पुरा-तत्व-कथा
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पुनः एक पुराकथा ।
भगवान् महर्षि वेदव्यास की धर्मपत्नी थी क्षिति।
उनकी दो संतानों थीं।
पुत्र का नाम था क्षितिज और पुत्री का नाम था परिधि।
इस कथा का एक रूप पहले कभी "नासदीयसूक्तम्" के सन्दर्भ के साथ इस ब्लॉग में प्रस्तुत किया जा चुका है।
अब इसी प्रसंग से जुड़ी एक और कथा :
एक बार पुत्री और पुत्र के बीच इस बारे में विचार किया जा रहा था कि उनके नाम का क्या तात्पर्य है!
तब भाई-बहन पिता के पास पहुँचे और उनसे अपनी जिज्ञासा का समाधान करने का निवेदन किया।
"बेटा! तुम्हारा नम है क्षितिज । वैसे इसका एक कारण यह है कि तुम क्षिति की और नभ की भी सन्तान हो, किन्तु इसका दूसरा एक कारण यह भी है कि तुम धर्म अर्थात् यम हो। जबकि परिधि जो तुम्हारी बहन है, यमुना अर्थात् पृथ्वी से ही उत्पन्न संसार का यम-यातना से उद्धार करनेवाली तपस्विनी है। चूँकि तुम सूर्यपुत्र हो अतः तुम्हारा स्वरूप अग्नितत्व-प्रधान है। इसलिए तुम कठोर हो और तुम्हारे विधान और न्याय का उल्लंघन कोई भी नहीं कर सकता, फिर भी जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी बहन की स्तुति, दर्शन और उसके जल में स्नान करते हैं, और इस प्रकार उसको प्रसन्न कर लेते हैं, वे समस्त पापों से मुक्त होकर सद्गति प्राप्त करते हैं।"
सभी नदियाँ समान रूप से पावनकारी हैं, चाहे फिर वह गंगा हो, यमुना, सरस्वती, सरयू, शिप्रा, नर्मदा, गोदावरी अथवा फल्गु ही क्यों न हो।
परिधि का एक तात्पर्य है मर्यादा । पृथिवी पर धर्म नित्य ही एक और सनातन है, क्षितिज की तरह, जबकि स्थान स्थान पर उस धर्म की मर्यादा अर्थात् परंपरा अलग अलग है। जब पृथिवी के किसी भाग पर धर्म की उस मर्यादा का उल्लंघन होने लगता है, तो वह अधर्म हो जाता है।"
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