Sunday, 3 November 2019

लिखते लिखते याद आया ...

संबुद्ध और समबुद्धि 
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पिछले पोस्ट की अंतिम पंक्तियाँ :
संबद्ध संबुद्ध नहीं होता,
और संबुद्ध संबद्ध नहीं होता ।
लिखते लिखते याद आया :
सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः। 
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।।4 
यह है श्रीगीताजी के अध्याय 12 का श्लोक।
संबुद्ध समबुद्धि अवश्य होता है।
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