Monday, 29 June 2015

अम्बरमावरणञ्च / Umbrella

आज का श्लोक
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अम्ब त्वं अम्बा अम्बरमावरणञ्च
छत्रं छत्रेश्वरी तवानुग्रहं दिग्रूपेण व्याप्तम् ।
दिगम्बरोऽपि आवरणम् तत् व्याघ्राम्बरो शङ्करो
गजचर्मधरो पशुपति प्रीत्याऽभिधारयति ॥
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अर्थ :
हे अम्बा ! जगदम्बा !! सम्पूर्ण जगत मायारूपी तुम्हारे आवरण से आच्छादित है।  यह आवरण रूपी छत्र सम्पूर्ण जगत की रक्षा करता है।  हे जननी! तुम्हारा अनुग्रह दिशाओं के रूप में सर्वत्र व्याप्त है, दिशाओं रूपी अम्बर में आविष्ट दिगंबर व्याघ्राम्बर, गजचर्मधारी पशुपतिनाथ भगवान शंकर भी उस आवरण को प्रीतिपूर्वक ओढ़ते हैं।
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amba tvaṃ ambā ambaramāvaraṇañca
chatraṃ chatreśvarī tavānugrahaṃ digrūpeṇa vyāptam |
digambaro:'pi  āvaraṇam tat vyāghrāmbaro śaṅkaro
gajacarmadharo paśupati prītyā:'bhidhārayati ||
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O Mother Divine! Mother of the whole existence! Giving shelter, You covere and protect this whole Creation under the umbrella of Your Grace. Like all the directions, Your Grace is spread all over and everywhere. O Mother! Even The Lord Shankara, The Lord of all creatures, clad in the tiger-skin, in the elephant-hide, devotedly seeks Your shelter .
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