स्वाध्यासापनयं / स्व-अध्यास-अपनयम्
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अविज्ञाते परे तत्त्वे शास्त्राधीतिस्तु निष्फला।
विज्ञातेऽपि परे तत्त्वे शास्त्राधीतिस्तु निष्फला।।59
लोकानुवर्तनं त्यक्त्वा त्यक्त्वा देहानुवर्तनम्।
शास्त्रानुवर्तनं त्यक्त्वा स्वाध्यासापनयं कुरु।।270
लोकवासनया जन्तोः शास्त्रवासनयाापि च।
देहवासनया ज्ञानं यथावन्नैव जायते।।271
(विवेक-चूडामणि)
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शास्त्रानाम् अधि+इति इति अधीतिः।
के अनुसार शास्त्र में पारङ्गत होने का अर्थ है शास्त्रों के अथ और समाप्ति से पार होना।
सामान्यतः 'अधीतिः' का अर्थ होता है -'अध्ययन करना' ।
फिर शास्त्रों का प्रयोजन क्या है?
वे केवल उपकरण (सहायक साधन) हैं।
स्व का अध्यास अर्थात् 'स्व' जो पूर्व से है / था; -उस तक पहुँचने के लिए, -उसका आविष्कार करने और विवेक के अभाव में जिसे बुद्धि में 'स्व' की तरह ग्रहण कर लिया जाता है उस अध्यास (तादात्म्य) को दूर करने के लिए शास्त्र का प्रयोजन है।
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अविज्ञाते परे तत्त्वे शास्त्राधीतिस्तु निष्फला।
विज्ञातेऽपि परे तत्त्वे शास्त्राधीतिस्तु निष्फला।।59
लोकानुवर्तनं त्यक्त्वा त्यक्त्वा देहानुवर्तनम्।
शास्त्रानुवर्तनं त्यक्त्वा स्वाध्यासापनयं कुरु।।270
लोकवासनया जन्तोः शास्त्रवासनयाापि च।
देहवासनया ज्ञानं यथावन्नैव जायते।।271
(विवेक-चूडामणि)
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शास्त्रानाम् अधि+इति इति अधीतिः।
के अनुसार शास्त्र में पारङ्गत होने का अर्थ है शास्त्रों के अथ और समाप्ति से पार होना।
सामान्यतः 'अधीतिः' का अर्थ होता है -'अध्ययन करना' ।
फिर शास्त्रों का प्रयोजन क्या है?
वे केवल उपकरण (सहायक साधन) हैं।
स्व का अध्यास अर्थात् 'स्व' जो पूर्व से है / था; -उस तक पहुँचने के लिए, -उसका आविष्कार करने और विवेक के अभाव में जिसे बुद्धि में 'स्व' की तरह ग्रहण कर लिया जाता है उस अध्यास (तादात्म्य) को दूर करने के लिए शास्त्र का प्रयोजन है।
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