Sunday, 17 March 2019

'शमन-धर्म' (Shamanic and Semitic)

क्या यह मुमकिन है?
यह रोचक विडिओ देखते हुए ख़याल आया :
"स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति"
(गीता अध्याय 2, श्लोक 63)
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ज्ञात-अज्ञात तरीकों से हमारी सामूहिक स्मृति को इस प्रकार से नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया है कि हमें यह भी नहीं दिखलाई देता कि 'पारसी' धर्म मूलतः सनातन-धर्म की ही शाखा है । इस भूल से हम 'पारसी' धर्म को हिन्दू धर्म से भिन्न समझने लगे हैं । इस्लाम और ईसाइयत यद्यपि हिन्दू धर्म तथा इसलिए सनातन-धर्म से अवश्य ही बहुत दूर; -लगभग विपरीत दिशा में चले गए हैं, और यहूदी धर्म की भी ऐतिहासिक कारणों से सनातन-धर्म से बहुत दूरी हो गई  है, फिर भी पर्याप्त खोज-बीन से यह देखना बहुत कठिन नहीं है कि यहूदी धर्म का उद्गम तो सनातन-धर्म से ही हुआ है ।
संक्षेप में स्वर्गीय श्री फ़ीरोज़ गाँधी पारसी होते हुए भी वंश से हिन्दू ही माने जाने चाहिए ।
और इसलिए श्री राहुल गाँधी को भी हिन्दू कहा जा सकता है ।
सवाल सिर्फ 'लाभ से जुडी दुविधा' (Conflict of Interest) का है ।
सत्ता का लाभ पाने के लिए श्री राहुल गाँधी और कांग्रेस कभी स्पष्टता से हिंदुत्व से भी खुले और प्रकट रूप से  जुड़ना नहीं चाहेंगे । क्योंकि तब उन्हें अपने गैर-हिन्दू वोट-बैंक को खोने का डर लगता है । पहले हमें यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि 'हिन्दू' होने का अर्थ वास्तव में धर्म-निरपेक्ष होना है या नहीं । पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपने काश्मीरी ब्राह्मण होने की पहचान इसीलिए बनाए रखी, ताकि काश्मीरी पंडित समुदाय को, और पूरे देश को भी इस बारे में भ्रमित रखा जाए कि वे 'हिन्दू' और 'धर्म-निरपेक्ष' कांग्रेसी हैं । सत्ता की लालसा और 'लाभ की दुविधा' का इससे बेहतर संतुलन और क्या हो सकता था ?  
(... रिन्द के रिन्द रहे हाथ से जन्नत (Zenith) न गई  ....  ।)
यदि हिंदुत्व को संस्कृति-विशेष तक सीमित कर दिया जाए तो भी यह धर्म-निरपेक्ष है ही । और यदि इसे सनातन-धर्म से जोड़कर, सेमेटिक-धर्म से भिन्न माना जाए तो भी पारसी धर्म तथा हिन्दू धर्म सजातीय और सनातन-धर्म की ही अलग अलग शाखाएँ हैं ।
'संस्कृति' का अनुवाद 'culture' किया जाता है, जो अत्यंत भ्रामक है । 'culture' cult से बना है और cult; -'kill' (किल - मारना - culling) से । संस्कृति संस्कार द्वारा मन-बुद्धि को शुद्ध और शिक्षित करने से बनती और सतत बनी रहती है, जबकि culture (परंपरा, रूढ़ि) है जो समाज के सामूहिक आचरण से बनता और बदलता रहता है ।
इसी प्रकार 'धर्म' का अनुवाद 'Religion' किया जाता है और वह भी इसी प्रकार अत्यंत भ्रामक है । 'धर्म' वह स्वाभाविक निष्ठा है जो अटल अचल है और यद्यपि मनुष्य उससे भ्रष्ट अवश्य हो सकता है, या उसे कर दिया जा सकता है, उसकी खोज से उसे पुनः पा सकता है, -पुनर्जीवित कर सकता है ; जबकि 'Religion' वह मान्यता और मान्यता पर आधारित विश्वास होते हैं  जिन्हें हर मनुष्य अपने परिवेश, वातावरण और समाज से सीख लिया करता है । इसलिए धर्म खोज की जाने की चीज़ है जबकि 'Religion' परिस्थितियों से तालमेल करने का तरीका है । यह तालमेल कर पाना किसी के लिए आसान होता है तो किसी के लिए कठिन भी हो सकता है । इसलिए 'Religion' का 'धर्म' से प्रायः दूर-दूर तक का कोई संबंध नहीं हुआ करता ।  पिछले सौ वर्षों में Theosophy, गोरे और काले अंग्रेज़ों की कृपा / कुटिलता से 'धर्म-निरपेक्षता' (जिसे अंग्रेज़ी में 'Secularism' कहा जाता है,) नामक एक नया 'Religion' पैदा हुआ और पनपते हुए फल-फूल रहा है  । एक विस्मयकारी बात यह भी है कि आप अपनी सुविधा के अनुसार 'धर्म-निरपेक्षता' का अनुवाद करने के लिए 'Secular' शब्द का प्रयोग तो कर सकते हैं, किन्तु इस 'Secular' शब्द का ठीक-ठीक तात्पर्य (और इसलिए अनुवाद भी) क्या होगा यह शायद ही किसी को पता हो !
इसी प्रकार का एक शब्द है -'शामी'; आपने 'शामी-क़बाब' के बारे में सुना होगा ।
यह 'शाम' उसी 'सीरिया' का अरबी नाम है जिसे असीरिया भी कहा जाता है । बीबीसी उर्दू सीरिया के लिए 'शाम' शब्द का ही प्रयोग करता है । सीरिया एक तरफ़ प्राचीनतः 'असुर', तो दूसरी ओर 'अव-सुर' संस्कृति का स्थान रहा है जहाँ 'इस्लाम' के आगमन से पहले 'शमन-धर्म' (Shamanic) प्रचलित था । यह जो शमन / शामनिक जो 'शैव' (शं - शंकर) का ही प्रकार था, बाद में 'Semitic' कहा जाने लगा और इसलिए Semitic शब्द स्वयं भी इतना विवादास्पद और भिन्न-भिन्न अर्थों का पर्याय हो गया कि जहाँ ईसाइयत को माननेवाले यहूदी (हिब्रू) तथा अरबी को 'Semitic' मानते हैं, वहीँ इस्लाम के माननेवाले इसका अर्थ सिर्फ और सिर्फ यहूदी / हिब्रू मानते हैं । 'मूर्तिपूजा' को 'पाप' माननेवाले तीनों 'Religion' (इस्लाम, यहूदी तथा ईसाइयत), मूर्तिपूजा को 'sin' / कुफ़्र / पाप मानते हैं हैं, जबकि प्राचीन  'शमन-धर्म' (Shamanic) में शंकर की पूजा 'लिंग-स्वरूप' में की जाती थी । यद्यपि यह सत्य है कि शमन-धर्म के तत्व वेद से भिन्न इसलिए विपरीत भी हैं (क्योंकि एक ही स्थान की ओर जानेवाले दो भिन्न मार्गों से एक साथ कोई कैसे जा सकता है?) लेकिन शमन-धर्म या शैव-धर्म सनातन-धर्म का ही एक प्रकार है इसमें संदेह नहीं, और यह केवल मार्ग (और उपासना-पद्धति) की दुविधा ही है जिससे इन दोनों में विरोधाभास प्रतीत होता है ।
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