Thursday, 6 October 2016

स्थायी भ्रम

स्थायी भ्रम
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मेरी एक फ़ेस-बुक मित्र ने अपना पुराना फ़ेस-बुक अकाउन्ट बन्द कर नया फ़ेस-बुक अकाउन्ट नए नाम से खोला ।
मैंने उससे पूछा :
"यह नया नाम क्यों?"
उसने ज़वाब दिया :
"ताकि कुछ पुराने फ़ेस-बुक दोस्तों से दूर रह सकूँ ।
बाय द वे, वह पुराना नाम भी मेरा असली नाम नहीं था ।"
"तो तुम्हारा असली नाम क्या है / था?"
"असली नाम तो मेरा कभी कुछ था ही कहाँ?
हम सभी बिना किसी नाम के ही तो जन्म लेते हैं,
नाम तो हमें दुनिया देती है जिसे हम असली समझ बैठते हैं ।"
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क्या हमारे सभी संबंध भी ऐसे ही ओढ़े हुए नाम भर नहीं होते?
ऐसे ही हम अपना कोई चेहरा लेकर पैदा नहीं होते,
हमारा (असली) चेहरा भी बस ऐसा ही हमारा एक स्थायी भ्रम है,
वास्तव में हमारा कोई चेहरा नहीं हो सकता, यही हमारी सच्ची पहचान है ।
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बाय द वे एक प्रश्न ;
क्या बिना किसी चेहरे के जीना सचमुच बहुत मुश्किल है?
चेहरे की तलाश / ज़रूरत क्यों ?  
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