अर्जुन तथा अभिमन्यु
--
तब अर्जुन ने पुत्र से पूछा :
"भगवान् श्रीकृष्ण ने मुझसे कहा था :
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।9
(अध्याय 4)
इसका आशय क्या है ?"
अभिमन्यु ने तब कहा :
"जो भली प्रकार से यह जानता है कि मेरा जन्म तथा कर्म दिव्य है, वह देह को त्यागने के पश्चात् मुझे ही प्राप्त होता है। 'मुझे ही' से तात्पर्य है सर्वभूतात्म-आत्मा परमात्मा को, जो पुनः पुनः धरती पर अवतरित होते हैं। मनुष्य-मात्र का जन्म और कर्म दिव्य ही है किन्तु सर्वभूतात्म-आत्मा परमात्मा न तो कर्ता है, न उसका जन्म होता है, न मृत्यु) होती है। "
--
--
तब अर्जुन ने पुत्र से पूछा :
"भगवान् श्रीकृष्ण ने मुझसे कहा था :
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।9
(अध्याय 4)
इसका आशय क्या है ?"
अभिमन्यु ने तब कहा :
"जो भली प्रकार से यह जानता है कि मेरा जन्म तथा कर्म दिव्य है, वह देह को त्यागने के पश्चात् मुझे ही प्राप्त होता है। 'मुझे ही' से तात्पर्य है सर्वभूतात्म-आत्मा परमात्मा को, जो पुनः पुनः धरती पर अवतरित होते हैं। मनुष्य-मात्र का जन्म और कर्म दिव्य ही है किन्तु सर्वभूतात्म-आत्मा परमात्मा न तो कर्ता है, न उसका जन्म होता है, न मृत्यु) होती है। "
--
No comments:
Post a Comment