शस्त्रपूजा और शास्त्रपूजा
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दशहरे पर VY-Culture से एक मेसेज मिला :
Non-violence is the greatest force at the disposal of mankind.
It is mightier than the mightiest weapon of destruction.
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ज्ञात इतिहास में इसका एक उदाहरण भगवान बुद्ध हो सकते हैं।
एक गुडाकेश का वर्णन गीता के अध्याय 10 में है :
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।।20
जिसका अर्थ करते हुए (शांकर-भाष्य में) पूज्य भगवत्पाद आचार्य शंकर ने कहा है :
गुडा का अर्थात् निद्रा का स्वामी, यानी निद्राजयी होने के कारण अथवा घनकेश
होने के कारण अर्जुन का नाम गुडाकेश है।
अर्जुन को इन्द्र से (मंत्रसिद्ध) अस्त्र प्राप्त हुए थे।
ऐसा ही (मंत्रसिद्ध) अस्त्र अश्वत्थामा को अपने पिता आचार्य द्रोण से प्राप्त हुआ था,
जिसका प्रयोग उसने युद्ध के बाद पाण्डु-कुल के नाश के लिए करना चाहा।
अश्वत्थामा उपरोक्त अर्थ में गुडाकेश / निद्राजयी नहीं था।
ऐसे ही अनेक (मंत्रसिद्ध) दिव्य अस्त्र भगवान् श्रीराम को ऋषि विश्वामित्र से प्राप्त
हुए थे।
श्रीराम के अनुज भगवान् श्री लक्ष्मण को ऐसे अस्त्र प्राप्त हुए या नहीं इस बारे में मुझे
ठीक से ध्यान नहीं है कि वाल्मीकि रामायण में क्या उल्लेख है।
भगवान् श्रीराम ने इसी अस्त्र का प्रयोग इन्द्र के पुत्र जयंत पर तब किया था जब उसने
माता सीता के प्रति अपराध किया था।
इसका उल्लेख भी वाल्मीकि रामायण में है ही।
किन्तु भगवान् श्री लक्ष्मण भी इस अर्थ में गुडाकेश थे कि उन्होंने भी निद्रा पर जय
प्राप्त कर ली थी। किन्तु अर्जुन तथा भगवान् श्री लक्ष्मण ने जिस अर्थ में निद्रा पर
जय प्राप्त की थी वह केवल संकल्पशक्ति से पाई गयी थी।
निद्रा का देवता-स्वरूप क्या है इसे वाल्मीकि रामायण में इन्द्र द्वारा माता सीता को
खीर दिए जाने के प्रसंग से समझा जा सकता है।
अर्जुन तथा भगवान् श्री लक्ष्मण ने इस अर्थ में निद्रा को नहीं जाना था जिस अर्थ में
निद्रा को गुडा / गूढा कहा जाता है।
इस प्रकार ऐसे मनुष्य के लिए जिसने गुडा-आकेश के अर्थ में निद्रा (के स्वरूप) में
प्रवेश नहीं किया है उसे भी गुडाकेश कहा जा सकता है।
दूसरी ओर गीता में ही :
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। ....
(अध्याय 2 , श्लोक 69)
में जिस निद्रा का संकेत किया गया है उस निद्रा का तात्पर्य है मन की तीन अवस्थाओं;
-जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति के आने जाने के प्रति जागृति होना।
इस प्रकार की जागृति (अर्थात् बुद्धत्व) के प्राप्त होने पर ही 'अहिंसा' / Non-violence की
वह सिद्धि अनायास प्राप्त हो जाती है जिसका उल्लेख पातञ्जल योग-सूत्र में पाया जाता
है। यह भी एक प्रकार का (मंत्रसिद्ध) अस्त्र हो सकता है जिसके प्रयोग से शत्रु के भीतर वैर
तथा हिंसा की भावना ही समाप्त हो जाते हैं।
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तात्पर्य यह कि शस्त्र-पूजा क्षत्रियों के लिए है जबकि शास्त्र-पूजा ब्राह्मणो के लिए।
(वर्णाश्रम धर्म किस प्रकार वैश्विक सनातन-धर्म है तथा वेद-विहित एवं वेद से भिन्न
परम्पराओं के लिए भी ईश्वरीय आदेश है इस बारे में अगली पोस्ट में। )
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इस पोस्ट तथा अगली सभी पोस्ट में Labels नहीं होंगे, कृपया ध्यान दें।
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दशहरे पर VY-Culture से एक मेसेज मिला :
Non-violence is the greatest force at the disposal of mankind.
