Sunday, 2 December 2018

हनुमान : वाल्मीकि-रामायण से

ॐ हं हनुमते नमः
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हनुमान :
वाल्मीकि-रामायण से
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बालकाण्ड, सर्ग 17 में वर्णन है :
पुत्रत्वं तु गते विष्णौ राज्ञस्तस्य महात्मनः।
उवाच देवताः सर्वाः स्वयम्भूर्भगवानिदम् ।।१
जब भगवान् विष्णु महामनस्वी राजा दशरथ के पुत्रभाव  प्राप्त हो गए, तब भगवान् ब्रह्माजी ने सम्पूर्ण देवताओं से इस प्रकार कहा :
सत्यसन्धस्य वीरस्य सर्वेषां नो हितैषिणः।
विष्णोः सहायान् बलिनः सृजिध्वं कामरूपिणः।।२
मायाविदश्च शूरांश्च वायुवेगसमान् जवे।
नयज्ञान् बुद्धिसंपन्नान् विष्णुतुल्य पराक्रमान्।।३
असंहार्यानुपायज्ञान् दिव्यसंहननान्वितान्।
सर्वास्रगुणसंपन्नानमृतप्राशनानिव।।४
अप्सरस्सु च मुख्यासु गंधर्वीणां तनूषु च ।
यक्षपन्नगकन्यासु ऋक्षविद्याधरीषु च ।।५
किन्नरीणां च गात्रेषु वानरीणां तनूषु च।
सृजध्वं  हरिरूपेण पुत्रांस्तु पराक्रमान्   ।।६
पूर्वमेव मया सृष्टो जाम्बवानृक्ष पुङ्गवः।
जृम्भमाणस्य सहसा मम वक्त्रादजायत ।।७

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मारुतस्यौरसः श्रीमान् हनूमान् नाम वानरः।
वज्रसंहननोपेतो वैनतेयो समो जवे  ।।१६   
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उपरोक्त संबंध में वानरेंद्र हनुमान् का वर्णन भवभूति ने 'उत्तरराम-चरित' ग्रन्थ में इस प्रकार से किया है :
प्रथमोऽङ्कः
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सीता -- एत्थ किल अज्जउत्तेण विच्छिण्णामरिसधीरत्तणं पमुक्ककण्ठं रुण्णं  आसि।
          [ अत्र किलार्यपुत्रेण विच्छिन्नामर्षधीरत्वं प्रमुक्तकण्ठं रुदितमासीत्। ]           
रामः -- देवि ! रमणीयमेतत्सरः।
एतस्मिन्मदकलमल्लिकाक्षपक्षव्याधूतस्फुरदुरुदण्डपुण्डरीकाः।
वाष्पाम्भःपरिपतनोद्गमान्तराले संदृष्टाः कुवलयिनो मया विभागाः।।३१
लक्ष्मणः -- अयमार्यो हनूमान् !
सीता -- दिष्ट्या सोऽयं महाबाहुरञ्जनानन्दवर्धनः।
यस्य वीर्येण कृतिनो वयञ्च भुवनानि च ।।32
तात्पर्य यह कि सीता द्वारा जहाँ श्रीराम को 'आर्यपुत्र' कहकर संबोधित किया जाता है, वहीँ लक्ष्मण तथा हनूमान् को भी कभी 'वत्स' तो कभी 'आर्य' कहकर।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि 'हनूमान्' उसी प्रकार से 'आर्य' हैं जैसे श्री राम या श्री लक्ष्मण।
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गीता में भी 'आर्य' शब्द का प्रयोग 'श्रेष्ठ' के अर्थ में तथा 'अनार्य' का 'निकृष्ट' के अर्थ में है, न कि जातिवाचक।कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥  
विदेशी अध्ययनकर्ताओं द्वारा द्रविड और आर्य को दो जातियों / नस्लों का रूप केवल इस कुटिल उद्देश्य से दिया गया है कि भारतीय इतिहास का विकृत रूप 'ऐतिहासिक' सत्य की तरह हमारे जनमानस पर आरोपित कर दिया जाए।  यहाँ तक कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे महानुभाव भी इससे भ्रमित होकर यह खोजने और स्थापित करने लगे कि 'आर्य' उत्तरी ध्रुव से भारत में आए थे !
इसी प्रकार हनूमान् को दलित के वर्ग में रखा जाना 'दलित' को जाति के रूप में स्थापित करने का प्रयास है।
वैसे भी स्पष्ट है कि हनूमान् 'वानर-कुल' में उत्पन्न हुए थे जो राक्षस-कुल या दैत्य-कुल, दानव-कुल की तरह अर्थात् वंश विशेष में पैदा हुए थे।  रामायण में नाग, मनुष्य, वानर, गन्धर्व, राक्षस, देव, किन्नर, अप्सरा, ऋषि आदि कुल या वंश हैं जो एक ही प्रजापति की संतानें हैं। शारीरिक बनावट से उनमें बहुत भिन्नताएँ अवश्य हैं किंतु इससे उनके 'वर्ण' में भिन्नता नहीं होती।  रावण राक्षस-कुल में उत्पन्न होकर भी वर्ण से ब्राह्मण था।  श्रीराम मनुष्य होते हुए भी क्षत्रिय-वर्ण में पैदा हुए थे।
इस प्रकार श्रीराम जहाँ विष्णु नामक 'देवता'-विशेष के अवतार थे, वहीँ श्री हनूमान् 'पवन' या वायु-देवता के अंश से केशरी और अञ्जना नामक के पुत्र थे / हैं।           
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