Tuesday, 24 August 2021

एक प्रसंग

पृथिवी सूक्तम् स्तोत्रम् 

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उक्त स्तोत्र का सरल अर्थ लिखने का कर्तव्य प्राप्त हुआ, अतः लिखना प्रारंभ किया। आज ही प्रथम 3 मंत्र लिखे। साथ ही उनका सरल भावार्थ भी, जैसा भी मुझे प्रतीत हुआ।

मुझे उक्त स्तोत्र के प्रथम मंत्र में 

"पत्न्युरुं" 

शब्द का सही अर्थ क्या है यह समझने में संशय हो रहा था। 

माता पृथिवी को विष्णुपत्नी कहा जाता है ।

पौराणिक दृष्टि के अनुसार समुद्र मंथन से लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई, और भगवान् विष्णु द्वारा उसका पाणिग्रहण किया गया। वैज्ञानिक दृष्टि से भी पृथिवी की जल से उत्पत्ति इससे सुसंगत है। इस दृष्टि से पृथ्वी ही विष्णुपत्नी है।

किन्तु क्या मेरा यह अनुमान ठीक है? यह प्रश्न मन में उठा। स्मृति से एक शब्द उभरा :

विष्णुः उरुक्रमः

किन्तु यह शब्द कहाँ पढ़ा था, याद नहीं आ रहा था। 

फिर दो तीन शान्तिपाठ पढ़ लिए, क्योंकि अनुमान था कि इस शब्द को वहीं कहीं पढ़ा होगा। 

फिर श्री गणपति-अथर्वशीर्ष, फिर श्री शिव-अथर्वशीर्ष और फिर श्री देवी-अथर्वशीर्ष का पाठ करते हुए, एकाएक इस मंत्र :

अहं सोमं त्वष्टारं पूषणं भगं दधामि। अहं विष्णमुरुक्रमं ब्रह्माणमुत प्रजापतिं दधामि।।६।।

को पढ़ते ही मन स्तब्ध हो गया ।

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