Thursday, 5 May 2016

Love and Existence / प्रेम और अस्तित्व


Love and Existence.
प्रेम और अस्तित्व 
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वैसे तो प्रेम सदा अस्तित्व की निश्छल, निष्कपट और स्वाभाविक गतिविधि है, किन्तु किसी जीव (मनुष्य / देह) में इसका प्रस्फुटन होते ही देह की जरूरतें इसे स्वार्थ-केन्द्रित बना देती हैं । यद्यपि फिर भी यदि मनुष्य इसे आक्रामकता, लोलुपता से दूषित न होने दे तो यह (प्रेम) अस्तित्व के प्रति अनुग्रह और आभार की अभिव्यक्ति बना रह सकता है । जीवन की पूर्णता यही है ।
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Love is always the spontaneous, self-less, honest, sincere, conscious movement of existence, yet when it sprouts in a being the needs and compulsions of the body turn this into self-centered activity. Even though, if one does not let the arrogance, greed and fear born of imagination corrupt this pure chaste movement that is Love, one can sure feel grateful for this most precious gift of existence given to one by the existence.
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