वन्दे मातरम् !
vande mātaram!
बुद्ध-पूर्णिमा की शुभ-कामनाएँ !
The Hinduism.
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The Reality, The Spiritual Truth when relegated to ethical, moral or any other system of thought or ideology, say philosophy or ritual, becomes religion. ‘Hinduism’ is no exception to this. The result is even worse when such a thought or ideology is stained with political motives. Political ideology thrives in the spiritual vacuum.
All such political ideologies spring from collective fear-psychosis of man and his escape from the bare Reality that is ‘Life’ where violence, greed, ‘my’ and ‘your’, envy, past, future, anger, pleasure, sorrow, thrill, excitements take roots, persist and keep growing. When, instead of dealing with them directly and understanding all them, an attempt is made to improve human condition, by means of any ideology we are caught into the idea that this will be the only solution and the way. We simply fail to sense the inherent contradictions.
‘Secularism’ is also a political ideology only, to please all but in fact pleases none.
Socialism, theocracy, capitalism, communism are no lesser evils.
Naming an ideology leads us in believing that this is a tangible instrument of revolution and we just forget that it is but yet another word-structure / phrase only which could be translated and interpreted in a thousand ways. None of them takes us to Spiritual harmony, for thought is divison and divides more and more enhancing fragmentation only.
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The Hindi Translation .
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’हिन्दुत्व’
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आत्यन्तिक वस्तुनिष्ठ सत्य, आध्यात्मिकता का जब नैतिक, व्यावहारिक शिष्टता या किसी भी अन्य विचार-प्रणाली अथवा वैचारिक-आदर्शों / मतवादों, दार्शनिक या रूढ़िगत स्तर की कोटि तक विरूपण कर दिया जाता है तो वह ’रिलीजन’/ religion बन जाता है । ’रिलीजन’ / religion शब्द ’टू रेलिगेट टू ऍ लॉवर लेवल’/ 'to relegate to a lower level' से बना है । (इस लेख को मूलतः जब अंग्रेज़ी में लिखा था, तब अलग से इस व्युत्पत्ति का उल्लेख करने की ज़रूरत नहीं पड़ी, यहाँ केवल इसलिए करनी पड़ी ताकि ’रिलीजन’/ religion ’धर्म’ से भिन्न है इस ओर ध्यान आकृष्ट किया जा सके । अस्तु)
’हिन्दुत्व’ (नामक ’रिलीजन’) भी इसका अपवाद नहीं है । और जब भी ऐसा कोई ’विचार’ या ’वैचारिक-आदर्श’ / मतवाद राजनीतिक लक्ष्यों, अर्थात् ’सिद्धान्तवाद’ से ग्रस्त हो जाता है, सिद्धान्तवाद से प्रतिबद्ध होता है, परिणाम तब और अधिक हानिकारक होता है ।
राजनीतिक सिद्धान्तवाद आध्यात्मिक शून्य में ही जन्मता और फलता-फूलता है ।
ऐसे समस्त राजनीतिक सिद्धान्तवाद मनुष्य के सामूहिक ’भय-मनोरुग्णता’ / ’फ़ियर-सायकोसिस’ (Fear-psychosis) से, और वास्तविकता के नग्न स्वरूप अर्थात् ’जीवन’ से उसके पलायन से उपजते हैं, -जहाँ हिंसा, लोभ, ’मेरा’ और ’तुम्हारा’, ईर्ष्या, घृणा, अतीत, भविष्य, क्रोध, सुख-बोध, विषाद, उत्तेजना, उत्कट भावोद्रेक, अनायास जड़ें जमाते हैं, सतत बने रहते और बढ़ते रहते हैं । उन सबका सीधे सामना करने और उनसे समुचित व्यवहार करने, और उन्हें ठीक से समझने के बजाय, जब किसी आदर्शवाद (ideology) के माध्यम से मनुष्य की स्थिति को सुधारने का यत्न किया जाता है, तब हम इस विचार / मत में अटक जाते हैं कि यही (आदर्शवाद) / idealism एकमात्र हल और मार्ग है । जाने-अनजाने, हम यह नज़र-अन्दाज़ कर बैठते हैं कि किसी भी आदर्शवाद में अपनी अन्तर्निहित विसंगतियाँ (inherent contradictions) आवश्यक रूप से होती ही हैं ।
’धर्म-निरपेक्षता’/ secularism भी एक राजनीतिक आदर्श / मतवाद है, जो सबको खुश रखने का प्रयास होता है जबकि वस्तुतः उससे कोई भी खुश नहीं होता ।
’समाजवाद’ / socialism, समुदायपरक-विशिष्ट-रूढ़िपरक रीति-रिवाज़ों की सत्ता (थिऑक्रेसी) / theocracy, पूँजीवाद / capitalism, साम्यवाद / communism, भी ’धर्म-निरपेक्षता’ / secularism जैसी ही बुराइयाँ हैं ।
किसी मतवाद या आदर्शवाद का नामकरण कर दिए जाने से हमें यह भ्रम हो जाता है कि यह ’वाद’ ऐसा कोई व्यावहारिक भौतिक रूप से ग्राह्य उपकरण (tangible instrument) है और हम बिलकुल ही भूल जाते हैं कि यह भी दूसरे सिद्धान्तों जैसा ही एक शब्द-विन्यास / मुहावरा या वाक्य भर है जिसे हज़ारों तरह से अनुवादित और व्याख्यायित किया जा सकता है । उनमें से कोई भी हमें आध्यात्मिक सौहार्द्र / Spiritual Harmony की ओर नहीं ले जाता, क्योंकि विचार मूलतः विभाजनपरक होता है और विखंडन का अधिक से अधिक और विस्तार करता है ।
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vande mātaram!
