Monday, 11 April 2016

॥ छाया-मार्तण्ड सम्भूतं शनैश्चरं तं नमाम्यहं ॥

॥ छाया-मार्तण्डसम्भूतं शनैश्चरं तं नमाम्यहं ॥
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स्कन्दपुराण में रेवाखण्ड के अंतर्गत वर्णन है कि किस प्रकार भगवान सूर्य की पत्नी 'संज्ञा' के पुत्र यम और पुत्री यमी (यमुना नदी) दो संतानें थीं । बाद में संज्ञा को जब भगवान सूर्य का तेज असह्य होने लगा तो उसने अपनी छाया-आकृति रची और उससे कहा कि मैं सूर्यदेव का तेज नहीं सह पा रही, इसलिए तुम मेरे स्थान पर, मेरे रूप में, मेरे पति की सेवा और बच्चों की देखभाल करो । किन्तु उन्हें यह मत बताना कि तुम संज्ञा नहीं हो।" इस पर छाया बोली, "जब तक मेरे प्राणों पर ही न आ बने तब तक तो मैं  रहस्य गुप्त रखूँगी, किन्तु जब प्राणों पर बन आएगी तो इसे कह दूँगी ?"
"ठीक है, ऐसा  करना ।"
संज्ञा तब इतना कहकर पिता के घर चली आई । पिता ने पूछा, "तुम अकेली कैसे आई? सूर्यदेव कहाँ हैं ? तब संज्ञा ने दिया, "पिताजी मैं उनका तेज नहीं सह पा रही इसलिए यहाँ अकेली चली आई ।" तब उसके पिता ने कहा, "बेटी, स्त्री को तो पति के ही घर में रहना होता है । तुम विवाहिता हो इसलिए पति को छोड़कर पिता में घर में रहो यह उचित नहीं । जाओ, वहीं जाकर रहो ।"
तब संज्ञा वहां से लौट गयी किन्तु पति के पास न आकर घोर वन में चली गयी और वहाँ घोड़ी का रूप लेकर विचरण करने लगी । कुछ काल बीत जाने पर भगवान सूर्य के छाया से तीन संतानें हुईं : भगवान शनैश्चर, सावर्णि मनु, तथा तापी नदी ।
छाया अपने बच्चों  को तो लाड़ प्यार से रखती, उन्हें अच्छी सुस्वादु वस्तुएं खाने देती, और यम तथा यमी (यमुना नदी) की  उपेक्षा करती । एक दिन यम ने जब छाया से इस प्रकार के भेदभाव का कारण पूछा तो छाया ने क्रोध करते हुए शाप दिया, "जा, तुझसे हर कोई डरेगा और कोई तेरा आदर नहीं करेगा ।"
इस पर यम ने छाया पर पदाघात किया और पिता सूर्यदेव पास जाकर कहा, "लगता है यह हमारी माता नहीं, कोई और स्त्री है। माता तो संतान को कभी शाप नहीं देती !"
तब भगवान सूर्य ने छाया से पूछा,
"सच-सच बता तू संज्ञा है या कोई और ?"
प्राणों पर संकट आया जान छाया ने अपना रहस्य उनके सामने खोल दिया । और विलुप्त हो गई ।
जब भगवान सूर्य संज्ञा को वापस लाने के लिए उसके पिता के यहाँ पहुँचे तो उन्हें पता चला कि वह वहाँ से बहुत काल पूर्व लौट गई थी । भगवान सूर्य उसे ढूँढते हुए उस घोर वन में जा पहुँचे जहाँ वह घोड़ी के रूप में चर रही थी । तब सूर्यदेव ने अश्व का रूप लिया और उनके परस्पर मिलने से अश्विनीकुमार (Equinox) का जन्म हुआ ।
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यह आख्यान सृष्टि के रहस्य को अनेक स्तरों पर स्पष्ट करता है ।
वैदिक ज्योतिष स्तर पर तो इसे खगोलीय घटना के रूप में इसे समझा जा सकता है । किन्तु  वैदिक दृष्टि से 'काल' तथा 'स्थान' के अनेक आयाम हैं जिनमें से भौतिक-काल तथा भौतिक-स्थान केवल आधिभौतिक के अंतर्गत होता है । इसे हम खगोलीय-इतिहास और भविष्य  सकते हैं ।
आधिदैविक आधार पर इसे 'देवता-तत्व' (devatA -principle) के द्वारा देखने पर सूर्य, संज्ञा, छाया, यम, यमुना, अश्विनीकुमार, शनि, सावर्णि मनु, तथा तापी नदी की अपनी अपनी आधिभौतिक तथा आधिदैविक सत्ता है । इसी प्रकार आध्यात्मिक दृष्टि से एक ही परमात्मा इन सारे रूपों में विलास रहा है । सूर्य उसी परमात्मा का प्रकट रूप  है, 'संज्ञा' मनुष्य की सहज चेतना (ज्ञान) है, छाया मनुष्य की आभासी चेतना (अज्ञान) है, यम सृष्टि का अटल अदृश्य विधान है, यमुना उस विधान का दृश्य-रूप है । सूर्य, शनि, आकाशीय गृह हैं किन्तु वे केवल जड-पिंड न होकर उनकी अपनी अस्मिता है । सावर्णि मनु (Emmanuel) / Noah है, शनि, शुक्र तथा सूर्य पश्चिम दिशा तथा पृथ्वी के उस क्षेत्र की संस्कृति के अधिदेवता guiding-principle हैं जबकि बृहस्पति, सूर्य तथा चन्द्र तथा मंगल पूर्व दिशा तथा पृथ्वी के उस क्षेत्र की संस्कृति के अधिदेवता guiding-principle हैं ।
चलते चलते :
शुक्रवार 09 अप्रैल 2016 को तृप्ति देसाई ने अपनी ब्रिगेड के साथ शिंगणापुर के शनि मंदिर में प्रवेश किया, जहाँ 400 या अधिक वर्षों से स्त्रियों का प्रवेश शास्त्र के निर्देशानुसार निषिद्ध है । अगले ही दिन शनिवार रात्रि तथा रविवार की सुबह बीच कोल्लम अग्निकांड हुआ । क्या यह कोई ईश्वरीय संकेत था ? इससे पूर्व केंद्रीय पूर्व-मंत्री  शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर ने भी  मंदिर में प्रवेश और पूजा करने का दुस्साहस किया था  उनके साथ जो हुआ वह प्रत्यक्ष  है । क्या यह भी कोई ईश्वरीय संकेत था ?
क्या हम परंपराओं का मूल्यांकन कोरे बुद्धिजीवी के स्तर के विचार विमर्श से कर सकते हैं ?
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