समय-शास्त्र / क्षण-शास्त्र
CHRONOLOGY
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स्वप्न संबंध है, और संबंध स्वप्न।
स्वप्न क्षण है, और क्षण समय।
समय क्षण है, जो दो या अधिक स्वप्नों का सम-सामयिक (co-eval, concurrence) होना है।
समय यूँ तो एक अविभाज्य, सतत और अखंड वास्तविकता है, परन्तु समय के बारे में विचार के पैदा होने के साथ ही साथ यह आभास भी घटित होता है कि समय क्षण है और इसलिए स्वप्न भी है जो युग भी है। क्षणों के क्रम का ही नाम युग है। क्षणों के बीच यदि क्रम की कल्पना न पैदा हो, तो समय के खंडित होने का आभास / स्वप्न भी नहीं हो सकता।
इस प्रकार समय स्वप्न है, और संबंध है।
जैसा पिछले पोस्ट में इंगित किया गया, संबंध समस्या है और समस्या संबंध है, और दोनों ही विचार (की गतिविधि) है।
विचार से ही समय का विभाजन कर अतीत और भविष्य जन्म लेते हैं। अतीत (past) और भविष्य (future) इसलिए स्वप्न हैं, और वे जिस भूमि में जन्म लेते हैं वह है एकमेव और सतत, अखंड, अविभाज्य यह वर्तमान (present) समय, जो नित्य, शाश्वत, चिरंतन होने के ही कारण जिसे सनातन भी कहा और समझा जाता है। इसे ही क्षण अथवा युग के रूप में संकुचित / संकीर्ण या विस्तृत कर एक काल्पनिक समय स्वतंत्र रूप में हर किसी मनुष्य के लिए अस्तित्व में आता हुआ प्रतीत होता है। यह काल्पनिक समय ही मनुष्य का नितांत वैयक्तिक स्वप्न होता है, जिसे कोई किसी से साझा (share) नहीं कर सकता। यही मनुष्य का मनो-जगत है। किन्तु मनुष्य का शरीर केवल मनो-जगत नहीं, बल्कि स्थूल रूप में भौतिक पदार्थ से निर्मित वैसी एक वस्तु भी है, जिससे मनुष्य के मनो-जगत का संबंध होते ही, मनुष्य स्वयं को उसके भौतिक विश्व में अनुभव करता है, यद्यपि उसे यह स्पष्ट नहीं होता, कि वह स्वयं यह विश्व है, या आभासी विश्व से भिन्न और स्वतंत्र एक सत्ता। इस अनुभव को मनुष्य की जागृत अवस्था कहा जाता है। इस दृष्टि से मनुष्य भी अपने से भिन्न प्रकार के दूसरे जीवों के ही समान ही है, क्योंकि वे भी इस प्रकार, मनुष्य की ही तरह जागते, सोते और स्वप्न देखते हैं।
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