Reading in :
अध्यात्म रामायण,
बालकाण्ड,
प्रथम सर्ग,
रामहृदय,
Came across this verse:
जगन्ति नित्यं परितो भ्रमन्ति
यत्सन्निधौ चुम्बकलोहवद्धि।
एतन्न जानन्ति विमूढचित्ताः
स्वाविद्यया संवृतमानसा ते।। १९
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चुम्बक के समीप होने पर जिस प्रकार जड लोहे में गतिशीलता उत्पन्न हो जाती है, उसी प्रकार जिनकी सन्निधि मात्र से यह विश्व सदा सब ओर भ्रमता रहता है, उन परमात्मा राम को, वे मूढजन नहीं जान सकते, जिनका हृदय आत्मा के अज्ञान से ढका हुआ है ।
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इससे यही प्रमाणित होता है कि आज के वैज्ञानिकों से बहुत पहले ही ऋषि चुम्बकत्व के सिद्धान्त से परिचित थे ।
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Just as near a magnet, a piece of iron becomes so magnetised, this whole existence becomes alive in the vicinity of :
The Supreme Parabrahman SriRam.
But the unfortunate ones, immersed deep in the ignorance of the Self, know Him not, and keep wondering in misery and dark.
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This points out :
How long before the Physicists of the day, the ancient sages knew well about the magnetism!
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