’कुतप-काल’
स्कन्द-पुराण के वर्णन के अनुसार (और ज्योतिष के प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार भी) दिन के द्वितीय-प्रहर की अन्तिम घड़ी और तृतीय प्रहर की प्रथम घड़ी इन दो घड़ियों की सम्मिलित अवधि ’कुतप-काल’ कही गयी है ।
दिल्ली में स्थित कुतुब-मीनार इसे ही दृक्-ज्योतिष के द्वारा प्रमाणित रूप से जाने हेतु किया गया है । ’मा’ > मिमीते (नापना) के आधार पर कुतुब-मीनार का यही प्रयोजन था । समीप ही स्थित अशोक की लाट वस्तुतः उसी समय निर्मित की गई थी ताकि जब सूर्य की स्थिति आकाश में इन दो (कुतुप-मीनार तथा लाट) की सीध में हो तो कुतुप-काल स्पष्ट हो सके । सम्भवतः बहुत बाद में सम्राट अशोक ने उस लाट पर अपने विचार उत्कीर्ण करवाए होंगे । शोध का विषय है ।
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स्कन्द-पुराण के वर्णन के अनुसार (और ज्योतिष के प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार भी) दिन के द्वितीय-प्रहर की अन्तिम घड़ी और तृतीय प्रहर की प्रथम घड़ी इन दो घड़ियों की सम्मिलित अवधि ’कुतप-काल’ कही गयी है ।
दिल्ली में स्थित कुतुब-मीनार इसे ही दृक्-ज्योतिष के द्वारा प्रमाणित रूप से जाने हेतु किया गया है । ’मा’ > मिमीते (नापना) के आधार पर कुतुब-मीनार का यही प्रयोजन था । समीप ही स्थित अशोक की लाट वस्तुतः उसी समय निर्मित की गई थी ताकि जब सूर्य की स्थिति आकाश में इन दो (कुतुप-मीनार तथा लाट) की सीध में हो तो कुतुप-काल स्पष्ट हो सके । सम्भवतः बहुत बाद में सम्राट अशोक ने उस लाट पर अपने विचार उत्कीर्ण करवाए होंगे । शोध का विषय है ।
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