अन्तःकरण-चतुष्टय
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Kevin Hartnett / Quantamagazine
में
Undergraduate Mathematics
के ब्लॉग में एक रोचक पोस्ट पढ़ते हुए ध्यान आया कि अपने स्कूल के दिनों में मैंने एक प्रमेय (theorem) लिखा था।
उसे लिखे हुए 50 वर्ष बीत रहे हैं
अब मैं उसकी समानता / तुलना (analogy), आध्यात्मिक अनुसंधान के संदर्भ में अहंकार-चतुष्टय से कर सकता हूँ, और पुनः अहंकार-चतुष्टय की आत्म-चतुष्टय से भी।
जैसे संपूर्ण अभिव्यक्त जगत् तीन आयामों ( within 3 dimensions) में सीमित है, और तीन आयामों से सीमित जगत् को भी षट्फलक में सीमित की तरह समझा जा सकता है (तीन उसके भीतर से, तथा तीन उसके बाहर से) जिनका एक ही अन्तःकेन्द्र) एक बिन्दुमात्र है, उसी प्रकार आत्म-चतुष्टय भी छः फलकों वाली रचना (figure) है, जिसे अहंकार-चतुष्टय रूपी केन्द्र का प्रतिरूप (analogues) समझा जा सकता है।
इस आत्म-चतुष्टय अर्थात् अहंकार-चतुष्टय के चार फलक क्रमशः
ज्ञातृत्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व तथा स्वामित्व कहे जा सकते हैं।
ये चारों पुनः अन्योन्याश्रित होने से परस्पर अविभाज्य भी हैं।
इस प्रकार आत्म-तत्व
एकमेव-अद्वितीय वास्तविकता
( The only Unique Reality)
है।
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