Tuesday, 23 February 2021

चार महावाक्य

ब्रह्मवित्, ब्रह्मविद्या, ब्रह्मविद्वरीय, ब्रह्मविद्वरिष्ठ 

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मौनं व्याख्याप्रकटितं परब्रह्मतत्वं युवानम् 

वर्षिष्ठान्ते वसदृषिगणैरावृतं ब्रह्मनिष्ठैः ।

आचार्येन्द्रं करकलितचिन्मुद्रमानन्दरूपम् 

स्वात्मारामं मुदितवदनं दक्षिणामूर्तिमीडे  ।।

जब परमगुरु श्रीदक्षिणामूर्ति मौन से परब्रह्म तत्व की व्याख्या कर उसे प्रकट कर चुके, तो सभी ब्रह्मनिष्ठ ज्ञानियों में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि उपरोक्त शिक्षा अपेक्षतया कम परिपक्व साधकों के हित के लिए शब्दों के माध्यम से किस प्रकार से व्यक्त की जा सकती  है? 

उन चारों में से एक ब्रह्मनिष्ठ ने कहा :

"अयमात्मा ब्रह्म ।"

दूसरे ब्रह्मनिष्ठ ने कहा :

"तत्वमसि ।"

तीसरे ब्रह्मनिष्ठ ने कहा :

"अहं ब्रह्मास्मि ।"

और चौथे ब्रह्मनिष्ठ ने कहा :

"प्रज्ञानं ब्रह्म ।"

तब सभा विसर्जित हो गई ।

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।। नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये।। 

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