वन्दे मातरम् !
vande mātaram !
Please see the English translation of this post just underneath the Hindi text.
कला का अर्थ
--
प्लेटो और अरस्तू के युग में ’ऑल आर्ट इज़ इमिटेशन ऑफ़ नेचर’ / 'All art is imitation of nature' इस वक्तव्य पर विचार-विमर्श होता था । आधुनिक युग में श्री जे.कृष्णमूर्ति ने एक समानान्तर वक्तव्य दिया ’ऑल आर्ट इज़ इमिटेशन’ / 'All art is imitation' । संभव है कि जे.कृष्णमूर्ति ने प्लेटो और अरस्तू के समय के उपरोक्त वक्तव्य को पढ़ा या न पढ़ा हो । जो भी हो, यह विचारणीय है कि अंग्रेज़ी ’emiṭ’ ’imit’ और ’emoṭe’ का उद्भव एक ही संस्कृत प्रत्यय ’इम्’ से हुआ है जिसका अर्थ अन्य वर्णों के योग से भिन्न भिन्न होता है । एक ओर यह पुंल्लिंग ’एतत्’ के रूप में ’अयम्’ अर्थात् ’यह’ होता है, जैसे कि ’अयम् आत्मा’ में, तो दूसरी ओर स्त्रीलिंग ’अस्मद्’ के रूप में ’अयम्’ अर्थात् ’यह’ भी होता है, जैसे ’इयम् माता’ । दूसरी ओर ’इम्’ के रूप में यह प्रातिपदिक पद से युक्त होने पर ’की तरह का’ का द्योतक हो जाता है, जैसे स्वर्णिम, रक्तिम, स्वनिम, रूपिम, आदिम, अंतिम, इत्यादि । ’अलं’ जो ’अलंकार’ में ’पूर्णता’ का द्योतक है, ’अल्’ के रूप में अरबी, फ़ारसी, फ़्रेन्च, जर्मन, तथा अंग्रेज़ी में भी भिन्न-भिन्न रूप लेकर प्रयुक्त होता है इसमें सन्देह नहीं । अब हम ’अर्थ’ के तात्पर्य की विवेचना करें तो सामान्यतः जिसे ’ज्ञान’ कहा जाता है वह दो प्रकार का होता है । प्रथम तो शब्द-विशेष के वर्णों और उच्चारण अर्थात् उसके ’रूपिम्’ (figurative) और ’स्वनिम्’ (phonetic) प्रकार की स्मृति और उस ’रूपिम्’(figurative) और ’स्वनिम्’(phonetic) से जिस वस्तु या भावना को इंगित किया जाता है उस वस्तु या भावना की स्मृति । रोचक तथ्य यह है कि न तो शब्द-विशेष, न उसकी ’रूपिम्’ (figurative) और ’स्वनिम्’(phonetic) प्रकार की स्मृति, और पुनः वह ’ज्ञान’ जिससे किसी विशिष्ट-वस्तु या भाव को इंगित किया जाता है, वस्तु अथवा भाव का विकल्प हो सकता है । सरल भाषा में कहें तो ’रोटी’ शब्द ’रोटी’ नामक वस्तु का कार्य नहीं कर सकता । ऐसे ही ’पानी’ या ’भूख’ और ’प्यास’, ’सुख’ या ’दुःख’ आदि शब्दों के अर्थ को देखें । इसलिए किसी वस्तु या भावना की अनुकृति को कला कहा जाता है जो वास्तव में उस वस्तु या भावना का द्योतक या उसे कम या अधिक स्पष्टता से इंगित भले ही करता हो वास्तव में ’नक़ल’ होता है न कि वह वस्तु या भावना ।
पाणिनी १/१/९ ’तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णं’ की सहायता से यह समझा जा सकता है कि किस प्रकार ’प्र’-उपसर्ग और ’कृ’ धातु से ’प्रकृ’ और ’प्रकृति’ शब्द बना । इसी ’प्रकृ’ से अंग्रेज़ी ’फ़िगर’ (figure) अस्तित्व में आया । ’आ स-अलं’ से सलाम, सलामती, मुसल्लम, सालिम, असलम, और ’सलीम’ बने । इस सूत्र की सहायता से தமிழ் भाषा के प्रचलित स्वरूप को भी समझा जा सकता है, जहाँ वर्ण के भिन्न-भिन्न ध्वनिम (phonetic) रूपों के लिए एक ही रूपिम (figurative) प्रकार प्रयुक्त होता है । यह தமிழ் का सौन्दर्य और वैभव तो है ही, किंतु भाषा के प्रयोगकर्ताओं के प्रमाद के कारण एक अभिशाप बन गया है जिससे शास्त्रीय तमिऴ् विलुप्त होने के संकट की स्थिति की ओर जा रही है ।
अभी तो इमिता (imitation) / अनुकृति पर पुनः लौटें । ’अर्थ’ से ही व्युत्पन्न हुआ ’आर्ट’ / Art, ’आर्टिफ़ीशियल्’ / artificial, ’आर्टिस्टिक’ / artistic, ये सभी ’अनुकृति’ के ही पर्याय हैं । इसलिए ’ऑल आर्ट इज़ इमिटेशन ऑफ़ नेचर’ / 'All art is imitation of nature' सत्य तो है किंतु आंशिक रूप से ही । क्योंकि जब अनुकृति अपनी प्रेरणा को अधिकतम स्पष्टता से व्यक्त करती है तो यद्यपि वह उस प्रेरणा अर्थात् वस्तु या भावना का कार्य तो नहीं करती किन्तु उसे देखने-सुननेवाले के मन-मस्तिष्क में उसकी निकटतम आकृति अवश्य निर्मित कर देती है । अंग्रेज़ी में ’emoṭe’/ ’emotion’ को, ’evoke’ कर देती है ।
यह ’evoke’ पुनः ’अव-वाक्’ से ही आया है, इसके लिए पुनः पाणिनी १/१/९ ’तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णं’ की सहायता ली जा सकती है ।
