एष धर्मः सनातनः ॥
सनातन धर्म एक, परम्पराएँ दो !
धम्मपदम्
पालि [1.5] यमक
न हि वेरेण वेराणि
सम्मन्तीध कुदाचनम् ।
अवेरेण च सम्मन्ति
एस धम्मो सनन्तनो ॥
--
पटना 253 [14.5] खान्ति
न हि वेरेण वेराणि
शामन्तीह कदाचनम् ।
अवेरेण तु शामंति
एस धंमो सनातनो ॥
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उदानवर्ग 14.11 द्रोह
न हि वैरेण वैराणि
शाम्यतीह कदा चन ।
क्षान्त्या वैराणि शाम्यन्ति
एष धर्मः सनातनः ॥
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मूलसर्वास्तिवादिविनय
(गिल्गित III.ii.184)
न हि वैरेण वैराणि
शाम्यन्तीह कदाचन ।
क्षान्त्या वैराणि शाम्यन्ति
एष धर्मः सनातनः ॥
--
मनुस्मृति:
अध्याय 4, श्लोक 138,
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् ।
प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः ॥138॥
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स्पष्ट है कि संस्कृत का आधार न लेने पर पालि की क्या स्थिति होती । हिंदुत्व और बौद्ध धर्म सनातन धर्म की ही शाखाएँ हैं । संस्कृत जहाँ शास्त्रीय भाषा है जिसे सीखने जानने समझने के लिए बहुत परिश्रम की आवश्यकता होती है, वहीं संस्कृत से उपजी पालि लोकभाषा के समीप है ।
इसलिए जब हम 'हिंदुत्व' को धर्म की तरह स्वीकार करते हैं तो जाने-अनजाने बुद्ध की परंपरा को बौद्ध धर्म कहकर दोनों ही को सनातन धर्म से तोड़ देते हैं । और यही पेंच है जिसे समझने में हमारे बड़े बड़े विचारक भी देख नहीं पा रहे । इसलिए 'हिंदुत्व' की राजनीति मीठी छुरी या मीठा ज़हर है सनातन धर्म के लिए भयावह हानिकारक है । 'हिंदुत्व' को 'धर्म' कहते ही जैन, सिख धर्म भी इसी तरह हिंदुत्व से टूट कर अलग हो जाते हैं जबकि अपने मूलस्वरूप में वे सनातन धर्म ही शाखाएँ हैं । डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने हिंदू धर्म को त्यागकर बौद्ध धर्म ग्रहण लिया क्या उन्होंने सनातन धर्म को त्याग दिया ? सनातन धर्म के ॐ को शैव, वैष्णव, शाक्त, सौर, गाणपत्य नहीं, जैन, सिख आदि भी परम महत्वपूर्ण स्थान देते हैं ।
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सनातन धर्म एक, परम्पराएँ दो !
धम्मपदम्
पालि [1.5] यमक
न हि वेरेण वेराणि
सम्मन्तीध कुदाचनम् ।
अवेरेण च सम्मन्ति
एस धम्मो सनन्तनो ॥
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पटना 253 [14.5] खान्ति
न हि वेरेण वेराणि
शामन्तीह कदाचनम् ।
अवेरेण तु शामंति
एस धंमो सनातनो ॥
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उदानवर्ग 14.11 द्रोह
न हि वैरेण वैराणि
शाम्यतीह कदा चन ।
क्षान्त्या वैराणि शाम्यन्ति
एष धर्मः सनातनः ॥
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मूलसर्वास्तिवादिविनय
(गिल्गित III.ii.184)
न हि वैरेण वैराणि
शाम्यन्तीह कदाचन ।
क्षान्त्या वैराणि शाम्यन्ति
एष धर्मः सनातनः ॥
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मनुस्मृति:
अध्याय 4, श्लोक 138,
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् ।
प्रियं च नानृतं ब्रूयादेष धर्मः सनातनः ॥138॥
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स्पष्ट है कि संस्कृत का आधार न लेने पर पालि की क्या स्थिति होती । हिंदुत्व और बौद्ध धर्म सनातन धर्म की ही शाखाएँ हैं । संस्कृत जहाँ शास्त्रीय भाषा है जिसे सीखने जानने समझने के लिए बहुत परिश्रम की आवश्यकता होती है, वहीं संस्कृत से उपजी पालि लोकभाषा के समीप है ।
इसलिए जब हम 'हिंदुत्व' को धर्म की तरह स्वीकार करते हैं तो जाने-अनजाने बुद्ध की परंपरा को बौद्ध धर्म कहकर दोनों ही को सनातन धर्म से तोड़ देते हैं । और यही पेंच है जिसे समझने में हमारे बड़े बड़े विचारक भी देख नहीं पा रहे । इसलिए 'हिंदुत्व' की राजनीति मीठी छुरी या मीठा ज़हर है सनातन धर्म के लिए भयावह हानिकारक है । 'हिंदुत्व' को 'धर्म' कहते ही जैन, सिख धर्म भी इसी तरह हिंदुत्व से टूट कर अलग हो जाते हैं जबकि अपने मूलस्वरूप में वे सनातन धर्म ही शाखाएँ हैं । डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने हिंदू धर्म को त्यागकर बौद्ध धर्म ग्रहण लिया क्या उन्होंने सनातन धर्म को त्याग दिया ? सनातन धर्म के ॐ को शैव, वैष्णव, शाक्त, सौर, गाणपत्य नहीं, जैन, सिख आदि भी परम महत्वपूर्ण स्थान देते हैं ।
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