बुद्ध-पूर्णिमा की शुभ-कामनाएँ !
buddha-pūrṇimā Greetings!
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The Reality, The Spiritual Truth when relegated to ethical, moral or any other system of thought or ideology, say philosophy or ritual, becomes religion. ‘Hinduism’ is no exception to this. The result is even worse when such a thought or ideology is stained with political motives. Political ideology thrives in the spiritual vacuum.
All such political ideologies spring from collective fear-psychosis of man and his escape from the bare Reality that is ‘Life’ where violence, greed, ‘my’ and ‘your’, envy, past, future, anger, pleasure, sorrow, thrill, excitements take roots, persist and keep growing. When, instead of dealing with them directly and understanding all them, an attempt is made to improve human condition, by means of any ideology we are caught into the idea that this will be the only solution and the way. We simply fail to sense the inherent contradictions.
‘Secularism’ is also a political ideology only, to please all but in fact pleases none.
Socialism, theocracy, capitalism, communism are no lesser evils.
Naming an ideology leads us in believing that this is a tangible instrument of revolution and we just forget that it is but yet another word-structure / phrase only which could be translated and interpreted in a thousand ways. None of them takes us to Spiritual harmony, for thought is divison and divides more and more enhancing fragmentation only.
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The Hindi Translation .
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’हिन्दुत्व’
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आत्यन्तिक वस्तुनिष्ठ सत्य, आध्यात्मिकता का जब नैतिक, व्यावहारिक शिष्टता या किसी भी अन्य विचार-प्रणाली अथवा वैचारिक-आदर्शों / मतवादों, दार्शनिक या रूढ़िगत स्तर की कोटि तक विरूपण कर दिया जाता है तो वह ’रिलीजन’/ religion बन जाता है । ’रिलीजन’ / religion शब्द ’टू रेलिगेट टू ऍ लॉवर लेवल’/ 'to relegate to a lower level' से बना है । (इस लेख को मूलतः जब अंग्रेज़ी में लिखा था, तब अलग से इस व्युत्पत्ति का उल्लेख करने की ज़रूरत नहीं पड़ी, यहाँ केवल इसलिए करनी पड़ी ताकि ’रिलीजन’/ religion ’धर्म’ से भिन्न है इस ओर ध्यान आकृष्ट किया जा सके । अस्तु)
’हिन्दुत्व’ (नामक ’रिलीजन’) भी इसका अपवाद नहीं है । और जब भी ऐसा कोई ’विचार’ या ’वैचारिक-आदर्श’ / मतवाद राजनीतिक लक्ष्यों, अर्थात् ’सिद्धान्तवाद’ से ग्रस्त हो जाता है, सिद्धान्तवाद से प्रतिबद्ध होता है, परिणाम तब और अधिक हानिकारक होता है ।
राजनीतिक सिद्धान्तवाद आध्यात्मिक शून्य में ही जन्मता और फलता-फूलता है ।
ऐसे समस्त राजनीतिक सिद्धान्तवाद मनुष्य के सामूहिक ’भय-मनोरुग्णता’ / ’फ़ियर-सायकोसिस’ (Fear-psychosis) से, और वास्तविकता के नग्न स्वरूप अर्थात् ’जीवन’ से उसके पलायन से उपजते हैं, -जहाँ हिंसा, लोभ, ’मेरा’ और ’तुम्हारा’, ईर्ष्या, घृणा, अतीत, भविष्य, क्रोध, सुख-बोध, विषाद, उत्तेजना, उत्कट भावोद्रेक, अनायास जड़ें जमाते हैं, सतत बने रहते और बढ़ते रहते हैं । उन सबका सीधे सामना करने और उनसे समुचित व्यवहार करने, और उन्हें ठीक से समझने के बजाय, जब किसी आदर्शवाद (ideology) के माध्यम से मनुष्य की स्थिति को सुधारने का यत्न किया जाता है, तब हम इस विचार / मत में अटक जाते हैं कि यही (आदर्शवाद) / idealism एकमात्र हल और मार्ग है । जाने-अनजाने, हम यह नज़र-अन्दाज़ कर बैठते हैं कि किसी भी आदर्शवाद में अपनी अन्तर्निहित विसंगतियाँ (inherent contradictions) आवश्यक रूप से होती ही हैं ।
’धर्म-निरपेक्षता’/ secularism भी एक राजनीतिक आदर्श / मतवाद है, जो सबको खुश रखने का प्रयास होता है जबकि वस्तुतः उससे कोई भी खुश नहीं होता ।
’समाजवाद’ / socialism, समुदायपरक-विशिष्ट-रूढ़िपरक रीति-रिवाज़ों की सत्ता (थिऑक्रेसी) / theocracy, पूँजीवाद / capitalism, साम्यवाद / communism, भी ’धर्म-निरपेक्षता’ / secularism जैसी ही बुराइयाँ हैं ।
किसी मतवाद या आदर्शवाद का नामकरण कर दिए जाने से हमें यह भ्रम हो जाता है कि यह ’वाद’ ऐसा कोई व्यावहारिक भौतिक रूप से ग्राह्य उपकरण (tangible instrument) है और हम बिलकुल ही भूल जाते हैं कि यह भी दूसरे सिद्धान्तों जैसा ही एक शब्द-विन्यास / मुहावरा या वाक्य भर है जिसे हज़ारों तरह से अनुवादित और व्याख्यायित किया जा सकता है । उनमें से कोई भी हमें आध्यात्मिक सौहार्द्र / Spiritual Harmony की ओर नहीं ले जाता, क्योंकि विचार मूलतः विभाजनपरक होता है और विखंडन का अधिक से अधिक और विस्तार करता है ।
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