--
संक्षेप में यह कहना अनुचित न होगा :
भाषा एक कला-विधा है !
अगली 'पोस्ट' में इस पर विस्तार से !
Significance of Art.
In the times of Plato and Aristotle, discussions were aplenty about the nature and role of ‘Art’. And a most famous quote which was ascribed to them was:
“All Art is imitation of nature.”
In our times however, J.Krishnamurti turned this into even a more concise form by saying:
“All Art is imitation”.
We may assume J.Krishnamurti might have or haven’t gone through the thoughts of those old thinkers like Plato and Aristotle.
Whatever be the case, this may be pointed out that the root-stem in Sanskrit which gave rise to the English words 'emit', 'imitation', 'omit, and 'emotion' was the same संस्कृत प्रत्यय ’इम्’ / Sanskrit qualifying affix 'im' which takes the form अयम् / 'ayaM' and is used in the sense of masculine singular demonstrative pronoun 'this'. 'im' again takes the form इयम् / 'iyaM' to denote the feminine indicative pronoun 'this'. अयम् आत्मा / ayaM ātmā , इयम् माता / iyaM mātā mean : This 'Self' and 'This mother'. Again as suffix 'इम्' / 'iM' is the suffix used to make a noun an adjective.
Like in the words :
स्वर्णिम, svarṇima , रक्तिम, raktima , स्वनिम, svanima , रूपिम, rūpima , आदिम, ādima अंतिम aṃtima which mean :
Golden, blood-red, sonic, figurative, aboriginal, and last,
respectively, this means : of the kind of / 'like'.
Again अल् / 'al and अलं alaṃ which in Sanskrit mean completion, perfection are also प्रत्यय affixes, which are frequently found in varied forms in Arabic, French, German English and other many languages.
Let us consider the term 'Art' which is derived from Sanskrit word अर्थ .
What do we mean by 'knowledge'?
Knowledge has two forms : First is the memory of the figurative and phonetic forms of the letters that constitute a specific word. And another is the memory of the object / mental impression associated with the object which we have in mind when we use the word.
Even more interesting is the fact that neither the word nor the meaning of the word that is supposed to convey the fact of the object described so could be a substitute for the real object or the feeling / mental impression associated with the object.
In simple way, the word 'food' could not be used to satisfy the hunger. The word 'water' could not quench the thirst.
But language has immense utility because we 'imitate' / 'translate' / transform an object of the material or abstract kind into a spoken and / or written word that effects the result.
So word is but imitation / translation / transformation.
Take the word 'figure'
पाणिनी १/१/९ ’तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णं’
pāṇinī aṣṭādhyāyī 1/1/9 / tulyāsyaprayatnaṃ savarṇaṃ’
defines the 'similarity' of letters (phonetic, figurative or both).
Which gives us how ’प्र’-उपसर्ग > pra-upasarga ’कृ’ धातु > kṛ dhātu gave us ’प्रकृ’ prakṛ > figure
and ’प्रकृति’ > prakṛti > figurative.
We could infer thereby All language is imitation of nature'
(by the way प्रकृति /prakṛti translated into English is called nature)
And we could safely simplify the notion :
"All Art is imitation of nature"
into :
"All Art is imitation"
As remarked by J.Krishnamurti.
And use of the term 'nature' becomes just superfluous.
Conclusion :
We can say Language is but an Art-form.
--
(In the next post the same theme in detail.)