It is mightier than the mightiest weapon of destruction.
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ज्ञात इतिहास में इसका एक उदाहरण भगवान बुद्ध हो सकते हैं।
एक गुडाकेश का वर्णन गीता के अध्याय 10 में है :
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।।20
जिसका अर्थ करते हुए (शांकर-भाष्य में) पूज्य भगवत्पाद आचार्य शंकर ने कहा है :
गुडा का अर्थात् निद्रा का स्वामी, यानी निद्राजयी होने के कारण अथवा घनकेश
होने के कारण अर्जुन का नाम गुडाकेश है।
अर्जुन को इन्द्र से (मंत्रसिद्ध) अस्त्र प्राप्त हुए थे।
ऐसा ही (मंत्रसिद्ध) अस्त्र अश्वत्थामा को अपने पिता आचार्य द्रोण से प्राप्त हुआ था,
जिसका प्रयोग उसने युद्ध के बाद पाण्डु-कुल के नाश के लिए करना चाहा।
अश्वत्थामा उपरोक्त अर्थ में गुडाकेश / निद्राजयी नहीं था।
ऐसे ही अनेक (मंत्रसिद्ध) दिव्य अस्त्र भगवान् श्रीराम को ऋषि विश्वामित्र से प्राप्त
हुए थे।
श्रीराम के अनुज भगवान् श्री लक्ष्मण को ऐसे अस्त्र प्राप्त हुए या नहीं इस बारे में मुझे
ठीक से ध्यान नहीं है कि वाल्मीकि रामायण में क्या उल्लेख है।
भगवान् श्रीराम ने इसी अस्त्र का प्रयोग इन्द्र के पुत्र जयंत पर तब किया था जब उसने
माता सीता के प्रति अपराध किया था।
इसका उल्लेख भी वाल्मीकि रामायण में है ही।
किन्तु भगवान् श्री लक्ष्मण भी इस अर्थ में गुडाकेश थे कि उन्होंने भी निद्रा पर जय
प्राप्त कर ली थी। किन्तु अर्जुन तथा भगवान् श्री लक्ष्मण ने जिस अर्थ में निद्रा पर
जय प्राप्त की थी वह केवल संकल्पशक्ति से पाई गयी थी।
निद्रा का देवता-स्वरूप क्या है इसे वाल्मीकि रामायण में इन्द्र द्वारा माता सीता को
खीर दिए जाने के प्रसंग से समझा जा सकता है।
अर्जुन तथा भगवान् श्री लक्ष्मण ने इस अर्थ में निद्रा को नहीं जाना था जिस अर्थ में
निद्रा को गुडा / गूढा कहा जाता है।
इस प्रकार ऐसे मनुष्य के लिए जिसने गुडा-आकेश के अर्थ में निद्रा (के स्वरूप) में
प्रवेश नहीं किया है उसे भी गुडाकेश कहा जा सकता है।
दूसरी ओर गीता में ही :
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। ....
(अध्याय 2 , श्लोक 69)
में जिस निद्रा का संकेत किया गया है उस निद्रा का तात्पर्य है मन की तीन अवस्थाओं;
-जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति के आने जाने के प्रति जागृति होना।
इस प्रकार की जागृति (अर्थात् बुद्धत्व) के प्राप्त होने पर ही 'अहिंसा' / Non-violence की
वह सिद्धि अनायास प्राप्त हो जाती है जिसका उल्लेख पातञ्जल योग-सूत्र में पाया जाता
है। यह भी एक प्रकार का (मंत्रसिद्ध) अस्त्र हो सकता है जिसके प्रयोग से शत्रु के भीतर वैर
तथा हिंसा की भावना ही समाप्त हो जाते हैं।
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तात्पर्य यह कि शस्त्र-पूजा क्षत्रियों के लिए है जबकि शास्त्र-पूजा ब्राह्मणो के लिए।
(वर्णाश्रम धर्म किस प्रकार वैश्विक सनातन-धर्म है तथा वेद-विहित एवं वेद से भिन्न
परम्पराओं के लिए भी ईश्वरीय आदेश है इस बारे में अगली पोस्ट में। )
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इस पोस्ट तथा अगली सभी पोस्ट में Labels नहीं होंगे, कृपया ध्यान दें।
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