Thursday, 25 June 2015

पुरुषसूक्तम् / puruṣasūktam

पुरुषसूक्तम् / puruṣasūktam
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ऋग्वेद मण्डल 10,
मन्त्र संख्या 90-1
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥
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अर्थ : सम्पूर्ण चराचर जगत को आवृत करता हुआ वह सहस्रशीर्ष (सहस्र मस्तकों से युक्त), सहस्राक्ष (सहस्र नेत्रवाला), सहस्रपात् (सहस्र पादयुक्त) पुरुष (आत्मा / चेतना) भूमि (देह में नाभि) से 10 अङ्गुल ऊपर (मनुष्य के हृदय में) स्थित है।
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ṛgveda maṇḍala 10,
mantra saṃkhyā 90-1
sahasraśīrṣā puruṣaḥ sahasrākṣaḥ sahasrapāt |
sa bhūmiṃ viśvato vṛtvātyatiṣṭhaddaśāṅgulam ||
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Meaning :
The Supreme Being (puruṣaḥ) with a thousand heads, a thousand eyes and a thousand foot-legs, Permeating The Whole Existence, is There seated (in the heart of man), 10 digits above the ground (navel).
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