--
.
vande mātaram !
Please see the English translation of this post just underneath the Hindi text.
कला का अर्थ
--
प्लेटो और अरस्तू के युग में ’ऑल आर्ट इज़ इमिटेशन ऑफ़ नेचर’ / 'All art is imitation of nature' इस वक्तव्य पर विचार-विमर्श होता था । आधुनिक युग में श्री जे.कृष्णमूर्ति ने एक समानान्तर वक्तव्य दिया ’ऑल आर्ट इज़ इमिटेशन’ / 'All art is imitation' । संभव है कि जे.कृष्णमूर्ति ने प्लेटो और अरस्तू के समय के उपरोक्त वक्तव्य को पढ़ा या न पढ़ा हो । जो भी हो, यह विचारणीय है कि अंग्रेज़ी ’emiṭ’ ’imit’ और ’emoṭe’ का उद्भव एक ही संस्कृत प्रत्यय ’इम्’ से हुआ है जिसका अर्थ अन्य वर्णों के योग से भिन्न भिन्न होता है । एक ओर यह पुंल्लिंग ’एतत्’ के रूप में ’अयम्’ अर्थात् ’यह’ होता है, जैसे कि ’अयम् आत्मा’ में, तो दूसरी ओर स्त्रीलिंग ’अस्मद्’ के रूप में ’अयम्’ अर्थात् ’यह’ भी होता है, जैसे ’इयम् माता’ । दूसरी ओर ’इम्’ के रूप में यह प्रातिपदिक पद से युक्त होने पर ’की तरह का’ का द्योतक हो जाता है, जैसे स्वर्णिम, रक्तिम, स्वनिम, रूपिम, आदिम, अंतिम, इत्यादि । ’अलं’ जो ’अलंकार’ में ’पूर्णता’ का द्योतक है, ’अल्’ के रूप में अरबी, फ़ारसी, फ़्रेन्च, जर्मन, तथा अंग्रेज़ी में भी भिन्न-भिन्न रूप लेकर प्रयुक्त होता है इसमें सन्देह नहीं । अब हम ’अर्थ’ के तात्पर्य की विवेचना करें तो सामान्यतः जिसे ’ज्ञान’ कहा जाता है वह दो प्रकार का होता है । प्रथम तो शब्द-विशेष के वर्णों और उच्चारण अर्थात् उसके ’रूपिम्’ (figurative) और ’स्वनिम्’ (phonetic) प्रकार की स्मृति और उस ’रूपिम्’(figurative) और ’स्वनिम्’(phonetic) से जिस वस्तु या भावना को इंगित किया जाता है उस वस्तु या भावना की स्मृति । रोचक तथ्य यह है कि न तो शब्द-विशेष, न उसकी ’रूपिम्’ (figurative) और ’स्वनिम्’(phonetic) प्रकार की स्मृति, और पुनः वह ’ज्ञान’ जिससे किसी विशिष्ट-वस्तु या भाव को इंगित किया जाता है, वस्तु अथवा भाव का विकल्प हो सकता है । सरल भाषा में कहें तो ’रोटी’ शब्द ’रोटी’ नामक वस्तु का कार्य नहीं कर सकता । ऐसे ही ’पानी’ या ’भूख’ और ’प्यास’, ’सुख’ या ’दुःख’ आदि शब्दों के अर्थ को देखें । इसलिए किसी वस्तु या भावना की अनुकृति को कला कहा जाता है जो वास्तव में उस वस्तु या भावना का द्योतक या उसे कम या अधिक स्पष्टता से इंगित भले ही करता हो वास्तव में ’नक़ल’ होता है न कि वह वस्तु या भावना ।
पाणिनी १/१/९ ’तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णं’ की सहायता से यह समझा जा सकता है कि किस प्रकार ’प्र’-उपसर्ग और ’कृ’ धातु से ’प्रकृ’ और ’प्रकृति’ शब्द बना । इसी ’प्रकृ’ से अंग्रेज़ी ’फ़िगर’ (figure) अस्तित्व में आया । ’आ स-अलं’ से सलाम, सलामती, मुसल्लम, सालिम, असलम, और ’सलीम’ बने । इस सूत्र की सहायता से தமிழ் भाषा के प्रचलित स्वरूप को भी समझा जा सकता है, जहाँ वर्ण के भिन्न-भिन्न ध्वनिम (phonetic) रूपों के लिए एक ही रूपिम (figurative) प्रकार प्रयुक्त होता है । यह தமிழ் का सौन्दर्य और वैभव तो है ही, किंतु भाषा के प्रयोगकर्ताओं के प्रमाद के कारण एक अभिशाप बन गया है जिससे शास्त्रीय तमिऴ् विलुप्त होने के संकट की स्थिति की ओर जा रही है ।
अभी तो इमिता (imitation) / अनुकृति पर पुनः लौटें । ’अर्थ’ से ही व्युत्पन्न हुआ ’आर्ट’ / Art, ’आर्टिफ़ीशियल्’ / artificial, ’आर्टिस्टिक’ / artistic, ये सभी ’अनुकृति’ के ही पर्याय हैं । इसलिए ’ऑल आर्ट इज़ इमिटेशन ऑफ़ नेचर’ / 'All art is imitation of nature' सत्य तो है किंतु आंशिक रूप से ही । क्योंकि जब अनुकृति अपनी प्रेरणा को अधिकतम स्पष्टता से व्यक्त करती है तो यद्यपि वह उस प्रेरणा अर्थात् वस्तु या भावना का कार्य तो नहीं करती किन्तु उसे देखने-सुननेवाले के मन-मस्तिष्क में उसकी निकटतम आकृति अवश्य निर्मित कर देती है । अंग्रेज़ी में ’emoṭe’/ ’emotion’ को, ’evoke’ कर देती है ।
यह ’evoke’ पुनः ’अव-वाक्’ से ही आया है, इसके लिए पुनः पाणिनी १/१/९ ’तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णं’ की सहायता ली जा सकती है ।
--
संक्षेप में यह कहना अनुचित न होगा :
भाषा एक कला-विधा है !
