आज की कविता
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आख़िर मैंने तय किया,
कि अपनी ही शर्तों पर जीना है मुझे,
नहीं करना है कोई फ़िक्र या उम्मीद,
जीवन जो भी दे स्वीकार है,
जीवन जो न भी दे वह न भी,
हाँ, मानता हूँ कि मेरी कुछ ज़रूरतें हैं,
लेकिन यह भी जीवन को ही तय करना है,
कि उनमें से कौन सी अहम हैं,
और कौन सी हैं ग़ैर ज़रूरी,
यह ’अहं’ शायद क़तई अहम नहीं है ....
फिर तय करनेवाला,
मैं कौन होता हूँ
हाँ सच है,
मैं कोई नहीं !
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आख़िर मैंने तय किया,
कि अपनी ही शर्तों पर जीना है मुझे,
नहीं करना है कोई फ़िक्र या उम्मीद,
जीवन जो भी दे स्वीकार है,
जीवन जो न भी दे वह न भी,
हाँ, मानता हूँ कि मेरी कुछ ज़रूरतें हैं,
लेकिन यह भी जीवन को ही तय करना है,
कि उनमें से कौन सी अहम हैं,
और कौन सी हैं ग़ैर ज़रूरी,
यह ’अहं’ शायद क़तई अहम नहीं है ....
फिर तय करनेवाला,
मैं कौन होता हूँ
हाँ सच है,
मैं कोई नहीं !
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