Friday, 12 February 2021

द्वैत

द्वैत पाप है ... ... ...

पाप न भी हो, तो अज्ञान है,

अज्ञान न भी हो, तो भ्रम है,

भ्रम न भी हो, तो भूल है,

भूल न भी हो तो दुःख तो है ही।

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इसीलिए जब तक द्वैत है, 

तब तक दुःख का अन्त नहीं हो सकता। 

द्वैत का अन्त आत्म-ज्ञान है,

और आत्म-ज्ञान ही दुःख का अन्त है। 

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इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वंद्वमोहेन भारत । 

सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परंतप ।। 

(श्रीमदभगवद्गीता ७/२७)

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