Tuesday, 17 May 2016

सोचने के लिए -3

सोचने के लिए -3
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जिसमें थोड़ी भी समझ होती है, वह छल-कपट, लोभ-लालच, ईर्ष्या-द्वेष, भूत-भविष्य की कल्पना / डर से मोहित नहीं होता । संक्षेप में वह राजनीति से कोसों दूर होता है । फिर नेता होना तो उसके लिए और भी मुश्किल है । नासमझ ही नेता बनते हैं क्योंकि वे अपनी कल्पना की ’दुनिया’ आदर्श, लक्ष्य, महत्वाकाँक्षा को ही एकमात्र सत्य  / सच समझते हैं और उसे ’सुधारना / बिगाड़ना’ चाहने लगते हैं । कई तरीकों से, यहाँ तक कि ’धर्म’ या ’अध्यात्म’ की अपनी व्याख्या से भी । तब उन्हें 'गुरु', 'धर्मगुरु', 'आचार्य', 'इमाम', 'पोप', 'रब्बाई' 'अवतार', 'महर्षि', 'संत', 'भगवान', 'Savior', 'Prophet' आदि भी कहा / समझा जाने लगता है  ।
थोड़ा भी समझदार मनुष्य इस जाल को सरलता से देख / समझ सकता है । क्योंकि सरलता श्रेष्ठतम विवेक और प्रज्ञा है ।      
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