पञ्चीकरणम्
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उक्त ग्रन्थ या इसकी वार्तिका श्री सुरेश्वराचार्यकृत है, ऐसा मेरा अनुमान है।
जो भी हो, मूलतः यह ग्रन्थ सृष्टि के सिद्धांत की एक व्याख्या है।
इसे ईशो-स्तरीय तथा ईशो-शमीय इन दो रीतियों से समझा जा सकता है।
पञ्चीकरण में यह स्पष्ट किया जाता है कि किस प्रकार एक ही मूल तत्व के पाँच विभाग पञ्च-ज्ञानेद्रियों के माध्यम से पाँच स्थूल महाभूतों के रूप में ग्रहण किये जा सकते हैं।
इन पांच महाभूतों में से प्रत्येक के दो विभाग किए जाते हैं।
इस प्रकार प्रत्येक के एक विभाग को पुनः चार विभागों में विभाजित कर दिया जाता है।
आकाश, अग्नि, वायु, जल तथा पृथ्वी इन पाँच महाभूतों में से प्रत्येक के आधे भाग के साथ अन्य के शेष चार अर्धभागों को संयुक्त कर सूक्ष्म महाभूतों की सृष्टि होती है।
इस प्रकार आकाश नामक देवता में आधा अंश आकाश तत्व का होता है जिससे अग्नि, वायु, जल तथा पृथ्वी का एक-एक अष्टमांश संयुक्त कर देने पर आकाशरूपी सूक्ष्म देवता अस्तित्व ग्रहण करता है। इसी प्रकार शेष चार देवता तत्व प्रकट होते हैं।
सृष्टि-सिद्धांत में उत्पत्ति या विनाश की कोई भूमिका नहीं है।
इसमें केवल प्राकट्य (expression), अभिव्यक्ति / (manifestation) और संहार (Dissolution) को ही सृष्टि कहा जाता है। इस प्रकार यह सिद्धांत भौतिक-शास्त्र के द्रव्य / ऊर्जा के अविनाशिता के नियम (Law of indestructibility of Matter and Energy) का ही समान्तर (parallel) है।
अब पुनः उन पांच स्थूल भूतों के बारे में :
भौतिक शास्त्र (Physics) में ऊर्जा / द्रव्य की गतिविधि (mechanism) अर्थात् 'बल' का अध्ययन ऊर्जा के पांच प्रकारों गुरुत्वाकर्षण-बल, ताप-बल, प्रकाश या ध्वनिकम्पन-बल (wave), विद्युत्-चुम्बकीय बल (field) तथा परमाण्विक -बल (atomic energy) के रूप में किया जाता है।
वहीँ रसायन-शास्त्र (Chemistry) के अंतर्गत पदार्थ के पाँच मूल प्रकारों के आधार की तरह क्रमशः हीलियम, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन के रूप में विभाजित किया जाता है।
ये ही क्रमशः आकाश (शून्य, निष्क्रिय / inert), हि द्रु जन् (अग्नि), ओषजन, नितृ-जन्, तथा शर्वण हैं।
आकाश (नभ) विष्णु की नाभि है, हाइड्रोजन जल है, नाइट्रोजन वायु है तथा कार्बन पृथ्वी है।
संस्कृत 'शृ' - शीर्यते से बना है शरीर।
शरीर स्वयं उपरोक्त पांच तत्वों के संयोग से बना उनका विकार है।
'विकार' पुनः प्रसंग के अनुसार दो भिन्न अर्थों का द्योतक है -
एक है बिगाड़; दूसरा है विशेष प्रकार।
ईश अर्थात् governance वह शक्ति जिससे सृष्टि की तीनों गतिविधियाँ संचालित होती हैं।
शक्ति को स्थूल परिणाम की तरह ही जाना जाता है जबकि ईश अप्रकट शिव (अवश्य) है।
शक्ति इस प्रकार शिव से वश्य है और विश्य है।
इस प्रकार शक्ति ही विष्णु है।
ईशोतरीय अर्थात् ईश्वर का वह प्रकार जो अप्रकट है।
ईशोशमीय अर्थात् ईश्वर का वह प्रकार जो नित्य प्रकट है।
चमस् ऋषि (Chemistry) ने शमन धर्म अर्थात् रसायनशास्त्र का आविष्कार किया जबकि नागार्जुन ने इसी की रासायनिक तत्वों (ओषधि-शास्त्र तथा चिकित्सा शास्त्र) के रूप में विस्तारपूर्वक विवेचना की।
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'उष्' से ओष, ओषधि, ओस, ऑक्सीजन, ऑक्सीडेशन / oxidation तथा ओज़ोन की उत्पत्ति दृष्टव्य है।
