Thursday, 3 March 2016

नाडी-सूत्र -3. 'Nibiru'

नाडी-सूत्र -3.
(Nibiru / निभृस्)
रहसि राहुः कुतः केतु...
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सूर्य के जिस पिण्ड के पीछे चले जाने से ही सूर्य-ग्रहण घटित होता है, गणना द्वारा जिस अदृश्य आकाशीय खगोलीय पिन्ड की उपस्थिति का आभास और अनुमान उसे हुआ था, उसके चरित्र के बारे में उसे कुछ पता न होने से वह उसे रहस्यपूर्ण प्रतीत हो रहा था । प्रथमतः उसका चंद्र से कोई संबंध अवश्य था क्योंकि सूर्य-ग्रहण सदा अमावास्या की तिथि पर ही होता है । और उसकी गणना के अनुसार जिस पिण्ड द्वारा सूर्य को आवरित किए जाने से यह खगोलीय घटना होती है, उसकी गति की दिशा राशि-परिभ्रमण के उसके कल्पित मार्ग पर सूर्य और चंद्र तथा बुध, बृहस्पति, शुक्र, मङ्गल और शनि जैसे तारकों से विपरीत दिशा में है । पुनः वह पिण्ड चंद्र नहीं है, क्योंकि चंद्र-ग्रहण क्यों होता है इस बारे में उसे अच्छी तरह ज्ञात था कि चंद्र-ग्रहण संभवतः चंद्र पर पड़नेवाले सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी के द्वारा बाधित किए जाने से होता है ।
उस कल्पित ग्रह को उसने ’राहु’ नाम दिया क्योंकि वह उसके लिए रहस्य था । उसकी गति वैसी ही वक्री थी जैसी बुध, बृहस्पति, शुक्र, मङ्गल और शनि जैसे पिण्डों की आभासी गति कभी-कभी जान पड़ती है, अर्थात् वे अपने नियमित मार्ग से विपरीत दिशा में गतिमान प्रतीत होते हैं ।
छाया ? सूर्य की पत्नी तो संज्ञा है / थी, छाया से तो सूर्य के पुत्र शनि हुए ।
क्या ’राहु’ का भी जन्म हुआ ?
राहु राक्षसो...
राक्षस-कुलोत्पन्न राहु  क्या यही है?
आकाश से गिरते उल्का-पिण्डों meteorites को भी उसने कदाचित् देखा था और कुछ ऐसे पिण्डों को भी जिनकी चमकीली पूँछ होती है । जैसे पताका हो ।
उसे यह स्पष्ट था कि वे अनियमित गति वाले केतु (कैतवः केतुः) comets थे जिनके मार्ग-परिभ्रमण का आकलन करना उसके लिए कठिन है । वह अनुमान लगा सकता था कि संभवतः वे यदृच्छया गतिमान छोटे-बड़े भिन्न-भिन्न आकार के स्थूल-खण्ड हैं जो वाष्प या शिला जैसे पदार्थ से बने होते हैं । संभवतः हिम या जल से भी बने हो सकते हैं । वे ज्वलनशील होते हैं, जो नहीं होते ऐसे भी कुछ हो सकते हैं । शायद उनमें से ही कुछ धरती पर चले आते हैं । उन्हें हम उल्का कह सकते हैं । किंतु ’राहु’ शनि नहीं है, चंद्र भी नहीं है ।
जो राक्षस सूर्य को ग्रसता प्रतीत होता है भू-चक्र के उस अक्ष पर जिस पिण्ड का आगमन होने से सूर्य-ग्रहण घटित होता है वह केवल पृथ्वी की चंद्र द्वारा सूर्य के मार्ग पर आने से बननेवाली छाया है  । किंतु अमावस्या के कारण चंद्र के न दिखलाई देने से इस सूक्ष्म तथ्य पर उसका ध्यान ही नहीं गया ।
संज्ञा से उत्पन्न हुए सूर्य के एक दूसरे पुत्र यम के बारे में उसे कोई संदेह न था ।
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