अनन्यत्वमधिष्ठानादारोप्यस्य निरीक्षितम्।
पण्डितै रज्जुसर्पादौ विकल्पो भ्रान्तिजीवनः।। ४०६
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अनन्यत्वं अधिष्ठानात् आरोप्यस्य निरीक्षितम्।
पण्डितैः रज्जु-सर्प-आदौ विकल्पः भ्रान्ति-जीवनः ।।
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अधिष्ठान पर जिसे आरोपित किया जाता है, उस आरोपित को अधिष्ठान से अनन्य मान लिया जाना ही, आरोपित की सत्यता के आभास के उत्पन्न होने का कारण होता है।
पण्डितों के अनुसार, रज्जु में आरोपित सर्प को सत्य मान लेना ही, वैकल्पिक सर्प के सत्य होने का भ्रम पैदा करता है।
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Seeing an image superimposed upon an object causes the illusion that the image has its own reality quite different and independent of the object (which is completely forgotten), and the image appears to be the only reality.
According to the wise, the assumed reality of the superimposed image, is itself the cause of this illusion.
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