द्वैत पाप है ... ... ...
पाप न भी हो, तो अज्ञान है,
अज्ञान न भी हो, तो भ्रम है,
भ्रम न भी हो, तो भूल है,
भूल न भी हो तो दुःख तो है ही।
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इसीलिए जब तक द्वैत है,
तब तक दुःख का अन्त नहीं हो सकता।
द्वैत का अन्त आत्म-ज्ञान है,
और आत्म-ज्ञान ही दुःख का अन्त है।
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इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वंद्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परंतप ।।
(श्रीमदभगवद्गीता ७/२७)
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