अगली 'पोस्ट' में इस पर विस्तार से !
Significance of Art.
In the times of Plato and Aristotle, discussions were aplenty about the nature and role of ‘Art’. And a most famous quote which was ascribed to them was:
“All Art is imitation of nature.”
In our times however, J.Krishnamurti turned this into even a more concise form by saying:
“All Art is imitation”.
We may assume J.Krishnamurti might have or haven’t gone through the thoughts of those old thinkers like Plato and Aristotle.
Whatever be the case, this may be pointed out that the root-stem in Sanskrit which gave rise to the English words 'emit', 'imitation', 'omit, and 'emotion' was the same संस्कृत प्रत्यय ’इम्’ / Sanskrit qualifying affix 'im' which takes the form अयम् / 'ayaM' and is used in the sense of masculine singular demonstrative pronoun 'this'. 'im' again takes the form इयम् / 'iyaM' to denote the feminine indicative pronoun 'this'. अयम् आत्मा / ayaM ātmā , इयम् माता / iyaM mātā mean : This 'Self' and 'This mother'. Again as suffix 'इम्' / 'iM' is the suffix used to make a noun an adjective.
Like in the words :
स्वर्णिम, svarṇima , रक्तिम, raktima , स्वनिम, svanima , रूपिम, rūpima , आदिम, ādima अंतिम aṃtima which mean :
Golden, blood-red, sonic, figurative, aboriginal, and last,
respectively, this means : of the kind of / 'like'.
Again अल् / 'al and अलं alaṃ which in Sanskrit mean completion, perfection are also प्रत्यय affixes, which are frequently found in varied forms in Arabic, French, German English and other many languages.
Let us consider the term 'Art' which is derived from Sanskrit word अर्थ .
What do we mean by 'knowledge'?
Knowledge has two forms : First is the memory of the figurative and phonetic forms of the letters that constitute a specific word. And another is the memory of the object / mental impression associated with the object which we have in mind when we use the word.
Even more interesting is the fact that neither the word nor the meaning of the word that is supposed to convey the fact of the object described so could be a substitute for the real object or the feeling / mental impression associated with the object.
In simple way, the word 'food' could not be used to satisfy the hunger. The word 'water' could not quench the thirst.
But language has immense utility because we 'imitate' / 'translate' / transform an object of the material or abstract kind into a spoken and / or written word that effects the result.
So word is but imitation / translation / transformation.
Take the word 'figure'
पाणिनी १/१/९ ’तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णं’
pāṇinī aṣṭādhyāyī 1/1/9 / tulyāsyaprayatnaṃ savarṇaṃ’
defines the 'similarity' of letters (phonetic, figurative or both).
Which gives us how ’प्र’-उपसर्ग > pra-upasarga ’कृ’ धातु > kṛ dhātu gave us ’प्रकृ’ prakṛ > figure
and ’प्रकृति’ > prakṛti > figurative.
We could infer thereby All language is imitation of nature'
(by the way प्रकृति /prakṛti translated into English is called nature)
And we could safely simplify the notion :
"All Art is imitation of nature"
into :
"All Art is imitation"
As remarked by J.Krishnamurti.
And use of the term 'nature' becomes just superfluous.
Conclusion :
We can say Language is but an Art-form.
--
(In the next post the same theme in detail.)
--
.
No comments:
Post a Comment