Friday, 22 November 2019

प्रामाण्य और फ़रमान

यह पोस्ट पिछले पोस्ट का शेष भाग है।
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शीर्षक देखते ही लगता है कि अरबी फ़ारसी या उर्दू भाषा में प्रयुक्त होनेवाला यह शब्द 'फ़रमान', संस्कृत शब्द 'प्रमाण' या 'प्रामाण्य' का सज्ञात / सजात / अपभ्रंश / तद्भव / तत्सम अर्थात् cognate हो सकता है।
अब एक नया शब्द है : नज़र / नाज़िर / हाज़िर
नज़र और नज़्र एक ही शब्द के दो विन्यास हैं। 
यह शब्द 'नृषु' का तद्भव हो सकता है।
यहाँ केवल संकेत किया जा रहा है न कि दावा।
हाज़िर शब्द इसी प्रकार 'अस्' धातु से बना आसीः का तद्भव है।
नज़ीर / उदाहरण तथा नाज़िर (दिखलाई देना) भी 'नज़र' का रूपांतरण है।
वज़ीर 'वर्धीय' या 'वस् रीय' से आया है।
इन सब व्युत्पत्तियों का मौलिक आधार है अर्थ-साम्य का सिद्धांत।
यदि मूल संस्कृत शब्द में वही अर्थ प्राप्त होता है जो व्युत्पन्न से मिलता जुलता है तो हमारे पास यह मानने के लिए पर्याप्त आधार है कि व्युत्पन्न शब्द मूलतः उस संस्कृत का ही बदला हुआ प्रचलित रूप है।
'पैदा' शब्द 'प्रजायते' / 'प्रदाय' का बदला हुआ प्रचलित रूप हो सकता है।
'खारिज' क्षारित / क्षरित का तथा ख़ालिस (शुद्ध) क्षालित (धुला हुआ, स्वच्छ)  का पर्याय है।
'वेट' / 'इंतज़ार' / 'wait' को संस्कृत शब्द 'वयति' / बीतता है / व्यतीत होता है में देख सकते हैं।
'याद' शुद्ध संस्कृत शब्द है जो 'चंद्र' का पर्याय है।  यदुवंश तथा यादव इसी यादस् से उद्भूत हुए हैं।
'आवाज़' इसी तरह आ-वाच् का रूप है।
'गौर' गुरु / गौरव से बना है जो गूढ  तथा संभवतः अंग्रेज़ी 'GOD' का भी जनक है।
वेदों में 'गूढ' को 'गूळः' भी कहा गया है।
गुड़ इसी गूढ़ / गूल्यते / गुलिका / गोळा करणेँ (मराठी -- एकत्र करना) से आया है।
तशरीफ़ इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण है कि किस प्रकार अरबी मूलतः एकवर्णीय प्रत्ययों से निर्मित शब्दों से बनी भाषा है।  विशेष यह कि जहाँ संस्कृत भाषा में ये वर्ण प्रत्यय की तरह किसी दूसरे शब्द के आगे या पीछे क्रमशः उपसर्ग और विशेष्य-प्रत्यय की तरह प्रयुक्त होते हैं, अरबी में ऐसा कोई तय (संस्कृत - 'तया') नियम (निज़ाम) नहीं है, क्योंकि अरबी भाषा का व्याकरण दूसरी विभिन्न भाषाओं की तरह भाषा के प्रचलित नियमों के आधार पर विकसित हुआ है, जबकि संस्कृत का व्याकरण  'वेदाङ्ग' होने से नित्य सनातन और शाश्वत तथा अविकारी भी है।
'रास्तः' / 'रास्ता' राजतः से बना है।
'तशरीफ़' से मिलते-जुलते शब्द हैं  :
अशरफ़, मुशरिफ़, शरीफ, अशर्फी, मुशर्रफ़, मशरिफ़ (पूर्व दिशा)
क्योंकि सूरज पूर्व दिशा में ही उगता है। 
जो मूलतः संस्कृत वर्ण / धातु
'शृ' / शर (बाण, जलता हुआ, ज्वलंत इसलिए तेजस्वी) से बने हैं।
अशर्फ़ी 'श्री' से बना है।
'श्वेत' से बना सफ़ेद, शफ्फाक़ ।
पश्चिम का पर्याय है 'मग़रिब' जो ग़रीब, ग़रीबी और ग़ुरबत से मिलता जुलता है।
पश्च -- post जैसा कि 'पोस्ट-मार्टम' में है, 'पश्च' तथा 'मृत्युं' का संयोग है।
रोचक यह है कि अंग्रेज़ी में back शब्द भी 'पश्च' का ही कुछ ज़्यादा ही रूपांतरण है।
दूसरी और 'bake' पच् का पर्याय है; --- अर्थ है 'पकाना'।
ख़ुश --- 'प्रसन्न --तुलना करें 'हृष्' 'हृष्ट' 'हृष्ट-पुष्ट' से।
'कम' -- किं / कं से,
ज़्यादा -- ज्येष्ठ, ज्यायतः से।
'रिहा' - रिच्यते अर्थात् रिक्त करना / होना से बना है।
मोहब्बत -- मोहवत् से, या महद्वत् से, जिसे महत्त्व दिया जाता है।
पेशाब -- प्रस्राव से (प्रसव नहीं, यद्यपि वैसी विवेचना करना भी गलत नहीं होगा) ।
क़दम -- क्रम / कर्म या कडे (मराठी) पाउल / पियादा / pawn ।
क़दम को कति (कितने) से भी व्युत्पन्न किया जा सकता है, जिससे बना है :
क़तआ / क़िताब / क़िताबत,
क़ाबिल -- क बल -- मुक़ाबला, नाक़ाबिल, क़ाबुल,
वैसे अंग्रेज़ी का cabal / matrix का उद्गम मेरे हातिम ताई से संबंधित पोस्ट्स में भी देखा जा सकता है।
सुबह -- सु-वह् ,
शाम -- सायं (मराठी संध्याकाळ जिसका अर्थ 'शाम का अन्धेरा' भी होता है। ),
हाय -- ह आ अये / अयि / अय्  , हा, हि (अंग्रेज़ी hi / high)
तौबा -- त -अव आ, त-उ- आ ,
शहीद -- शयितः / शहितः।
साफ़ - स्पः / स्फ (स्फटिक)
नीयत -- नीयते (नी धातु) -- नेता, नियति,
वाक़या / वाक़ई / वाक्य
बढ़िया - वर्धीय / वर्धि / वर्धीया / बधाई !
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