः इसी का सज्ञात cognate है।
सरकार को सरःकार का ही एक प्रकार माना जा सकता है।
एक शब्द है 'सरोकार' जो सरःकार में विसर्ग के ओ में बदलने से बनता है, जैसे :
रामो राजमणिः में रामः 'रामो' हो गया।
देहात देहाती देशीय देशी के अपभ्रंश हैं।
ज़बान / ज़ुबाँ, 'जिह्वां' से तुल्य है।
ख़ास का मूल वर्ण है 'ख' जिससे खिल अखिल निखिल बने हैं।
ख़िलाफ़त इसी 'खिल्' धातु से बँटने के अर्थ में बना है।
तोहफ़ा -- तु उपहारः।
दरबार -- द्वारवर या द्वारवार।
इसलिए गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने और शृङ्गेरी मठ की परंपरा में इसका प्रयोग पूर्णतः स्वीकार्य है और इसे अरबी या फ़ारसी नहीं कह सकते।
शाह शब्द 'शास्' शासयति शिक्षयति से आया है जिससे 'शास्त्र' भी बना है और 'शस्त्र' भी।
साह शब्द 'साधु' से आया है जो 'आर्य' का समानार्थी है।
ख़रीद -- 'क्रीत' का तद्भव / अपभ्रंश है।
'बेचना' -- 'वञ्चनं' का तद्भव / अपभ्रंश है। प्रकारांतर से इसे विक्रीत कहा जाता है।
'फ़रमाना' 'प्रमा' से बना है जिससे 'फ़रमा' (माप) और अंगेज़ी का 'form' 'pharma' बने हैं।
'प्रामाण्य' से भी इसका साम्य है।
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शेष अगली पोस्ट में ....
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हिन्दी-अरबी-फ़ारसी-अंग्रेज़ी-संस्कृत : कितनी सन्निकट
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