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उक्त ग्रन्थ या इसकी वार्तिका श्री सुरेश्वराचार्यकृत है, ऐसा मेरा अनुमान है।
जो भी हो, मूलतः यह ग्रन्थ सृष्टि के सिद्धांत की एक व्याख्या है।
इसे ईशो-स्तरीय तथा ईशो-शमीय इन दो रीतियों से समझा जा सकता है।
पञ्चीकरण में यह स्पष्ट किया जाता है कि किस प्रकार एक ही मूल तत्व के पाँच विभाग पञ्च-ज्ञानेद्रियों के माध्यम से पाँच स्थूल महाभूतों के रूप में ग्रहण किये जा सकते हैं।
इन पांच महाभूतों में से प्रत्येक के दो विभाग किए जाते हैं।
इस प्रकार प्रत्येक के एक विभाग को पुनः चार विभागों में विभाजित कर दिया जाता है।
आकाश, अग्नि, वायु, जल तथा पृथ्वी इन पाँच महाभूतों में से प्रत्येक के आधे भाग के साथ अन्य के शेष चार अर्धभागों को संयुक्त कर सूक्ष्म महाभूतों की सृष्टि होती है।
इस प्रकार आकाश नामक देवता में आधा अंश आकाश तत्व का होता है जिससे अग्नि, वायु, जल तथा पृथ्वी का एक-एक अष्टमांश संयुक्त कर देने पर आकाशरूपी सूक्ष्म देवता अस्तित्व ग्रहण करता है। इसी प्रकार शेष चार देवता तत्व प्रकट होते हैं।
सृष्टि-सिद्धांत में उत्पत्ति या विनाश की कोई भूमिका नहीं है।
इसमें केवल प्राकट्य (expression), अभिव्यक्ति / (manifestation) और संहार (Dissolution) को ही सृष्टि कहा जाता है। इस प्रकार यह सिद्धांत भौतिक-शास्त्र के द्रव्य / ऊर्जा के अविनाशिता के नियम (Law of indestructibility of Matter and Energy) का ही समान्तर (parallel) है।
अब पुनः उन पांच स्थूल भूतों के बारे में :
भौतिक शास्त्र (Physics) में ऊर्जा / द्रव्य की गतिविधि (mechanism) अर्थात् 'बल' का अध्ययन ऊर्जा के पांच प्रकारों गुरुत्वाकर्षण-बल, ताप-बल, प्रकाश या ध्वनिकम्पन-बल (wave), विद्युत्-चुम्बकीय बल (field) तथा परमाण्विक -बल (atomic energy) के रूप में किया जाता है।
वहीँ रसायन-शास्त्र (Chemistry) के अंतर्गत पदार्थ के पाँच मूल प्रकारों के आधार की तरह क्रमशः हीलियम, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन के रूप में विभाजित किया जाता है।
ये ही क्रमशः आकाश (शून्य, निष्क्रिय / inert), हि द्रु जन् (अग्नि), ओषजन, नितृ-जन्, तथा शर्वण हैं।
आकाश (नभ) विष्णु की नाभि है, हाइड्रोजन जल है, नाइट्रोजन वायु है तथा कार्बन पृथ्वी है।
संस्कृत 'शृ' - शीर्यते से बना है शरीर।
शरीर स्वयं उपरोक्त पांच तत्वों के संयोग से बना उनका विकार है।
'विकार' पुनः प्रसंग के अनुसार दो भिन्न अर्थों का द्योतक है -
एक है बिगाड़; दूसरा है विशेष प्रकार।
ईश अर्थात् governance वह शक्ति जिससे सृष्टि की तीनों गतिविधियाँ संचालित होती हैं।
शक्ति को स्थूल परिणाम की तरह ही जाना जाता है जबकि ईश अप्रकट शिव (अवश्य) है।
शक्ति इस प्रकार शिव से वश्य है और विश्य है।
इस प्रकार शक्ति ही विष्णु है।
ईशोतरीय अर्थात् ईश्वर का वह प्रकार जो अप्रकट है।
ईशोशमीय अर्थात् ईश्वर का वह प्रकार जो नित्य प्रकट है।
चमस् ऋषि (Chemistry) ने शमन धर्म अर्थात् रसायनशास्त्र का आविष्कार किया जबकि नागार्जुन ने इसी की रासायनिक तत्वों (ओषधि-शास्त्र तथा चिकित्सा शास्त्र) के रूप में विस्तारपूर्वक विवेचना की।
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'उष्' से ओष, ओषधि, ओस, ऑक्सीजन, ऑक्सीडेशन / oxidation तथा ओज़ोन की उत्पत्ति दृष्टव्य है।
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